मंगलवार की हिंसा से कमजोर हो गया है किसान संघों का पक्ष: कृषि विशेषज्ञ
नए कृषि कानूनों के विरोध में और किसान संगठनों की मांग को लेकर मंगलवार को निकाली गई ‘ट्रैक्टर परेड’ ने दिल्ली की सड़कों पर हिंसक रूप धारण कर लिया। हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी अवरोधकों को तोड़ कर आगे बढ़ गये और लाल किले की प्राचीर पर एक धार्मिक झंडा लगा दिया। भारतीय खाद्य एवं कृषि परिषद के अध्यक्ष एम जे खान ने कहा, ‘एक राष्ट्रीय दिवस पर हुई हिंसा ने दुनिया भर में देश की छवि धूमिल की है। आज, किसान विश्वसनीयता के संकट का सामना कर रहे हैं। इसलिए, समझौता करने के लिए यह एक सबसे अच्छा समय है।’
सहानुभूति गंवाईउन्होंने कहा कि अबतक करीब 40 प्रदर्शनकारी किसान संघ अपने मजबूत पक्ष के साथ सरकार से बातचीत कर रहे थे और सरकार उनकी मांगों को गंभीरता से ले रही थी। उन्होंने इस बात का जिक्र किया, ‘लेकिन आज, सरकार कहीं कम मांगे पूरी करते हुए एक समाधान निकाल सकती है। यह समाधान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की उनकी मांग को स्वीकार करना और कृषि कानूनों को रद्द नहीं करने का हो सकता है।’ खान ने कहा कि 23 फसलों के लिए एमएसपी लागू करने का सरकारी खजाने पर कोई भार नहीं पड़ेगा। व्यापार पर 80,000 से 90,000 करोड़ रुपये का थोड़ा सा प्रभाव पड़ेगा, जिसे उपभोक्ताओं से वसूला जा सकता है।
कृषि विशेषज्ञ विजय सरदाना ने दावा किया कि प्रदर्शनकारी किसान संघों का सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ प्रदर्शन करने में ‘निहित हित’ छिपा हुआ है। कृषि विशेषज्ञ एवं पूर्ववर्ती योजना आयोग के सदस्य रह चुके अभिजीत सेन ने कहा कि अब तक प्रदर्शनकारी किसान संघ ‘एकजुट’ थे लेकिन मंगलवार की घटना के बाद किसान संगठनों को मिलने वाली सहानुभूति अत्यधिक घट गई है। उन्होंने कहा, ‘दोनों ही पक्ष एक दूसरे के पाले में गेंद डाल रहे हैं। वे सचमुच में गंभीर वार्ता नहीं कर रहे हैं।’
केंद्र ने प्रदर्शनकारी किसान संघों के साथ अब तक 11 दौर की वार्ता की है। दसवें दौर की वार्ता में, सरकार ने किसान संघों को नये कृषि कानून एक से डेढ़ साल तक के लिए स्थगित रखे जाने का प्रस्ताव दिया था, जिसे प्रदर्शनकारी किसान संघों ने सिरे से खारिज कर दिया था। हालांकि, 11 वें दौर की वार्ता गणतंत्र दिवस से ठीक पहले हुई। इसमें, सरकार ने किसान संघों को प्रस्ताव पर पुनर्विचार करने और अपने अंतिम फैसले से अवगत कराने को कहा था।
साभार : नवभारत टाइम्स