मोरेटोरियम अवधि के ब्याज पर ब्याज नहीं…लेकिन मोरेटोरियम अवधि अब नहीं बढ़ेगी

मोरेटोरियम अवधि के ब्याज पर ब्याज नहीं…लेकिन मोरेटोरियम अवधि अब नहीं बढ़ेगी
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नई दिल्ली
ने अपने फैसले में कहा है कि कोराना महामारी के दौरान पिछले साल मार्च से लेकर अगस्त तक की मोरेटोरियम अवधि के लिए ब्याज पर ब्याज नहीं लगेगा। अगर इस दौरान ब्याज पर ब्याज लिया गया है तो वह रिफंड होगा या फिर उसे अगले किश्त में एडजस्ट किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने अवधि बढ़ाने जाने की गुहार को भी ठुकरा दिया है।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि केंद्र सरकार के के वित्तीय नीतियों का जूडिशियल रिव्यू तब तक नहीं हो सकता जब तक कि वह पॉलिसी मनमाना और दुर्भावपूर्ण न हो। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में स्पष्ट किया है कि किसी भी लोन अमाउंट पर मोरेटोरियम अवधि के दौरान ब्याज पर ब्याज नहीं लगेगा।

मोरेटोरियम अवधि के ब्याज पर ब्याज का कोई जस्टिफिकेशन नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ब्याज पर ब्याज तब लिया जाता है जब जानबूझकर लोन लेने वालों ने डिफॉल्ट किया हो। अगर जानबूझकर लोन लेनदार अपनी किश्त देने में डिफॉल्ट करता है तो ब्याज पर ब्याज चार्ज होता है। लेकिन सरकार ने मौजूदा मामले में छह महीने का लोन मोरेटोरियम की घोषणा की यानी सरकार ने किश्त की अदायगी को छह महीने के लिए टाल दिया था।

ऐसे में इस दौरान किश्त न भरना लोन लेनदारों का जानबूझकर किया गया डिफॉल्ट नहीं माना जाएगा और अगर इस अवधि के ब्याज पर ब्याज चार्ज किया जाता है तो वह पीनल इंट्रेस्ट की तरह होगा और इस तरह से देखा जाए तो मोरेटोरियम अवधि के लिए ब्याज पर ब्याज चार्ज किए जाने का कोई जस्टिफिकेशन नहीं है।

मोरेटोरियम अवधि बढ़ाने की दलील खारिज
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मोरेटोरियम अवधि के लिए साधारण ब्याज पर पूरी तरह से छूट देना संभव नहीं है। क्योंकि बैंक को डिपॉजिटर से लेकर पेंशनर सभी को उनके निवेश के बदले ब्याज देना होता है। बैंक का अपना प्रशासिनक खर्चा भी है। पूरी तरह से साधारण ब्याज को खत्म करने से देश और बैंक पर विपरीत वित्तीय प्रभाव पड़ेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि मोरेटोरियम अवधि को छह महीने से ज्यादा बढ़ाया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही सेक्टर वाइज पैकेज देने की गुहार को भी ठुकरा दिया है।

दो करोड़ तक के लोन के मोरेटोरियम छूट का आधार क्या है कोई जस्टिफिकेशन नहीं ऐसे में ये मनमाना करार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दो करोड़ तक के लोन पर मोरेटोरियम छूट का आधार क्या है ये उपलब्ध नहीं है। अदालत ने कहा कि सरकार ने आठ कैटगरी के दो करोड़ तक के लोन पर मोरेटोरियम का लाभ देने की घोषणा की थी, यानी इसी दायरे में रिलीफ को सीमित किया गया लेकिन रिलीफ को सीमित करने का कोई जस्टिफिकेशन नहीं है कि क्यों दो करोड़ तक के लोन और अमुक कैटगरी को ही रिलीफ दिया गया।

क्या आधार है ऐसे रिलीफ को सीमित करने का ये उपलब्ध नहीं है। कोई तार्किकता नहीं है कि दो करोड़ तक के लोन पर ही रिलीफ क्यों दिया गया। अदालत ने कहा कि कई केस ऐसे हैं जिनमें लोन दो करोड़ से ज्यादा सेंक्शन हुए और आउटस्टैंडिंग दो करोड़ से ज्यादा हैं तो उन्हें रिलीफ से अयोग्य माना गया। उदाहरण के तौर पर अगर एमएसएमई लोन 1.99 करोड़ बकाया था और उसका एक लाख 10 हजार क्रेडिट कार्ड का बकाया था तो वह 2 करोड़ 10 हजार हो गया और वह रिलीफ से अयोग्य माना गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी तमाम शर्तें मनमाना और भेदभावपूर्ण है।

सरकार महामारी में खुद वित्तीय चिंताओं से गुजरी है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार के उस फैसले में कोर्ट दखल नहीं दे सकता कि सरकार रिलीफ के लिए क्या प्राथमिकताएं तय करती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार महामारी के दौरान खुद काफी वित्तीय परेशानी से गुजरी है। सरकार रिलीफ के लिए प्राथमिकता खुद तय करती है, उसमें दखल नहीं हो सकता।

