…तो 7 साल पहले ही दे दी गई थी उत्तराखंड की इस तबाही की चेतावनी, नहीं दिया गया ध्यान

…तो 7 साल पहले ही दे दी गई थी उत्तराखंड की इस तबाही की चेतावनी, नहीं दिया गया ध्यान
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नई दिल्ली
उत्तराखंड के जिले में आयी आपदा की चेतावनी 2014 में दी गई थी मगर सुप्रीम कोर्ट की एक्सपर्ट कमिटी की इस चेतावनी को भी अनसुना कर दिया गया। पर्यावरण से जुड़े एक्सपट्र्स कहते हैं कि इस बड़ी घटना को प्राकृतिक आपदा कहना बेमानी होगा। जोशीमठ के तपोवन इलाके में जान-माल का यह बड़ा नुकसान ग्लेशियर टूटने से नहीं हुआ, बल्कि यह खुद के लिए खड़ढा खोदने वाली मिसाल है।

केदारनाथ आपदा के बाद 2014 में सुप्रीम कोर्ट की एक्सपर्ट कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यह इलाका पैराग्लेशियल जोन में आता है और यहां बन रहे और प्रस्तावित हाइड्रो प्रॉजेक्ट तबाही ही लाएंगे। पर्यावरणविदों का कहना है कि जब रिपोर्ट कह रही है कि यह काफी सेंसेटिव जोन हैं और सुप्रीम कोर्ट के सामने पर्यावरण मंत्रालय भी इस पर हामी भर रही है तो फिर क्यों ऋषि गंगा और धौली गंगा पावर प्रॉजेक्ट पर इतने सालों से काम चलता रहा।

2013 में केदारनाथ आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट ने एक्सपर्टस की हाई पावर कमिटी तैयार की थी। 2014 में इस कमिटी की रिपोर्ट के हवाले गंगा बेसिन में बने 24 प्रस्तावित हाइड्रो प्रॉजेक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया था। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने भी कोर्ट में ऐफिडेविट फाइल कर माना था कि हाइड्रो प्रॉजेक्ट ने हिमालय की इकॉलजी को काफी नुकसान पहुंचाया है।

इस एक्सपर्ट कमिटी के मेंबर और पर्यावरणविद हेमंत ध्यानी कहते हैं, मंत्रालय ने यह तक कहा था कि इन प्रॉजेक्ट की वजह से 2013 की त्रासदी भी पनपी है। मगर कोर्ट ने जब इन पर फैसला लेने के लिए जवाब मांगा तो और स्टडी करने, एक और कमिटी बनाने की बात करके मामला लटका दिया गया। यह केस अब तक कोर्ट में पेंडिंग है।

इस रिपोर्ट में केदारनाथ त्रासदी के पूरे जोन को हाइड्रो प्रॉजेक्ट से खतरा बताया था। हेमंत ध्यानी कहते हैं, यह जोन पैराग्लेशियल जोन है यानी यहां बहुत ग्लेशियर एक्टिविटी होती रहती हैं। ग्लेशियर टूटने से ही इसी जोन में बने ऋषि गंगा और धौली गंगा प्रॉजेक्ट टूटे। वह बताते हैं, इनके अलावा इस जोन में और तीन प्रॉजेक्ट शुरू होने वाले थे, जो सुप्रीम कोर्ट ने बंद करवा दिए वरना तबाही बहुत बड़ी होती। सवाल यह है कि इन दो प्रॉजेक्ट का कंस्ट्रक्शन रोका क्यों नहीं गया था?

जो जोशीमठ में हुआ उसे नेचरल डिजास्टर कहना बेमानी होगा और हादसे में मारे गए लोगों और उनके परिवारों के साथ खिलावाड़ होगा। 7 साल तक देश के अरबों पैसे इस प्रॉजेक्ट में लगाए गए, पर्यावरण बर्बाद किया, नीचे की तरफ लोगों को बसा दिया गया और आखिर में प्रॉजेक्ट तो दूर लोगों की जान तक नहीं बचा पाए। यह आपराधिक लापरवाही है।

इस हादसे के बाद इंडो-नेपाल बॉर्डर पर काली नदी पर 315 मीटर ऊचें प्रॉजेक्ट पंचेश्चर डैम पर भी सवाल उठ रहा है। ध्यानी कहते हैं, यह और खतरनाक होगा। वो जोन भी सेफ नहीं है। एक्सपर्ट कमिटी ने यह भी कहा था कि जिस तरह से 2012 में भागीरथी को सेंसेटिव जोन बनाया गया, उसी तरह हिमालय वैली के जलग्रहण क्षेत्र (कैचमेंट एरिया) इको सेंसटिंव जोन घोषित होने चाहिए और सभी एक्टिविटी के लिए लक्ष्मण रेखा बननी चाहिए।

एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि ग्लेशियर टूटने से आने वाले सैलाब मे पानी को, उसी स्पीड को फिर भी झेला जा सकता है मगर मलबे में बड़े बड़े बोल्डर, पत्थर, सेडिमेंट को नहीं झेला जा सकता। वहीं, नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट (NIDM) में जीएमआर डिविजन के प्रोफेसर और हेड सूर्य प्रकाश कहते हैं, ग्लेशियर टूटना नेचुरल है और यह दुनिया में हर जगह होता है। मगर इसके जोन में बिना प्लानिंग के कंस्ट्रक्शन आपदा को खुद बुलाना है।

एक्सपर्ट्स बेस्ट तरीके बताते हैं मगर उन्हें लागू नहीं किया जाता। इकलॉजी का ख्याल रखते हुए कंस्ट्रक्शन नहीं किया जाएगा, तो यही होगा। चेतावनी एक नहीं कई आयी हैं। अगस्त 2012 में उत्तरकाशी में भागीरथी नदी में ऐसी ही बाढ़ आयी थी और हाइडल प्रॉजेक्ट पर असर पड़ा, 2013 में केदारनाथ त्रासदी में श्रीनगर डैम पर और अब जोशीमठ के ये प्रॉजेक्ट।

साभार : नवभारत टाइम्स

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