नागोर्नो-काराबाख की राजधानी तक पहुंची अजरबैजानी सेना, आर्मीनिया को भारी नुकसान

नागोर्नो-काराबाख की राजधानी तक पहुंची अजरबैजानी सेना, आर्मीनिया को भारी नुकसान
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बाकू
और के बीच 27 सितंबर से शुरू हुई लड़ाई अब भी जारी है। इस दौरान अजरबैजान की सेना ने तुर्की और इजरायली हथियारों के दम पर आर्मीनिया को भारी नुकसान पहुंचाया है। जानकारी के अनुसार, की राजधानी स्टेपानाकेर्ट पास बसे शुशी शहर पर अजरबैजानी सेना ने कब्जा कर लिया है। जिसके बाद से आर्मीनिया की सेना में स्टेपानाकेर्ट की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है।

तुर्की से सैन्य सहायता ले सकता है अजरबैजान
उधर अजरबैजान के राष्ट्रपति राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने कहा है कि अगर आर्मीनिया से उन्हें हमले का खतरा बनता रहता है तो वह तुर्की से सैन्य सहायता को स्वीकार कर लेगें। माना जा रहा है कि अगर इस युद्ध में तुर्की की प्रत्यक्ष भागीदारी होती है तो इससे आर्मीनिया की स्थिति और खराब हो सकती है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान हालात अच्छे हैं ऐसे में हमें तुर्की के सैन्य सहायता की अभी कोई जरूरत नहीं है।

स्टेपानाकेर्ट पर क्लस्टर बमों से किया हमले का आरोप
आर्मीनिया ने आरोप लगाया है कि अजरबैजान की सेना ने नागोर्नो-काराबाख की राजधानी स्टेपानाकेर्ट पर क्लस्टर बमों से हमला किया है। नागोर्नो-काराबाख की आपातकालीन सेवा ने कहा है कि अजरबैजान के इस हमले में उसका कोई नागरिक हताहत नहीं हुआ है। बता दें कि दुनियाभर में क्लस्टर बमों के उपयोग पर पाबंदी है ऐसे में अगर कोई देश इस बम का उपयोग करता है तो उसे युद्धअपराध माना जाता है।

शांति बहाली के लिए पुतिन ने एर्दोगन से की बात
आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच जारी युद्ध को खत्म करवाने के लिए रूस के राष्ट्रपति ब्लादीमिर पुतिन ने तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन से बात की है। दोनों देशों ने शांति की बहाली के लिए एक संयुक्त कार्यदल बनाने की घोषणा भी की है। पुतिन और एर्दोगन ने शनिवार को संकटग्रस्त क्षेत्र में स्थिति पर चर्चा की थी।

7 सितंबर से जारी है लड़ाई
नगोर्नो-काराबाख इलाके में आर्मीनियाई मूल के लोग बहुसंख्यक हैं, जबकि अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे अजरबैजान का हिस्सा मानता है। सोवियत संघ के विघटन के बाद से ही अजरबैजान इस इलाके पर कब्जे का प्रयास कर रहा है लेकिन उसे कभी भी कामयाबी नहीं मिली है। अपुष्ट खबरों के मुताबिक अभी तक अजरबैजान की सेना ने नगोर्नो-काराबाख के बड़े हिस्से पर अपना कब्जा जमा लिया है।

क्या है इस संघर्ष का इतिहास
आर्मेनिया और अजरबैजान 1918 और 1921 के बीच आजाद हुए थे। आजादी के समय भी दोनों देशों में सीमा विवाद के कारण कोई खास मित्रता नहीं थी। पहले विश्व युद्ध के खत्म होने के बाद इन दोनों देशों में से एक तीसरा हिस्सा Transcaucasian Federation अलग हो गया। जिसे अभी जार्जिया के रूप में जाना जाता है। 1922 में ये तीनों देश सोवियत यूनियन में शामिल हो गए। इस दौरान रूस के महान नेता जोसेफ स्टालिन ने अजरबैजान के एक हिस्से (नागोर्नो-काराबाख) को आर्मेनिया को दे दिया। यह हिस्सा पारंपरिक रूप से अजरबैजान के कब्जे में था लेकिन यहां रहने वाले लोग आर्मेनियाई मूल के थे।

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