'प्रदर्शन के नाम पर पूरा शहर बंधक' पढ़िए किसान आंदोलन पर सुप्रीम कोर्ट में आज क्या हुआ
(Supreme Court) ने कहा है कि किसानों (Farmers) को प्रदर्शन करने का अधिकार है लेकिन प्रदर्शन असिंहक होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह एक स्वतंत्र व निष्पक्ष कमिटी बनाने के बारे में विचार कर रहा है, जिसमें एक्सपर्ट होंगे, साथ ही सरकार और किसानों के प्रतिनिधि होंगे, जो बातचीत के जरिये रास्ता निकालने का प्रयास करेंगे। अदालत ने कहा कि कमिटी में पी. साईनाथ जैसे एक्सपर्ट को रखा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रदर्शन का उद्देश्य तभी पूरा हो सकता है, जब किसानों के संगठन और सरकार के प्रतिनिधि बातचीत से रास्ता निकालें। हम इसके लिए कमिटी बनाकर सहूलियत प्रदान करना चाहते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में चली मैराथन सुनवाई की लाइव तस्वीर…
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता: एक संशय बना हुआ है कि क्या कानून की वैधता पर बहस होने वाली है।
चीफ जस्टिस एसए बोबडे: हम कृषि कानून की वैधता पर अभी सुनवाई नहीं कर रहे हैं। हम सिर्फ प्रदर्शन के अधिकार और लोगों के आने जाने के अधिकार पर बात कर रहे हैं।
याचिकाकर्ता के वकील हरीश साल्वे: जो भी दिल्ली में है, उसका अधिकार सीधा और परोक्ष तौर पर प्रभावित हो रहा है। सामानों के आने जाने पर रोक है और कीमतें बढ़ रही हैं। दिल्ली की दो करोड़ जनसंख्या के लिए सब्जी, फल आदि बॉर्डर से आते हैं, जो ब्लॉक कर दिया गया है। प्रदर्शन का मौलिक अधिकार सबको मिला हुआ है लेकिन दूसरे के अधिकार प्रभावित नहीं होने चाहिए और इसमें संतुलन की जरूरत है। जो कीमतें बढ़ रही हैं, उसकी भरपाई नहीं हो सकती।
चीफ जस्टिस: हम साफ करना चाहते हैं कि कानून के खिलाफ प्रदर्शन के अधिकार को हम मान्यता देते हैं। लेकिन इस प्रदर्शन के कारण दूसरे के जीवन और अधिकार प्रभावित नहीं होना चाहिए। हम प्रदर्शन के अधिकार को खत्म नहीं कर सकते। प्रदर्शन जारी रह सकता है लेकिन हिंसा नहीं होनी चाहिए। पुलिस को इस बात को सुनिश्चित करना होगा कि वह अहिंसक प्रदर्शन पर बल प्रयोग न करें।
साल्वे: कोई भी अधिकार पूर्ण नहीं है, प्रदर्शन के अधिकार से लेकर मूवमेंट के अधिकार तक। प्रदर्शन का अधिकार है लेकिन शहर को बंधक नहीं बनाया जा सकता। जो भी संगठन भीड़ इकट्ठा कर रहे हैं, उसकी जिम्मेदारी है कि वह हिंसा के मामले में जिम्मेदारी ले और उसे उसके लिए जवाब देह बनाया जाए। दिल्ली के लोग गड़गांव रहते हैं, उनके आनेजाने के अधिकार में दखल नहीं हो सकता। क्या टैक्स देने वाले की संपत्ति जलाई जाएगी।
चीफ जस्टिस: किसानों को प्रदर्शन का अधिकार है। हम यहां प्रदर्शन के तरीके पर बात कर रहे हैं। हम किसान यूनियन से कहेंगे कि वह प्रदर्शन के क्या विकल्प चुनें कि दूसरे का अधिकार प्रभावित न हो।
साल्वे: सरकार का प्रोटोकॉल हो कि जो प्रदर्शन करते हैं उनके प्रतिनिधि चिन्हित हों और डैमेज की स्थिति में उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाए।
चीफ जस्टिस: लेकिन जो लोग प्रदर्शन के लिए आते हैं उनसे पहले से डिपॉजिट नहीं कराया जा सकता है। पुलिस को भी बल प्रयोग से बचना चाहिए। प्रदर्शन का उद्देश्य भी यह होना चाहिए कि बातचीत से रास्ता निकले। हम उसी के लिए सहूलियत देना चाहते हैं। इसीलिए हम स्वतंत्र व निष्पक्ष कमिटी बनाने का प्रस्ताव दे रहे हैं, वहां दोनों पक्ष अपना केस रखें। कमिटी में दोनों पक्षों को सुने और अपना मत दें, जिसका दोनों पक्षों को पालन करना चाहिए। हम मामले में किसान यूनियन को भी सुनना चाहते हैं।
साल्वे: प्रदर्शन सिर्फ प्रदर्शन करने के लिए हो तो अराजकता होती है।
चीफ जस्टिस: हम भी यही कह रहे हैं। प्रदर्शन अहिंसक होना चाहिए और मुद्दे पर हो। प्रदर्शन में जो फरियादी हैं, वह अपने मत को सही तरह से सामने रखें और दूसरा पक्ष उस पर जवाब दे। और यही काम करने के लिए हम कमिटी का गठन चाहते हैं, हम एक्सपर्ट पी. साईनाथ जैसे लोगों को कमिटी में चाहते हैं। इस दौरान प्रदर्शन असिंहक रहे और आप ( भारत सरकार के अटॉर्नी जनरल की ओर मुखातिव होते हुए) किसी तरह से हिंसा को होने की स्थिति पैदा न करें।
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल: लेकिन किसानों की डिमांड है कि कानून वापस लिया जाए। उन्हें बातचीत के लिए कहा जाए। इस तरह तो बात नहीं बनेगी कि या तो कानून वापस लो या फिर बात नहीं होगी।
चीफ जस्टिस: हमें नहीं लगता कि आपको मानेंगे तभी हमने कमिटी बनाने का फैसला किया है। हमने पहले ही देखा है कि आपकी बातचीत कितनी सफल है।
अटॉर्नी जनरल: 22 दिन से ब्लॉकेज हैं। जबर्दस्त नुकसान हो रहा है। लोग नौकरी पर नहीं जा पा रहे हैं। कोरोना का रिस्क अलग है। एंबुलेंस तक नहीं आ जा रही है। जब ये लोग प्रदर्शन के बाद अपने गांव लौटेंगे तो जंगल की आग की तरह कोरोना वहां फैलाएंगे। ये नहीं हो सकता कि कानून वापस लो नहीं तो अनिश्चितकाल के लिए जमे रहेंगे। ये छह महीने की तैयारी के साथ आए हैं। इस तरह से बॉर्डर ब्लॉक करने की इजाजत तो नहीं हो सकती। वार की स्थिति में ऐसा होता है कि सबकुछ कटऑफ कर दिया जाए।
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चीफ जस्टिस: क्या दिल्ली की सभी आने जाने वाली सड़कें ब्लॉक हैं?
