Kisan Andolan : राजनीति को महामारी से दूर रखें राकेश टिकैत

Kisan Andolan : राजनीति को महामारी से दूर रखें राकेश टिकैत
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नई दिल्‍ली
देश में कोरोना का कहर जारी है। रोज हजारों लोग इस महामारी की चपेट में आकर जान गंवा रहे हैं। वहीं, तीन कृषि कानूनों के विरोध में किसानों का प्रदर्शन भी ठंडा नहीं पड़ा है। अब भी बॉर्डरों पर किसान डटे हैं। किसान नेता ने इस आंदोलन को हवा दी हुई है।
किसानों का बॉर्डरों पर बड़ी संख्‍या में जमा होना कोरोना को खुली दावत है। ऐसे समय जब कोरोना को काबू करने में सरकाराें के होश उड़े हुए हैं, तब किसी को भी राजनीतिक रोटियां सेंकने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।

किसी मुद्दे को लेकर आवाज उठाना और लोगों का समर्थन जुटाने में कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन, यह समय उसके लिए मुफीद नहीं है। सोमवार को हरियाणा के हिसार में किसानों के प्रदर्शन के दौरान एक किसान की मौत भी हो गई। इस प्रदर्शन में भारतीय किसान यूनियन (BKU) के नेता राकेश टिकैत भी मौजूद थे।

कैसे बिगड़े हालात?
मामले ने कैसे तूल पकड़ा इसके लिए थोड़ा पीछे जाना होगा। हाल में हरियाणा के मुख्‍यमंत्री मनोहर लाल खट्टर हिसार में कोविड अस्पताल का उद्घाटन करने पहुंचे थे। उनके खिलाफ किसानों ने प्रदर्शन किया। इसके बाद पुलिस और किसानों में झड़प हुई। इसमें पुलिसकर्मी और किसान दोनों घायल हुए। कई किसानों के खिलाफ तमाम धाराओं में केस दर्ज किए गए।

इन मुकदमों को वापस लेने की मांग करते हुए बड़ी संख्‍या में किसान जुटे। इस दौरान टिकैत ने कहा कि किसान मुकदमे खारिज करवाने के बाद ही हिसार से जाएंगे। प्रदर्शन स्‍थल पर पुलिस बल और किसान दोनों ही बड़ी संख्‍या में जुटे थे। यहां सोशल डिस्‍टेंसिंग के नियमों की खुलकर धज्जियां उड़ती दिखीं। इसके पहले पर प्रदर्शन कर रहे किसानों के कोरोना से संक्रमित होने की खबरें आ चुकी हैं।

सुपर स्‍प्रेडर बन रहा टिकरी-सिंघु बॉर्डर?
टिकरी-सिंघु बॉर्डर पर कृषि कानूनों के विरोध में कई महीनों से किसान भारी संख्‍या में जमे हैं। उन्‍हें हटाने की कई बार कोशिश की जा चुकी है। लेकिन, प्रशासन को इसमें नाकामी ही हाथ लगी है। पिछले साल सितंबर में किसानों ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आवाज बुलंद की थी। किसान अपनी मांगों को लेकर अब भी अड़े हैं। इस दौरान सरकार ने किसानों के साथ कई दौर की वार्ता की, लेकिन बात नहीं बनी। किसान चाहते हैं कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस ले। इसमें वे किसी भी तरह का समझौता नहीं चाहते हैं।

सरकार की प्राथमिकता बदली
सरकार का पूरा फोकस कोरोना को काबू करने पर है। उसने इसी में पूरी ताकत झोंक दी है। लिहाजा, किसानों के साथ बैठकों का दौर भी थमा हुआ है। यह अलग बात है कि किसान अब भी बॉर्डर पर डटे हुए हैं। कोरोना की दूसरी लहर बेहद घातक साबित हुई है। पहली लहर के मुकाबले इसमें कहीं ज्‍यादा लोगों ने जान गंवाई है। ऐसे समय में जब सभी अपने कामकाज को रोककर घरों में बैठे हुए हैं और अपने साथ दूसरों को भी संक्रमित होने से बचा रहे हैं। तब टिकैत का किसान आंदोलन का यूं हवा देना वाकई सवाल खड़े करता है।

आंदोलन का चेहरा बन चुके हैं टिकैत राकेश टिकैत अब किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके हैं। कोरोना के बीच लोगों को जुटाने के लिए उनके खिलाफ कई मामले दर्ज हो चुके हैं। उनकी अपील पर निश्चित ही किसान घर लौट सकते हैं। कोरोना के रूप में देश एक अदृश्‍य दुश्‍मन से लड़ रहा है। देशहित में टिकैत किसानों से फिलहाल प्रदर्शन रोकने का आह्वान कर सकते हैं। इससे वह सिर्फ किसानों की ही नहीं, बल्कि तमाम और की जान को खतरे में डालने से बचा सकते हैं। सवाल है कि क्‍या टिकैत इस बारे में सोचेंगे या अपनी राजनीति को जारी रखेंगे। सभी के लिए अच्‍छा यही हाेगा कि टिकैत राजनीति काे महामारी से दूर रखें।

साभार : नवभारत टाइम्स

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