कौन थे भगवान बसवेश्वर, मैग्नाकार्टा से पहले जिन्होंने लिख दिया था लोकतंत्र का चार्टर

कौन थे भगवान बसवेश्वर, मैग्नाकार्टा से पहले जिन्होंने लिख दिया था लोकतंत्र का चार्टर
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नई दिल्लीप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन की नींव रखने के बाद अपने संबोधन के दौरान को याद किया। उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए कहा कि भले ही दुनिया मानती हो कि विश्व में लोकतंत्र की बुनियाद ‘मैग्नाकार्टा’ से रखी गई, लेकिन हकीकत कुछ और है। पीएम ने कहा कि मैग्नाकार्टा से पहले ही भगवान बसवेश्वर ने लोकसंसद की न केवल रचना की थी बल्कि उसके सुचारू संचालन की व्यवस्था भी की थी। आइए जानते हैं कि आखिर भगवान बसवेश्वर कौन हैं जिन्होंने मैग्नाकार्टा से पहले लोकतंत्र का चार्टर लिख दिया था…

1131 ईस्वी में हुआ था भगवान बसवेश्वर का जन्म
संत बसवेश्वर का जन्म 1131 ईसवी में बागेवाडी (कर्नाटक के संयुक्त बीजापुर जिले में स्थित) में हुआ था। ब्राह्मण परिवार में जन्मे बसवेश्वर के पिता का नाम मादरस और माता का नाम मादलाम्बिके था। 8 साल की उम्र में बसवेश्वर या उपनयन संस्कार (जनिवारा- पवित्र धागा) हुआ, लेकिन विद्रोही बालमन इस परंपरा में नहीं टिका और उन्होंने उस धागे को तोड़ घर त्याग दिया। बसवेश्वरा यहां से कुदालसंगम (लिंगायतों का प्रमुख तीर्थ स्थल) पहुंचे, जहां उन्होंने सर्वांगिण शिक्षा हासिल की।

कलचुरी साम्राज्य में मिला प्रधानमंत्री का पद
बाद के दिनों में संत बसवेश्वर कल्याण पहुंचे जहां उस समय कलचुरी साम्राज्य के शासक बिज्जाला का शासन (1157-1167 ईसवी) था। बसवेश्वर के ज्ञान का सम्मान करते हुए कलचुरी साम्राज्य में उन्हें कर्णिका (अकाउंटेंट) का पद दिया गया। बाद में वह अपने प्रशासकीय कौशल के बदौलत राजा बिज्जाला के प्रधानमंत्री बने। लेकिन बसवेश्वर को असल चिंता समाज की बिगड़ी हुई सामाजिक-आर्थिक दशा की थी। समाज में गरीब-अमीर की खाई लगातार चौड़ी हो रही थी। छुआछूत का व्यापक असर था। लैंगिक भेदभाव वाले समाज में महिलाओं का जीवन नारकीय बना हुआ था।

सामाजिक बुराइयों को घोर विरोध
बसवेश्वर ने इन सभी बुराइयों के खिलाफ जंग छेड़ दी। सोशलिस्ट विचारों के आरंभिक प्रणेता के रूप में बसवेश्वर के एक महान सुधारक बनकर उभरे। उनके लेखन और दर्शन ने समाज में क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत की। उन्होंने अपने अनुभवों को एक गद्यात्मक-पद्यात्मक शैली में ‘वचन’ (कन्नड़ की एक साहित्यिक विधा) के रूप में लिखा।

वीरशैव लिंगायत समाज के संस्थापक हैं भगवान बसवेश्वर
बसवेश्वर ने वीरशैव लिंगायत समाज बनाया, जिसमें सभी धर्म के प्राणियों को लिंग धारण कर एक करने की कोशिश की। बसवेश्वर ने सबसे पहले मंदिरों में व्याप्त भ्रष्टाचार और कुरीतियों को निशाना बनाया, जहां ईश्वर के नाम पर अमीर गरीबों का शोषण कर रहे थे। उनके महत्वपूर्ण कार्यों के लिए उनके युग को ‘बसवेश्वर युग’ का नाम दिया गया। बसवेश्वर को ‘भक्तिभंडारी बसवन्न’, ‘विश्वगुरु बसवण्ण’ और ‘जगज्योति बसवण्ण’ के नाम से भी जाना जाता है।

