पूर्व जज बोले- सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने पर केस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन

पूर्व जज बोले- सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने पर केस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन
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नई दिल्ली
के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस मदन बी लोकुर ने कहा है कि सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर मामले दर्ज करना बोलने और अभिव्यक्ति की आजादी में कटौती है। जस्टिस लोकुर ने कहा, ‘हाल के समय में अभिव्यक्ति से संबंधित राजद्रोह के मामलों में जबर्दस्त वृद्धि हुई है। राजद्रोह बेहद गंभीर आरोप है। हमारे यहां गांधीजी, लोक मान्य तिलक जैसे आजादी सेनानी थे, जिन पर राजद्रोह के आरोप लगाए गए और आज आम आदमी पर राजद्रोह के आरोप लगाए जा रहे हैं।’

उन्होंने कहा, ‘जब नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे तो 3700 लोगों के खिलाफ राजद्रोह के 25 मामले दायर किये गए थे। जब हाथरस में एक युवती से सामूहिक बलात्कार और उसकी हत्या की घटना हुई तो 23 लोगों के खिलाफ राजद्रोह के 22 मामले दायर किये गए। सामूहिक बलात्कार और हत्या पर आपत्ति जताने वाला कोई व्यक्ति क्या राजद्रोह का आरोपी हो सकता है?’

जस्टिस लोकुर ने मधु बाबू मेमोरियल लेक्चर के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं। इसका आयोजन ओडिशा डायलॉग्स ने बुधवार को किया, जिसका विषय था, ‘क्या भारत की न्यायपालिका लोकतंत्र को बचा सकती है।’ उन्होंने उत्तर प्रदेश की एक हालिया घटना का उल्लेख किया जिसमें एक व्यक्ति ने अपने 88 वर्षीय बीमार दादा के लिये ऑक्सिजन मुहैया कराने की मांग की थी। अमेठी पुलिस ने उसके खिलाफ महामारी अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया और उस पर लोगों के बीच डर पैदा करने का आरोप लगाया।

उन्होंने कहा, ‘अगर कोई व्यक्ति सोशल मीडिया पर मदद मांगता है तो क्या वह कोई अपराध कर रहा है? ये तरीके और साधन हैं, जिनके जरिये वाक् एवं अभिव्यक्ति की आजादी में कटौती की जा रही है।’ जस्टिस लोकुर ने न्यायपालिका की हालत पर चिंता जताई। उन्होंने कहा, ‘न्यायपालिका को पहले अपने घर को व्यवस्थित करना चाहिये।’

उन्होंने कहा, ‘न्यायाधीशों की नियुक्ति को महीनों और कुछ मामलों में वर्षों लटकाया जा रहा है। आधारभूत संरचना की काफी कमी है। उच्च न्यायालयों में 40 फीसदी और निचली अदालतों में 20 फीसदी रिक्तियां हैं। न्यायपालिका के कामकाज में पारदर्शिता का अभाव है। सबसे महत्वपूर्ण बात है कि न्यायपालिका की आजादी को संदेह की नजरों से देखा जा रहा है।’

उन्होंने न्यायपालिका की मौजूदा हालत का उल्लेख करते हुए कहा, ‘हमें गंभीरता से आत्ममंथन करने की जरूरत है। क्या हम सही चीजें कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘कैसे न्यायपालिका लोकतंत्र को बचा सकती है? क्या यह कुछ हद तक खुद को बचा सकती है? मैं नहीं जानता। मैं आप पर-नागरिकों पर छोड़ रहा हूं।’

जस्टिस लोकुर ने कहा कि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव, मौलिक आजादी और न्यायपालिका की आजादी भारतीय लोकतंत्र के कुछ घटक हैं। चुनावों में चुनावी बांड के इस्तेमाल पर जस्टिस लोकुर ने कहा कि अपारदर्शी चुनावी बांड के जरिये सैकड़ों करोड़ रुपये जुटाए जा रहे हैं और ऐसे समय में राज्य चुनावों पर खर्च किये जा रहे हैं, जब देश महामारी से लड़ने के लिये संसाधनों की कमी से जूझ रहा है।

साभार : नवभारत टाइम्स

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