गरीबों के कोटे से सिद्धार्थनगर यूनिवर्सिटी में बने असिस्टेंट प्रफेसर, यूपी के बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई अरुण ने विवाद के बाद दिया इस्तीफा

गरीबों के कोटे से सिद्धार्थनगर यूनिवर्सिटी में बने असिस्टेंट प्रफेसर, यूपी के बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई अरुण ने विवाद के बाद दिया इस्तीफा
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सिद्धार्थनगर
उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई अरुण द्विवेदी ने असिस्टेंट प्रफेसर के पद से इस्तीफा दे दिया है। वह मनोविज्ञान विभाग में ईडब्ल्यूएस कोटे में नियुक्त हुए थे। मामला सार्वजनिक होने के बाद राजभवन ने इस केस में रिपोर्ट मांगी थी। विपक्ष ने भी बेसिक शिक्षा मंत्री को निशाने पर लिया था। विवाद तूल पकड़ने के बाद अरुण द्विवेदी ने इस्तीफा दे दिया है।

हालांकि सतीश चंद्र द्विवेदी के भाई अरुण ने अपने इस्तीफे में व्यक्तिगत कारणों का हवाला दिया है। उनका इस्तीफा सिद्धार्थ विश्वविद्यालय कपिलवस्तु के वीसी ने स्वीकार कर लिया है।

यह है पूरा मामला
उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा मंत्री सतीश चंद्र द्विवेदी के भाई अरुण द्विवेदी की सिद्धार्थ नगर स्थित सिद्धार्थ विश्वविद्यालय में सहायक प्रफेसर के पद पर नियुक्ति की गई। हैरानी वाली बात यह है कि यह नियुक्ति आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग कोटे से मनोविज्ञान विभाग में की गई।

शिक्षा मंत्री ने दी सफाई
इन आरोपों को सूबे के शिक्षा मंत्री सतीश द्विवेदी ने निराधार करार दिया था। सतीश चंद्र द्विवेदी ने कहा कि चयन के लिए विश्वविद्यालय को जो प्रक्रिया करनी थी, उसमें उन्होंने कोई हस्तक्षेप नहीं किया। EWS कोटे पर उन्होंने कहा कि उनके और भाई की आय में अंतर है। साथ ही मंत्री ने भी यह भी स्पष्ट किया कि अगर किसी को कुछ भी गलत लगता है तो वह जांच के लिए तैयार हैं।

विवि बोला-नियुक्ति में प्रक्रिया का पूरा पालन
सूत्रों के अनुसार विश्वविद्यालय ने राजभवन को भेजी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि विश्वविद्यालय के 22 विभागों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अक्टूबर-नवंबर 2019 में आवेदन मांगे गए थे। यह प्रक्रिया दिसंबर तक चली। इसके बाद कोविड संक्रमण के चलते नियुक्ति प्रक्रिया प्रभावित रही। जुलाई 2020 से आवेदनों की स्क्रीनिंग शुरू हुई और एकेडमिक परफॉर्मेंस व एपीआई स्कोर के आधार पर अभ्यर्थी शॉर्टलिस्ट किए गए। नियुक्ति पूरी तरह नियमानुसार हुई है। यह देखा जाता है कि आवेदन के समय आवेदक उस कोटे के लिए अर्ह है या नहीं। चयन के बाद अभ्यर्थी से सभी मूल प्रमाणपत्र मांगे जाते हैं। आरक्षण का अद्यतन प्रमाणपत्र भी जमा करना होता है।

10 लोगों के हुए थे इंटरव्यू
नवंबर के बाद विभागवार इंटरव्यू आयोजित हुए। मनोविज्ञान विभाग में असिस्टेंट प्रफेसर के लिए 27 फरवरी को इंटरव्यू हुआ था। इसके लिए बनी कमिटी में राजभवन से नामित दो एक्सपर्ट व संकाय के डीन सदस्य थे। कमिटी ने शॉर्टलिस्ट किए 10 अभ्यर्थियों के इंटरव्यू लिए, जिसमें अरुण द्विवेदी दूसरे स्थान पर थे। इंटरव्यू, एपीआई व एकेडमिक स्कोर के आधार पर अरुण पहले स्थान पर आए और उनकी नियुक्ति की गई।

‘प्रशासन ने जारी किया EWS प्रमाणपत्र’
अरुण का ईडब्ल्यूएस का प्रमाणपत्र जिला प्रशासन ने जारी किया था और आवेदन की कट ऑफ डेट पर सारी अर्हताएं पूरी कर रहे थे। दस्तावेजों की जांच के बाद 2019 में प्रमाणपत्र जारी किया गया था। यह एक साल के लिए वैध होता है। एक साल बाद फिर आवेदन होने पर दुबारा दस्तावेजों और तथ्यों की जांच के बाद ही प्रमाणपत्र दिया जाता है। अभी मेरे पास कोई शिकायत नहीं आई है।

विपक्ष ने भी उठाए थे सवाल
विपक्षी दल भी इस पर सवाल उठा रहे हैं। कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा कि यूपी के बेसिक शिक्षा मंत्री के भाई गरीब बनकर असिस्टेंट प्रफेसर की नियुक्ति पा गए। लाखों युवा रोजगार की राह ताक रहे हैं, लेकिन नौकरी ‘आपदा में अवसर’ वालों की लग रही है। ये गरीबी व आरक्षण दोनों का मजाक उड़ा रहे हैं। आप के यूपी प्रभारी संजय सिंह ने भी इसे नौकरी के लिए लाठी खा रहे युवाओं का अपमान बताया है। समाजवादी पार्टी ने ट्वीट कर कहा है कि प्रदेश में सिर्फ भ्रष्टाचार ही शेष है। मंत्री का इस्तीफा लेकर नियुक्ति निरस्त होनी चाहिए।

साभार : नवभारत टाइम्स

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