'महाभारत' का जिक्र कर विवादों के समाधान पर चीफ जस्टिस ने क्या समझाया, पढ़िए
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) एनवी रमन ने विवादों के निपटारे के लिए मध्यस्थता का रास्ता अपनाने पर जोर दिया है। ‘महाभारत’ का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय मूल्यों में मध्यस्थता गहराई से समाई हुई है। पहले हर तरह के विवाद के हल के लिए मध्यस्थता का ही सहारा लिया जाता था। शनिवार को एक कार्यक्रम में सीजेआई ने यह भी कहा कि भारत की अदालतों में 4.5 करोड़ मामले लंबित होने का आंकड़ा बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाने वाला कथन है।
सीजेआई रमन ने कहा कि भारतीय अदालतों में 4.5 करोड़ मामले लंबित होने का आंकड़ा एक ‘अतिशयोक्तिपूर्ण कथन’ और ‘सही तरीके से नहीं किया गया विश्लेषण’ है। उन्होंने कहा कि मामलों के निपटारे में देरी के कारणों में से एक ‘समय काटने के लिए वाद दायर किया जाना’ भी है।
भारत-सिंगापुर मध्यस्थता शिखर सम्मेलन ‘मेकिंग मीडिएशन मेनस्ट्रीम: रिफ्लेक्शंस फ्रॉम इंडिया एंड सिंगापुर’ में उन्होंने कहा कि किसी भी समाज में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक सहित तमाम कारणों से संघर्ष होगा ही। इस संघर्ष के समाधान के लिए तंत्र विकसित करने की जरूरत है। सीजेआई ने संघर्ष समाधान के लिए मध्यस्थता के प्रयास का उदाहरण देते हुए महाभारत का जिक्र किया।
सीजेआई रमन ने कहा कि भारतीय मूल्यों में मध्यस्थता गहराई से अंतर्निहित है और यह भारत में ब्रिटिश वाद-प्रतिवाद प्रणाली से पहले भी मौजूद थी। विवाद के समाधान के लिए विभिन्न स्वरूपों में मध्यस्थता का सहारा लिया जाता था। उन्होंने कहा कि कई एशियाई देशों में विवादों के सहयोगपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण समाधान की समृद्ध परंपरा रही है।
उन्होंने कहा, ‘भारत का महान महाकाव्य, महाभारत, असल में संघर्ष समाधान के माध्यम के रूप में शुरू में मध्यस्थता के प्रयास का उदाहरण उपलब्ध कराता है जहां भगवान कृष्ण ने पांडवों और कौरवों के बीच विवाद में मध्यस्थता का प्रयास किया। यह याद करना उचित होगा कि मध्यस्थता की कोशिश नाकाम होने का भयावह परिणाम निकला।’
प्रधान न्यायाधीश ने वाद-प्रतिवाद प्रणाली पर एक चुटकुला सुनाते हुए कहा कि जब एक न्यायाधीश अखबार पढ़ते हुए सुबह की कॉफी चुस्की ले रहे थे तो उनकी पोती उनके पास पहुंची और कहा कि ‘दादा मेरी बड़ी बहन ने मेरा खिलौना ले लिया है।’ इस पर न्यायाधीश (दादा) ने तुरंत कहा कि क्या तुम्हारे पास कोई सबूत है?
सीजेआई ने कहा, ‘विचार के रूप में मध्यस्थता, भारतीय मूल्यों में गहराई से अंतर्निहित है। भारत में ब्रिटेन की वाद-प्रतिवाद प्रणाली के पहुंचने से काफी पहले विवाद समाधान के लिए विभिन्न स्वरूपों में मध्यस्थ्ता का इस्तेमाल किया जाता था। विवादों का समाधान प्राय: मुखिया या समुदाय के बड़े लोग किया करते थे।’
सीजेआई रमन ने कहा, ‘अकसर कहा जाता है कि भारत में लंबित मामलों की संख्या 4.5 करोड़ तक हो गई है जिसे मुकदमों के भार से निपटने में भारतीय न्यायपालिका की अक्षमता के रूप में माना जाता है। यह एक अतिशयोक्तिपूर्ण बयान है और यह विश्लेषण सही तरीके से नहीं किया गया है।’ उन्होंने कहा कि मामलों में विलंब के कारणों में से एक ‘समय काटने के लिए वाद दायर किया जाना’ भी है।
फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स