पश्चिम बंगाल में पहले चरण में पड़े बंपर वोट, TMC या BJP किसे होगा बड़ा फायदा?
ज्यादा वोटिंग प्रतिशत का मतलब सत्ताधारी दल के खिलाफ माहौल?
दरअसल आमतौर पर ज्यादा वोटिंग परसेंटेज को सीधे तौर पर सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ जनमत के तौर पर देखा जाता है। कई बार यह थिअरी सही भी साबित हुई है। हालांकि बंगाल के मामले में यह थिअरी फिट नहीं बैठती और कई बार गलत साबित हुई है। बंगाल का तो आमतौर पर भारी संख्या में वोटिंग करने का रेकॉर्ड रहा है, फिर चाहे वह लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा चुनाव। बात विधानसभा चुनावों की करें तो साल 1996 में बंगाल में 82.91 फीसदी वोटिंग हुई थी, मगर नतीजा सत्ताधारी सीपीएम के पक्ष में ही रहा। 2006 के विधानसभा चुनावों से पहले ममता ने बंगाल में अपने पैर जमाने की काफी कोशिश की, मगर वह सीपीएम की जड़ें नहीं हिला सकीं। उस साल विधानसभा चुनावों में 81.92 फीसदी वोटिंग हुई और फायदा सीपीएम को ही हुआ।
ममता ने पहले भी इस थिअरी को गलत साबित किया, मगर इस बार चुनौती अलग
साल 2011 में ममता ने वाम मोर्चे की 34 साल पुरानी सत्ता को उखाड़ फेंका और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री पद पर काबिज हुईं। 2016 में उनके खिलाफ काफी माहौल बनाया गया, राज्य में 83.07 फीसदी वोटिंग हुई मगर यह इस बार भी सत्ताधारी दल (इस बार टीएमसी) के पक्ष में रही। इस बार के चुनाव हर बार से थोड़े अलग हैं और वह इसलिए क्योंकि इस बार सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ मुख्य मुकाबले में बीजेपी है जिसका 2016 के विधानसभा चुनावों तक राज्य में खुद के दम पर कोई खास जनाधार नहीं था। 2019 के लोकसभा चुनाव में 18 सीटें जीतकर बीजेपी का हौसला बुलंद है और वह इस बार को सत्ता से बेदखल तक करने का दावा कर रही है।
दोनों पक्षों ने की जमकर वोटिंग, मगर फायदा किसे?
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार नीरेंद्र नागर का साफ मानना है कि पिछले कई मौकों की तरह 80 फीसदी से ज्यादा वोटिंग पर्सेंटेज का फायदा सत्ताधारी पार्टी (टीएमसी) को ही मिलता दिख रहा है। इसके पीछे उन्होंने कई वजहें गिनाईं। एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘बढ़े वोटिंग पर्सेंटेज का सीधा सा मतलब है कि चुनाव में दोनों पक्षों ने जमकर वोट किया है। मगर इसका फायदा टीएमसी को मिलता दिख रहा है। उसकी वजह है कि तृणमूल के पास पार्टी को लेकर प्रतिबद्ध वोटर भारी तादाद में हैं और वे पार्टी को जिताने के लिए पोलिंग बूथ तक जरूर जाएंगे। जो कुछ टीएमसी से नाराज भी होंगे, वे भी निश्चित तौर पर पोलिंग बूथ तक तो आए ही हैं। क्योंकि अगर ऐसा न होता तो मतदान प्रतिशत काफी नीचे जाता और उस दशा में टीएमसी को सीधा नुकसान होता।’
महिलाओं की ‘चुप्पी’ में छिपा टीएमसी की जीत का रहस्य!
उन्होंने आगे बताया, ‘टीएमसी के हावी रहने की वजह यह भी है कि उसके पास महिलाओं का साथ अच्छी-खासी संख्या में है। मैंने कई ओपिनियन पोल्स देखे मगर उनमें टीएमसी की इस ताकत के बारे में कहीं बात नहीं हो रही है। ग्रामीण महिलाओं और ऐसे ही साइलेंट वोटर्स की राय को जाने बिना बंगाल चुनाव के नतीजों का अंदाजा तो नहीं लगाया जा सकता है। ऐसी महिलाओं का 60:40 के अनुपात में वोट ममता के पक्ष में जाता दिख रहा है, मगर इसकी चर्चा ओपिनियन पोल्स में नहीं है।’
साभार : नवभारत टाइम्स