कैबिनेट की सलाह मानने को बाध्य हैं राज्यपाल?
मंत्रीपरिषद की सलाह से काम करते हैं राज्यपाल
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट केटीएस तुलसी बताते हैं कि संवैधानिक व्यवस्था है कि राज्यपाल मंत्रीपरिषद की सलाह और सिफारिश से काम करता है। चुनी हुई सरकार अगर सेशन बुलाने की सिफारिश करती है तो राज्यपाल को उसी अनुसार नोटिफिकेशन जारी करना होता है। अनुच्छेद-163 के तहत राज्यपाल को जब सेशन बुलाने की सलाह और सिफारिश की जाती है तो उसके मुताबिक सेशन बुलाने का प्रावधान है।
राज्य का कार्यकारी अधिकार मंत्रीपरिषद में निहित
संविधान के प्रावधान के मुताबिक राज्यपाल मंत्री परिषद की सलाह पर ही काम करेंगे। वह औपाचारिक तौर पर कार्यपालिका के मुख्य हैं लेकिन कार्यकारी अधिकार मंत्रीपरिषद में निहित है और उनकी सलाह से ही काम करेंगे। गवर्नर खुद से फैसले नहीं ले सकते।
सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में दिया था फैसला
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट विकास सिंह का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक बेंच ने अरुणाचल प्रदेश के नबाम केस में फैसला दिया था और कहा था कि राज्यपाल मुख्यमंत्री और मंत्रीपरिषद के सलाह को मानने के लिए बाध्य हैं। संवैधानिक प्रावधान के तहत वह मंत्रीपरिषद के सलाह पर ही काम करेंगे। सिंह बताते हैं कि अगर राज्यपाल को लगता है कि सरकार बहुमत खो चुकी है तो भी उसे सेशन बुलाना है क्योंकि बहुमत का फैसला फ्लोर टेस्ट से होगा और बोमई जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट इसकी व्यवस्था दे चुका है।
मंत्रिपरिषद की सलाह विशेष परिस्थिति में नकार सकते हैं राज्यपाल
हालांकि सीनियर एडवोकेट एमएल लाहोटी का कहना है कि साधारण स्थिति में मंत्रीपरिषद का फैसला मानने के लिए राज्यपाल बाध्य हैं लेकिन अभी विशेष परिस्थिति है। मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। हाई कोर्ट ने अयोग्यता मामले में यथास्थिति बनाए रखने को कहा है। राज्यपाल इस विशेष परिस्थिति को देख रहे हैं और उस हिसाब से फैसला ले सकते हैं। हालांकि सरकार के बहुमत का फैसला भी फ्लोर टेस्ट से होता है और उसके लिए सेशन बुलाने का अधिकार राज्यपाल को है।