'अधिकारों का उल्लंघन हो तो कोर्ट मूक दर्शक बनी नहीं रह सकती', कोरोना पर सरकार को SC की दो टूक
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत में ज्यादातर लोगों के पास इंटरनेट तक पहुंच नहीं है। देश में 50 फीसदी से कम आवादी के पास वायरलेस डाटा सर्विस है। ऐसे में ये व्यवहारिक नहीं है कि देश की ज्यादातर जनसंख्या अपने दोस्त, एनजीओ और गांव के सोशल सर्विस सेंटर के जरिये वैक्सीनेशन के लिए रजिस्ट्रेशन कराएं। कॉमन सर्विस सेंटर के जरिये रजिस्ट्रेशन कराने के कारण वहां भीड़ ज्यादा इकट्ठी होगी। इससे पहले केंद्र सरकार ने वैक्सीनेशन के लिए कोविन ऐप के जरिये रजिस्ट्रेशन की जरूरत बताई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारतीय संविधान ऐसी परिकल्पना नहीं करता है कि अगर लोगों के अधिकारों का कार्यपालिका की नीतियों के कारण उल्लंघन हो रहा है तो कोर्ट मूक दर्शक बना रहे।
सवाल है कि जो हासिये पर हैं उनका स्लॉट कैसे मिलेगा
सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऑर्डर में कहा है कि हमारा सवाल था और चिंता थी कि जो लोग देश में हासिये पर हैं वह कैसे वैक्सीनेशन कराएंगे। उन्हें कैसे वैक्सीन लेने के लिए स्लॉट मिलेगा वह कैसे कोविन के जरिये रजिस्ट्रेशन कराएंगे क्योंकि वैक्सिनेशन का स्लॉट डिजिटल पोर्टल के जरिये ही मिलता है। तब केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा कि कोविन एप के जरिये रजिस्ट्रेशन होता है और एक मोबाइल पर चार लोगों का रजिस्ट्रेशन हो सकता है। साथ ही सभी ग्राम पंचायत में कॉमन सर्विस सेंटरर है वहां गांव के लोग जाकर ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं ताकि उन्हें वैक्सीन मिले। जो लोग भी डिजिटल फॉर्मेट का इस्तेमाल नहीं करते वह गांव के कॉमन सर्विस सेंटर जाकर दूसरे की मदद से रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं ताकि उन्हें वैक्सीन लगाए जाने के लिए स्लॉट मिल सके। साथ ही परिवार के अन्य लोग, एनजीओ और दोस्त की मद से वह वैक्सीनेशन के लिए स्लॉट बुक कर सकते हैं। अभी सभी के लिए वाक इन सुविधा नहीं है क्योंकि वैक्सीन की उपलब्धता उतनी नहीं है और साथ ही सेंटर पर भीड़ हो सकती है। सरकार ने कहा कि रजिस्ट्रेशन इसलिए भी जरूरी है ताकि उम्र आदि का पता चले और दूसरे डोज के लिए डाटा तैयार हो और लोगों पर ट्रैक रखा जा सके। जब ज्यादा वैक्सीन की उपलब्धता होगी तब स्थिति में बदलाव हो सकता है।
देश में बहुसंख्यक के पास इंटरनेट नहीं….हमें लोगों के स्वास्थ्य के अधिकार की चिंता
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाउसहोल्ड सोशल कंजप्शन एजुकेशन नामक सर्वे में कहा गया कि गांव में 4 फीसदी और शहर में 23 फीसदी आबादी के पास कंप्यूटर है। साथ ही 15 से 29 साल की आयु के 24 फीसदी गांव में और 56 फीसदी शहर के लोगों कंप्यूटर ऑपरेट कर सकते हैं। देश में 24 फीसदी के पास इंटरनेट की सुविधा घर में है। ट्राई की रिपोर्ट कहती है कि देश में वारयलेस डाटा सर्विस लेने वाले आधी से कम आबादी है। बिहार, यूपी और असम जैसे राज्यों में टेली घनत्व 75 फीसदी से कम है। गरीबी रेखा से नीचे आने वाले गांव के लोगों की आय 896 और शहर में प्रति व्यक्ति आय 1316 रुपये है। जबकि इंटरनेट डाटा 49 रुपये का है एक महीने के लिए और इस तरह 4 से 5 फीसदी इनकम इसी में चला जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी स्थिति में ये बात साफ है कि डिजिटल डिविजन है। देश में डिजिटल लिटरेसी कम है। वैक्सीनेशन स्लॉट की सुविधाएं डिजिटल पोर्टल पर है और कोर्ट को लोगों के समानता के अधिकार और हेल्थ के अधिकार की चिंता है। ऐसे में ये व्यवहारिक नहीं है कि ज्यादातर लोग अपने दोस्त और रिश्तेदारों और कॉमन सर्विस सेंटर जाकर वैक्सीेनेशन के लिए स्लॉट बुक करें। कॉमन सर्विस सेंटर अगर लोग स्लॉट के लिए जाएंगे तो वहां भी भारी भीड़ होगी।
वैक्सीनेशन के लिए बनाए गए ऐप ब्लाइंड के योग्य नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोविन और आरोग्य सेतु क्षेत्रिये भाषा में भी होनाचाहिए। कोविन उनके लिए सहूलियत नहीं देता तो ब्लाइंड हैं। उनके लिए ऑडियो टेक्स्ट कैप्चा नहीं है। साथ ही उम्र ग्रुप, वैक्सीन का नाम और फ्री है या नहीं इन बातों की जानकारी कोविन एप पर नहीं है। जिनकी आखों की रौशनी नहीं है उनके लिए तारीख का स्लॉट पता करना मुश्किल है। ऐसे में हम निर्देश देते हैं कि इन असुविधाओं को देखा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने 22 अप्रैल को कोरोना मामले में संज्ञान लिया था और इसके बाद से कई आदेश पारित किए। इसके तहत नैशनल टास्क फोर्स का गठन कर ऑक्सीन की उपलब्धता, जरूरत और सप्लाई के बारे में सिफारिश करने को कहा था। साथ ही केंद्र सरकार से वैक्सीन पॉलिसी पर सवाल किए थे। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट को केंद्र सरकार ने बताया कि देश भर में दिसंबर 2021 तक वैक्सीनेशन पूरा हो जजाएगा। इसके लिए वैक्सीन बनाने वाली विदेशी कंपनियों से बातचीत चल रही है। 16 जनवरी से वैक्सीेनेशन शुरू हुआ है। पहले हेल्थ केयर वर्कर और फ्रंट लाइन वर्कर को दिया गया फिर 60 साल से ऊपर और उसके बाद 45 से ऊपर के लोगों को वैक्सीन दिया गया। अब 18 से 44 के लोगों को भी दिया जा रहा है।
31 दिसंबर 2021 तक कैसे 100 करोड़ को वैक्सीेन दिया जाएगा उसका कोई प्रोजेक्शन नहीं: कोर्ट सलाहकार
कोर्ट सलाहकार जयदीप पुरी और मीनाक्षी अरोड़ा ने वैक्सीन वितरण पर सवाल किया। साथ ही अलग-अलग कीमत का भी मसला उठाया। साथ ही कहा कि विदेशी वैक्सीन निर्माता कंपनियां राज्य सरकारों से बात नहीं करती वह देश के केंद्रीय सरकार से ही बात करती है। साथ ही न्यूज रिपोर्ट का हवाला देकर कहा कि जो लोग अंतिम संस्कार में लगे हैं उन्हें जागरुकता नहीं है और वैक्सीेनेशन नहीं हो पाया है। केंद्र ने कहा है कि 31 दिसंबर 2021 तक 100 करोड़ को वैक्सीन लग जाएगा यानी इसके लिए 200 डोज की जरूरत होगी। लेकिन ये टारगेट कैसे पूरा होगा इसका कोई प्रोजेक्शन नहीं है। तमाम तथ्य हैं जो बताते हैं कि वैक्सीन का प्रोड़क्शन कम है। 18 से 44 साल के लोगों की जनसंख्या 59 करोड़ है और इस तरह 120 करोड़ डोज की जरूरत नहीं पड़ेगी। जो रिपोर्ट है उसके तहत सीरम इंस्टिट्यूट और भारत बायोटेक 10 करोड़ प्रति महीने से कम डोज तैयार करेगी साथ ही स्पुतनिक 15 से 20 करोड़ देगी तब भी 12 महीने लगेंगे 18 से 44 साल के वर्ग आयु के लोगों को वैक्सीनेशन करने में। इस दौरान वायरस म्यूटेट करेगा और इस तरह और वेब आने का अंदेशा है। साथ ही देश भर में शवों के अंतिम संस्कार के लिए प्रोपर शवदाह की जगह होनी चाहिए और इसके लिए गाइडलाइंस हो।