सुप्रीम कोर्ट में स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीयल मैन्यूफैक्चरर असोसिएशन की ओर से अर्जी दाखिल कर रिलीफ की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 17 दिसंबर को मामले में ऑर्डर रिजर्व कर लिया था। पिछले साल 27 मार्च को आरबीआई ने सर्कुलर जारी किया था और बाद में फिर सर्कुलर जारी किया गया और एक मार्च से लेकर 31 अगस्त 2020 तक की अवधि के लिए मोरेटोरियम दिया था यानी ईएमआई स्थगित कर दिया था।

अर्थव्यवस्था का मामला नीतिगत…जूडिशियल रिव्यू का स्कोप लिमिटेड
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार ने तमाम कदम उठाए थे। ये नहीं कहा जा सकता है कि सरकार और आरबीआई ने लोन लेने वालों को रिलीफ नहीं दिया और उस पर विचार नहीं किया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अर्थव्यवस्था का मामला नीतिगत फैसले का होता है। और जूडिशियल रिव्यू का स्कोप लिमिटेड है। वित्तीय नीति ऐसे फिल्ड होते हैं जहां कोर्ट को सावधानी से चलना होता है क्योंकि जज एक्सपर्ट नहीं होते हैं। वित्तीय पैकेज, रिलीफ सरकार देती है और आरबीआई और अन्य एक्सपर्ट बॉडी की सलाह पर वह नीति तय करती है।

अदालत ने कहा कि कोर्ट का इसमें दखल नहीं होता है। यहां तक कि अगर कोई दूसरा ओपिनयिन भी सामने आ रहा हो तो भी कोर्ट दखल नहीं दे सकती है। पॉलिसी की वैधता और उसकी शुद्धता जूडिशियल रिव्यू के दायरे में नहीं ह ोता है। कार्यपालिका के पॉलिसी मैटर के मामले में अदालत अपीलीय फोरम नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कई पहले के फैसले का हवाला दिया और कहा कि जूडिशियल रिव्यू का ऐसे मामले में लिमिटेड स्कोप है। अगर कोई जबर्दस्त अनियमितताएं और दुर्भावना वाले मैटर हैं तो जूडिशियल रिव्यू हो सकता है।

सरकार ने महामारी के दौरान तमाम कदम उठाएं उसकी अपनी वित्तीय चिंताएं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार और आरबीआई अमुक सेक्टर को रिलीफ दे इसके लिए हम नहीं कहेंगे ये कोर्ट का काम नहीं है। याचिकाकर्ता ने गुहार लगाई थी कि सेक्टरवाइज रिलीफ के लिए सरकार को कहा जाए। सुप्रीम करो्ट ने कहा कि वह इस बात को तय नहीं कर सकता है कि रिलीफ की प्रकृति क्या होगा। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि खुद सरकार ने महामारी में वित्तीय तौर पर सफर किया है और जीएसटी का जबर्दस्त हानि हुई है।

सरकार की अपनी वित्तीय चिंताएं हैं। महामारी का असर सभी सेक्टर पर हुआ है। सरकार ने तमाम कदम उठाए हैं माइग्रेंट से लेकर ट्रांसपोर्टेशन तक के मामले में काम किया गया है। केंद्र और आरबीआई ने लोन क्रेताओं के लिए तमाम कदम उठाए हैं। गरीब कल्याण पैकेड दो लाख करोड़ दए हैं। फ्री में अनाज, दाल , गैस, कैश पेमेंट आदि दिए गए। गरीब, महिलाएं और सीनियर सिटिजन को लाभ पहुंचाए गए।

आत्मनिर्भर पैकेज, पावर सेक्टर, एमएसएमई सेक्टर , रियल ईस्टेट सेक्टर आदि को रिलीफ दिए गए। 3 लाख करोड़ का इमर्जेंसी क्रेडिट लिंक गारंटी स्कीम दिए गए। कम रेट पर लोन दिए गए। गौरतलब है कि सरकार ने मोरेटोरियम की घोषणा की थी और दो करोड़ तक के एमएसएमई लोन, एजुकेशन लोन, हाउसिंग लोन, क्रेडिट कार्ड लोन, आटोलोन, पर्सनल लोन आदि को मोरेटोरियम अवधि का लाभ दिया था।

पिछले साल दिसंबर में ऑर्डर रिजर्व हुआ था
पिछले साल 3 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट को केंद्र ने बताया था कि मोरेटोरियम अवधि के लिए ब्याज पर ब्याज की छूट हाउसिंग लोन,एजुकेशन लोन, ऑटो लोन, क्रेडिट कार्ड का बकाया, प्रोफेशनल्स उपभोग के लिए लिए जाने वाले लोन औरकंज्यमर ड्यूरेबल लोन आदि के लिए होगा और ये लोन दो करोड़ तक का होना चाहिए उस पर ब्याज पर ब्याज की छूट होगी।

अदालत में केंद्र सरकार ने कहा था कि सरकार इसके लिए संसद सेअनुदान अनुमति मांगेगी। अदालत को बताया गया कि ब्याज पर ब्याज की छूट का जो फैसला किया गया है वही एक उपाय बचा हुआ था और यही समाधान का रास्ता निकाला गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था

साभार : नवभारत टाइम्स

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