नरसिंह राव आर्थिक सुधारों के जनक: मनमोहन

नरसिंह राव आर्थिक सुधारों के जनक: मनमोहन
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नई दिल्लीपूर्व प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव की सरकार में वित्त मंत्री रहे मनमोहन सिंह ने शुक्रवार को कहा कि राव ‘‘माटी के महान सपूत” थे। उन्हें वास्तव में भारत में आर्थिक सुधारों का जनक कहा जा सकता है क्योंकि उनके पास उन सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए दृष्टि और साहस था। सिंह बाद में खुद देश के प्रधानमंत्री बने।

नरसिंह राव कैबिनेट में सिंह ने अपना पहला बजट पेश किया
सिंह कांग्रेस की तेलंगाना इकाई द्वारा आयोजित नरसिंह राव जन्मशताब्दी वर्ष के उद्घाटन समारोह को डिजिटल तरीके से संबोधित कर रहे थे। सिंह ने कहा कि वह विशेष रूप से खुश हैं कि इसी दिन 1991 में उन्होंने राव सरकार का पहला बजट पेश किया था। 1991 के बजट की काफी सराहना की जाती है क्योंकि उसी से आधुनिक भारत की नींव रखी गयी और देश में आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने का खाका तैयार किया गया। उन्होंने याद किया कि नरसिंह राव कैबिनेट में वित्त मंत्री के रूप में अपना पहला बजट उन्होंने राजीव गांधी को समर्पित किया था। सिंह ने कहा कि 1991 के बजट ने भारत को कई मायनों में बदल दिया क्योंकि इससे आर्थिक सुधारों और उदारीकरण की शुरूआत हुई।

राव को देश के गरीबों की चिंता थी
पूर्व प्रधानमंत्री सिंह ने कहा, “यह एक कठिन विकल्प और साहसी फैसला था और यह संभव इसलिए हो सका क्योंकि प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने मुझे चीजों को शुरू करने की आजादी दी, क्योंकि वह उस समय भारत की अर्थव्यवस्था की समस्या को पूरी तरह से समझ रहे थे।’’ कांग्रेस नेता ने कहा, “इस दिन, उनके जन्मशताब्दी समारोह का उद्घाटन करते हुए, मैं उन्हें श्रद्धांजलि देता हूं, जिनके पास इन सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए दृष्टि और साहस था।” सिंह ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तरह राव को भी देश के गरीबों के लिए बड़ी चिंता थी। सिंह ने यह भी कहा कि कई मायनों में राव उनके “मित्र, दार्शनिक और मार्गदर्शक” थे। उन्होंने कहा कि 1991 में तत्काल कठोर फैसले लिए जाने थे क्योंकि भारत विदेशी मुद्रा संकट का सामना कर रहा था तथा विदेशी मुद्रा भंडार लगभग दो सप्ताह के आयात के लिए पर्याप्त रह गया था।

अत्पमत सरकार में कठोर फैसला किया
सिंह ने कहा, ‘‘ राजनीतिक रूप से, यह बड़ा सवाल था कि क्या कोई चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना करने के लिए कठोर निर्णय ले सकता है? यह अल्पमत सरकार थी, जो स्थिरता के लिए बाहरी समर्थन पर निर्भर थी। फिर भी नरसिंह राव जी सभी को साथ लेकर चलने और उन्हें अपनी प्रतिबद्धता से सहमत कराने में सक्षम थे। उनका भरोसा पाकर, मैंने उनकी दृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए अपना काम किया।’’ फ्रांसीसी कवि और उपन्यासकार विक्टर ह्यूगो का हवाला देते हुए सिंह ने कहा कि उन्होंने एक बार कहा था कि “पृथ्वी पर कोई शक्ति उस विचार को नहीं रोक सकती जिसका समय आ गया है”। उन्होंने कहा कि एक प्रमुख आर्थिक शक्ति के रूप में भारत का उदय ऐसा ही विचार था। उन्होंने कहा, “आगे की यात्रा कठिन थी, लेकिन यह पूरी दुनिया को जोर से और स्पष्ट रूप से बताने का समय था कि भारत जागा हुआ है। बाकी बातें इतिहास है। पीछे गौर करें तो नरसिंह राव को वास्तव में भारत में आर्थिक सुधारों का जनक कहा जा सकता है।”

सिंह ने राव की राजनीतिक यात्रा की चर्चा की
सिंह ने राव की राजनीतिक यात्रा को भी याद किया जो स्वतंत्रता संग्राम के दिनों से शुरू हुई थी। उन्होंने कहा कि केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में राव ने मानव संसाधन विकास और विदेश जैसे महत्वपूर्ण विभागों को संभाला तथा वह कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण सदस्य थे, जिन्होंने दिवंगत इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के साथ काम किया था। सिंह ने कहा कि राजीव गांधी की हत्या के बाद राव को कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया था और वह 21 जून, 1991 को प्रधानमंत्री पद के लिए स्वभाविक विकल्प बन गए। उन्होंने कहा कि “इसी दिन उन्होंने मुझे अपना वित्त मंत्री बनाया था।” सिंह ने कहा कि आर्थिक सुधारों और उदारीकरण के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी उनके योगदान को कम कर के नहीं आंका जा सकता है।

पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने का प्रयास किया
उन्होंने कहा कि विदेश नीति के संबंध में राव ने चीन सहित अन्य पड़ोसी देशों के साथ संबंधों में सुधार के लिए प्रयास किया और भारत ने दक्षेस देशों के साथ दक्षिण एशिया तरजीही व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए। सिंह ने कहा कि राव ने 1996 में दिवंगत एपीजे अब्दुल कलाम को परमाणु परीक्षण के लिए तैयार होने के लिए कहा था, जिसे बाद में 1998 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की राजग सरकार द्वारा संचालित किया गया था। उन्होंने कहा, “वह राजनीति में एक कठिन दौर था। शांत स्वभाव और गहरे राजनीतिक कौशल वाले नरसिंह राव जी हमेशा बहस और चर्चा के लिए तैयार रहते थे। उन्होंने हमेशा विपक्ष को विश्वास में लेने की कोशिश की।” उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का प्रमुख बनाकर भेजना इसका उदाहरण था।

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