सुप्रीम कोर्ट ने लिबरलाइज्ड वैक्सीन पॉलिसी पर भी किया सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से लिबरलाइज्ड वैक्सीनेशन पॉलिसी को लेकर भी सवाल किया था। सुप्रीम कोर्ट में तब केंद्र ने कहा था कि 16 जनवरी से वैक्सीेनेशन शुरू हुआ और बाद में एक मई से लिबरलाइज्ड वैक्सीनेशन पॉलिसी लागू किया गया। इसके लिए राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों का अाग्रह था। एक्सपर्ट ने भी इसके लिए राय दी थी। इसके पीछे मकसद है कि वैक्सीनेशन प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण किया जाए ताकि वैक्सीनेशन प्रोसेस आखिरी छोर तक पहुंच सके। केंद्र ने कहा कि जुलाई 2021 तक सीरम 5 से 6.5 करोड़ डोज प्रति महीने, भारत बायोटेक 90 लाख से दो करोड़ डोज प्रति महीने जुलाई से बनाएगी। साथ ही स्पुतनिक 1.2 करोड़ डोज तक बनाएगी। लिबरलाइज्ड वैक्सीेनेशन पॉलिसी इसलिए लायी गई है ताकि और ज्यादा वैक्सीन निर्माता कंपनियां सामने आएं और जल्दी से जल्दी वैक्सीनेशन प्रक्रिया पूरी की जा सके। निर्माताओं को पहले बताना होगा कि खरीद की कीमत क्या होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने अपने आम बजट में 35 हजार करोड़ वैक्सीन खरीद के लिए आवंटित किए थे। केंद्र सरकार बताए कि कैसे इस फंड का इस्तेमाल हो रहा है और 18 साल से44 साल के लोगों के लिए इस फंड का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जा रहा है। केंद्र का कहना है कि लिबरलाइज्ड पॉलिसी के कारण गरीब सफर नहीं करेंगे। अदालत ने कहा कि इसका मतलब साफ है कि तीन फेज के लिए केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है और 18 से 44 साल के लोगों के लिए जिम्मेदारी राज्य सरकार पर है।
वैक्सीन रखने के लिए कोल्ड स्टोरेज को बेहतर करने के लिए क्या कदम उठाए
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से साफ करने को कहा है कि वह बताए कि देश भर के कोल्ड स्टोरेज उपकरण जहां वैक्सीन रखी जा रही है उसकी स्थिति क्या है। उसकी क्षमता कितनी है। इस तरह का लॉजिस्टिक बर्डेन कैसे पूरा किया जाएगा। क्या वैक्सीन के रखरखाव के लिए कोल्ड स्टोरेज की संख्या बढ़ाई जा रही है। मार्च 2020 से पहले कितनी थी और अभी कितनी है। सरकार ने कोल्ड स्टोरेज की क्षमता को बेहतर करने के लिए क्या कदम उठाए हैं।
कोर्ट मूक दर्शक बनी नहीं रह सकती
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारतीय संविधान ऐसी परिकल्पना नहीं करता है कि अगर लोगों के अधिकारों का कार्यपालिका की नीतियों के कारण उल्लंघन हो रहा है तो कोर्ट मूक दर्शक बना रहे। सुप्रीम कोर्ट ने कोविड मामले में ये टिप्पणी तब कि जब केंद्र सरकार ने कहा कि कोविड मामले में सरकार के नीतिगत फैसले में अदालत को दखल नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर चल रही है और कोर्ट अपने जूरिडिक्शन का इस्तेमाल जारी रखेगी और देखेगी कि पॉलिसी तर्क की कसौटी पर बैठती हो, मनमाना न हो और लोगों के अधिकार को प्रोटेक्ट करता हो। अदालत ने कहा कि अधिकारों का बंटवारा संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर का पार्ट है। जो भी नीति बनाने का काम है वह कार्यपालिका के पाले में है और हमारे संविधान की परिकल्पना ये नहीं कहती है कि कोर्ट तब मूक दर्शक बना रहे जब कार्यपालिका की नीति लोगों के संवैधानिक अधिकार में दखल दे रहा हो।
साभार : नवभारत टाइम्स