क्या है रूसी कोरोना वैक्सीन, कैसे करती है काम

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रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के ऐलान के बाद रूसी कोरोना वायरस वैक्सीन को लेकर लोगों में उत्सुकता देखी जा रही है। इस वैक्सीन को लेकर अमेरिका समेत कई देशों में संदेह भी जताया गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी रूसी वैक्सीन को लेकर जांच करने का भरोसा दिया है। वहीं पुतिन ने दावा किया है कि इस वैक्सीन ने प्रभावी रूप से काम किया है और इससे मानव शरीर में प्रभावी प्रतिरक्षा पैदा हो रही है।

रूसी स्वास्थ्य मंत्री मिखाइल मुराशको ने कहा है कि रूस में इस साल अक्टूबर से बड़े पैमाने पर कोरोना वायरस वैक्सीनेशन का कार्यक्रम शुरू किया जाएगा। उन्होंने कहा कि वैक्सीनेशन के दौरान चिकित्साकर्मियों और शिक्षकों को प्राथमिकता दी जाएगी। यानी शुरुआत में इसे आम जनता के लिए बहुत कम संख्या में रखा जाएगा। पहले भी ऐसी खबरें आईं थी कि रूस में कोरोना वैक्सीन की डोज को वहां के कुछ अमीर लोगों को दिया गया है।

रूस की समाचार एजेंसी स्पूतनिक ने इस वैक्सीन के पंजीकरण प्रमाण पत्र के अनुसार बताया है कि यह वैक्सीन 1 जनवरी 2021 से सिविलियन सर्कुलेशन में जाएगी। यानी इस दिन के बाद से ही रूस के आम नागरिकों को इस वैक्सीन का डोज मिल सकेगा। इस वैक्सीन को मॉस्‍को के गामलेया रिसर्च इंस्टिट्यूट ने रूसी रक्षा मंत्रालय के साथ मिलकर एडेनोवायरस को बेस बनाकर तैयार किया है।

सेशेनॉव यूनिवर्सिटी में टॉप साइंटिस्ट वादिम तारासॉव ने दावा किया है कि देश 20 साल से इस क्षेत्र में अपनी क्षमता और काबिलियत को तेज करने के काम में लगा हुआ है। इस बात पर लंबे वक्त से रिसर्च की जा रही है कि वायरस कैसे फैलते हैं। इन्हीं दो दशकों की मेहनत का नतीजा है कि देश को शुरुआत शून्य से नहीं करनी पड़ी और उन्हें वैक्सीन बनाने में एक कदम आगे आकर काम शुरू करने का मौका मिला।

इस वैक्सीन का नाम रूस की पहली सैटेलाइट स्पूतनिक से मिला है। जिसे रूस ने 1957 में रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ने लॉन्च किया था। उस समय भी रूस और अमेरिका के बीच स्पेस रेस चरम पर थी। कोरोना वायरस वैक्सीन के विकास को लेकर अमेरिका और रूस के बीच प्रतिद्वंदिता चल रही थी। रूस के वेल्थ फंड के मुखिया किरिल दिमित्रीव ने वैक्सीन के विकास की प्रक्रिया को ‘स्पेस रेस’ जैसा बताया था। उन्होंने US TV को बताया, ‘जब अमेरिका ने Sputnik (सोवियत यूनियन की बनाई दुनिया की पहली सैटलाइट) की आवाज सुनी तो वे हैरान रह गए, यही बात वैक्सीन के साथ है।

रूस की वैक्सीन सामान्य सर्दी जुखाम पैदा करने वाले adenovirus पर आधारित है। इस वैक्सीन को आर्टिफिशल तरीके से बनाया गया है। यह कोरोना वायरस SARS-CoV-2 में पाए जाने वाले स्ट्रक्चरल प्रोटीन की नकल करती है जिससे शरीर में ठीक वैसा इम्यून रिस्पॉन्स पैदा होता है जो कोरोना वायरस इन्फेक्शन से पैदा होता है। यानी कि एक तरीके से इंसान का शरीर ठीक उसी तरीके से प्रतिक्रिया देता है जैसी प्रतिक्रिया वह कोरोना वायरस इन्फेक्शन होने पर देता लेकिन इसमें उसे COVID-19 के जानलेवा नतीजे नहीं भुगतने पड़ते हैं। मॉस्को की सेशेनॉव यूनिवर्सिटी में 18 जून से क्लिनिकल ट्रायल शुरू हुए थे। 38 लोगों पर की गई स्टडी में यह वैक्सीन सुरक्षित पाई गई है। सभी वॉलंटिअर्स में वायरस के खिलाफ इम्यूनिटी भी पाई गई।

दूसरी ओर पश्चिमी देशों का आरोप है कि रूस ने उनकी रिसर्च चोरी कर वैक्सीन बनाई है। अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा की सुरक्षा एजेंसियों ने बकायदा बयान जारी कर इस बात का आरोप लगाया था कि रूस की खुफिया एजेंसियों से जुड़े हैकिंग ग्रुप APT29 (Cozy Bear) ने अभियान छेड़ रखा है। उन्होंने दावा किया कि यह ग्रुप रूस की खुफिया एजेंसियों का हिस्सा है और क्रेमलिन के इशारे पर काम करता है। इसके अलावा, रूस की वैक्सीन कितनी सफल और सुरक्षित है, इस सवाल की एक बड़ी वजह यह भी है कि इससे पहले कि वैज्ञानिक फेज-3 के ट्रायल को पूरा करते, वैक्सीन को अप्रूव कर दिया गया है। वैक्सीन की पुख्ता जांच के लिए इसे हजारों लोगों पर टेस्ट किया जाना जरूरी होता है।

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