सॉलिसिटर जनरल: टिकरी बॉर्डर और सिंघु बॉर्डर।
चीफ जस्टिस: यानी दिल्ली पूरी तरह से चॉक नहीं है, लगता है कि साल्वे ने कुछ ज्यादा बड़ी बात कर दी।
साल्वे: माई लॉर्ड मुख्य आर्टेरियल रोड बंद हैं।
दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहता: 100 आर्टेरियल रोड हैं, इस तरह की दलील लिखित में दी जाए। इस पिटिशन में दिल्ली सरकार को प्रतिवादी बनाया जाए।
सॉलिसिटर जनरल: ये राजनीतिक प्लेटफॉर्म नहीं है और यहां दिल्ली बनाम यूनियन न किया जाए। आपसी बातचीत से मुद्दे के समाधन का प्रयास हो।
पंजाब सरकार के वकील पी. चिदंबरम: हमें साल्वे की दलील पर ऐतराज है। लोकतंत्र में और क्या हो सकता है। बड़ी संख्या में लोग कानून से असहमत हैं और यही कारण है कि बड़ा प्रदर्शन हैं। याद है वियतनाम युद्ध के खिलाफ अमेरिका में क्या हुआ था। किसानों ने बॉर्डर और सड़क ब्लॉक नहीं किया है, वह तो दिल्ली आना चाहते हैं लेकिन पुलिस ने उन्हें वहां रोका है। फोटोग्राफ में देखा जा सकता कि पुलिस ने बेरिकेटिंग कर रखी है।
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चीफ जस्टिस: कोर्ट तय नहीं करेगी कि कौन आए या नहीं। अगर भीड़ हिंसक हो जाए तो ये देखना पुलिस का काम है। पुलिस गुप्त सूचना के आधार पर एक्ट करती है।
चिदंबरम: लेकिन वह मॉब नहीं हैं, बल्कि किसान संगठन हैं। पुलिस खुद उन्हें रोक रही है और किसानों पर आरोप लगा रही है। ये मुद्दा संसद में डिबेट होना चाहिए।
भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट) के वकील एपी सिंह: ये कृषि प्रधान देश है न कि मल्टी नेशनल प्रधान देश। लॉकडाउन में सबने देखा कि किसानों ने भुखमरी नहीं होने दी। मल्टीनैशनल कंपनी ने ये काम नहीं किया।
चीफ जस्टिस: दिल्ली के लोग भूखे न रहें, ये परेशानी का सबब है। आपको प्रदर्शन का अधिकार है, हम दखल नहीं दे रहे हैं। आप प्रदर्शन करिये लेकिन उद्देश्य तभी सफल हो सकता है जब रास्ता बातचीत का हो। आप सालों प्रदर्शन के लिए तो नहीं बैठ सकते। हमें किसानों की स्थिति का पता है। हम भारतीय हैं। हमें सहानुभूति है। हम प्रदर्शन के तरीके पर बात कर रहे हैं।
साल्वे: इस मामले में कोर्ट को आदेश देना चाहिए कि पुलिस शहर के लोगों की जिंदगी को प्रभावित न होने दे।
चीफ जस्टिस: अटॉर्नी जनरल आप बताएं कि क्या केंंद्र सरकार इस बात का आश्वासन देगी कि जब तक कोर्ट में सुनवाई चल रही है तब तक वह कानून को लागू नहीं करेगी।
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अटॉर्नी जनरल: ये मुश्किल है।
चीफ जस्टिस: क्या केंद्र सरकार कह सकती है कि कानून के तहत एग्जेक्युटिव कार्रवाई नहीं करेगी ताकि बातचीत की सहूलियत हो।
अटॉर्नी जनरल: हम इस बारे में निर्देश लेकर आएंगे।
सॉलिसिटर जनरल: लेकिन ये मुश्किल होगा।
चीफ जस्टिस: अगर अटॉर्नी जनरल निर्देश लेने की बात कर रहे हैं तो आप ऐसा न बोलें। हम प्रतिवादी किसान यूनियन को नोटिस तामिल कराने का आर्डर करते हैं और वेकेशन बेंच के सामने मामला लगाएंगे।
साभार : नवभारत टाइम्स