प्रधानमंत्री ने मैग्नाकार्टा और भगवान बसवेश्वर पर क्या कहा
प्रधानमंत्री ने मैग्नाकार्टा से पहले भारत में संवैधानिक प्रक्रिया का जिक्र करते हुए कहा, ‘हम देखते-सुनते हैं- दुनिया में 13वीं सदी में रचित मैग्नाकार्टा की बहुत चर्चा होती है। कुछ विद्वान इसे लोकतंत्र की बुनियाद भी बताते हैं, लेकिन ये बात भी उतनी ही सही है कि मैग्नाकार्टा से भी पहले 12वीं सदी में भगवान बसवेश्वर का ‘अनुभव मंटवम’ अस्तित्व में आ चुका था।’ पीएम ने आगे कहा, ‘अनुवभ मंटवम के रूप में उन्होंने लोक संसद का ना सिर्फ निर्माण किया था बल्कि उसका संचालन भी सुनिश्चित किया था। भगवान बसवेश्वर ने कहा था, यह अनुभव मंटवम एक ऐसी जनसभा है जो राज्य और राष्ट्र के हित में और उनकी उन्नति के लिए सभी को एकजुट होकर काम करने के लिए प्रेरित करती है। अनुभव मंटवम लोकतंत्र का ही तो एक स्वरूप था।’ आप प्रधानमंत्री के संबोधन में इसका जिक्र नीचे दिए गए यूट्यूब वीडियो में कर्सर को 1.26.26 पर ले जाकर सुन सकते हैं।

चोल साम्राज्य के दौरान पंचायती सिस्टम का जिक्र
पीएम ने कहा कि इस कालखंड के एक और पहले जाएं तो तमिलनाडु में चेन्नै से 80-85 किमी दूर उत्तरामेरूर नाम के गांव में एक बहुत ही ऐतिहासिक साक्ष्य दिखाई देता है। इस गांव में चोल साम्राज्य के दौरान 10वीं शताब्दी में पत्थरों में तमिल में लिखी गई पंचायत व्यवस्था का वर्णन है। इसमें बताया गया है कि कैसे हर गांव कुड़ूंबों में कैटगराइज किया जाता था। इन्हें आज की भाषा में एक वॉर्ड कहा जा सकता है।

पीएम ने कहा, ‘उन कुड़ूंबों से एक-एक प्रतिनिधि महासभा में भेजा जाता था, जैसा आज भी होता है। इस गांव में हजार वर्ष पूर्व जो महासभा लगती थी, वो आज भी वहां मौजूद है। एक हजार वर्ष पूर्व बनी इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक और बात बहुत महत्वपूर्ण थी। उस शिलालेख में वर्णन है कि जनप्रतिनिधि को चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित करने का भी प्रावधान था। नियम था कि जो जनप्रतिनिधि और उसके करीबी रिश्तेदार अपनी संपत्ति का ब्योरा नहीं देंगे, वो चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। कितने साल पहले कितनी बारीकी से हर पहलू पर सोचा गया और उन्हें अपनी लोकतांत्रिक परंपराओं का हिस्सा बनाया गया।’


कर्नाटक में की राजनीति में भगवान बसवेश्वर का महत्व

दरअसल, प्रधानमंत्री ने गुरुवार को पहली बार भगवान बसवेश्वर की चर्चा नहीं की। उन्होंने इसी साल 26 अप्रैल को 12वीं सदी के कर्नाटक के समाज सुधारक और वीरशैव लिंगायत समाज की संस्थापक भगवान बसवेश्वर की जन्म जयंती पर शुभकामनाएं दी थी। दो साल पहले 18 अप्रैल, 2018 को तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष और मौजूदा केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अमित शाह ने बेंगलुरु में संत बसवेश्वर की मूर्ति पर माल्यार्पण किया था।

क्या है मैग्नाकार्टा
मैग्नाकार्टा की रचना 1225 ईस्वी में इंग्लैंड में हुआ था। मैग्नाकार्टा लैटीन भाषा में लिखी गई जिसके जरिए इंग्लैंड के तत्कालीन राजा जॉन ने अपनी इच्छाओं को कानून के दायरे में बांधना स्वीकार किया। उसने सामंतो को कुछ अधिकार दिए और कुछ कानूनी प्रक्रियाओं के पालन का भी वचन दिया। इसी मैग्नाकार्टा ने प्रजा के कुछ अधिकारों की रक्षा का दायित्व राजा पर निर्धारित किया। इसके तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका (Habeas Corpus) की भी इजाजत दी गई। यह सामंतों और आम जनता के लिए वैधानिकता का प्रतीक बना और ब्रिटेन में संवैधानिक प्रक्रिया के तहत राजकाज का शुभारंभ हुआ।

साभार : नवभारत टाइम्स

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