Yes/No, भारत बंद, लंगर का खाना, खुद्दारी या दिखावा… मोदी सरकार के लिए सबसे बड़े चैलेंज बने ये किसान नेता हैं कौन?
किसानों के आंदोलन (Farmers protest) ने केंद्र सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी है। हजारों किसान दिल्ली से लगने वाली उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमाएं ब्लॉक करके बैठे हैं। पंजाब, हरियाणा समेत देशभर में जगह-जगह नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों के विरोध की खबरें हैं। सरकार किसान नेताओं से बातचीत कर गतिरोध दूर करने करने की कोशिश में है लेकिन वे अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं। विभिन्न यूनियनों के नेता किसानों के उस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा हैं जो सरकार से बातचीत कर रहा है। इनमें रिटायर्ड सैनिक, डॉक्टर से लेकर किसान तक शामिल हैं। बैठकों में यही नेता नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्रियों के आगे तेवर दिखाते हैं। एक नजर मोदी सरकार के लिए फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती बने प्रमुख किसान नेताओं पर।
Leaders of farmers’ protests in Delhi: नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का नेतृत्व किसी एक व्यक्ति के हाथ में नहीं है। देशभर के, खासतौर से पंजाब और हरियाणा के किसान संगठन अपनी मांगों को लेकर एक साथ आ गए हैं।
किसानों के आंदोलन (Farmers protest) ने केंद्र सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी है। हजारों किसान दिल्ली से लगने वाली उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सीमाएं ब्लॉक करके बैठे हैं। पंजाब, हरियाणा समेत देशभर में जगह-जगह नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसान संगठनों के विरोध की खबरें हैं। सरकार किसान नेताओं से बातचीत कर गतिरोध दूर करने करने की कोशिश में है लेकिन वे अपनी मांगों पर अड़े हुए हैं। विभिन्न यूनियनों के नेता किसानों के उस प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा हैं जो सरकार से बातचीत कर रहा है। इनमें रिटायर्ड सैनिक, डॉक्टर से लेकर किसान तक शामिल हैं। बैठकों में यही नेता नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्रियों के आगे तेवर दिखाते हैं। एक नजर मोदी सरकार के लिए फिलहाल सबसे बड़ी चुनौती बने प्रमुख किसान नेताओं पर।
केंद्र के साथ बातचीत में किसान नेताओं ने दिखाए तेवर
किसान नेताओं की केंद्र सरकार के साथ पांच दौर की बातचीत हो चुकी है, मगर नतीजा सिफर रहा है। 9 दिसंबर को अगली मुलाकात होनी है। अबतक हुईं सारी बैठकों में गहमागहमी रही है। कई बार ऐसी नौबत आई जब केंद्रीय मंत्रियों को किसान नेताओं के गुस्से का सामना करना पड़ा। शनिवार को पांचवें दौर की बैठक के दौरान तो गतिरोध इतना बढ़ा कि डेढ़ घंटे तक चर्चा ही नहीं हो पाई। किसान नेता करीब एक घंटे तक ‘मौन व्रत’ पर रहे। तीनों नए कृषि कानूनों को वापस लेने की अपनी मुख्य मांग पर ‘हां’ या ‘नहीं’ में जवाब मांगा। बैठक में मौजूद कुछ किसान नेता अपने होठों पर अंगुली रखे हुए और ‘हां’ या ‘नहीं’ लिखा कागज हाथ में लिए हुए दिखे। इससे पहले हुई मीटिंग में, किसान नेताओं ने सरकारी खाना-पानी लेने से मना कर दिया था। वे अपना खाना साथ लेकर गए थे। किसान संगठनों ने 8 दिसंबर को भारत बंद भी बुलाया है। कुछ मिलाकर सरकार पर दबाव बनाने के लिए हर कोशिश आजमाई जा रही है।
#WATCH | Delhi: Farmer leaders have food during the lunch break at Vigyan Bhawan where the talk with the government… https://t.co/E8e57nPnzN
— ANI (@ANI) 1606989391000
नए कानूनों के विरोध में सबसे आगे डॉ दर्शन पाल
70 साल के डॉक्टर दर्शन पाल पूरे किसान आंदोलन के केंद्र में रहे हैं। वह क्रांतिकारी किसान यूनियन के पंजाब अध्यक्ष हैं और सरकार से बातचीत की अहम कड़ी हैं। पटियाला की तरह पाल भी उन किसान नेताओं में से हैं जो केंद्र के इस कदम का जून से विरोध करते आए हैं। 2002 में सरकारी नौकरी छोड़कर खेती करने उतरे पाल इसी साल यूनियन की पंजाब इकाई के अध्यक्ष बने हैं। वह ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन समिति के वर्किंग ग्रुप के भी सदस्य हैं।
जगमोहन सिंह पटियाला: सबको एक साथ लाने का उठाया जिम्मा
64 साल के पटियाला ट्रेन्ड एक्यूपंचरिस्ट हैं। पंजाब सरकार के साथ कोऑपरेटिव डिपार्टमेंट में काम कर चुके हैं। पहले भाकियू के ही सदस्य थे लेकिन करीब 15 साल पहले अलग हो गए। वह जून से ही कृषि क्षेत्र में नए बदलावों का विरोध कर रहे थे। इस मुद्दे पर विभिन्न किसान संगठनों को साथ लाने में पटियाला की अहम भूमिका है।
केंद्र से बातचीत में किसानों के अगुवा हैं बलदेव सिंह सिरसा
बलदेव सिंह सिरसा दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर किसान आंदोलन का नेतृत्व संभालते हैं। वह सरकार के साथ बातचीत करने वाली किसानों की टीम में शामिल हैं। वह लगातार नए प्रावधानों का विरोध करते रहे हैं। ANI से बातचीत में उन्होंने कहा था कि वे कानून में संशोधन नहीं, बल्कि कानून ही खत्म कराना चाहते हैं।
पंजाब के बड़े किसान नेता हैं जोगिंदर सिंह उगराहां
जोगिंदर सिंह उगराहां, पंजाब के सबसे बड़े किसान नेताओं में से एक हैं। वे किसान मुद्दों पर अपने कड़े रुख के लिए जाने जाते हैं। सेना से रिटायर होने के बाद उन्होंने 2002 में भारतीय किसान यूनियन की तर्ज पर अपना संगठन शुरू किया। वह पंजाब में नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहे हैं।
नेगोसिएशन में एक्सपर्ट हैं बलबीर सिंह राजेवाल
पंजाब में राजेवाल की अपनी हस्ती है। वह 90 के दशक में भारतीय किसान यूनियन से अलग हुए थे। खास बात यह है कि भाकियू का संविधान इन्होंने ही तैयार किया था। पंजाब के कृषि क्षेत्र पर उनकी बेहद मजबूत पकड़ है और उन्हें इस पूरे आंदोलन के पीछे का दिमाग कहा जा सकता है। वह किसानों की बात को प्रभावी ढंग से रखने के लिए जाने जाते हैं और केंद्रीय मंत्रियों के साथ नेगोसिएशन में अहम रोल अदा कर रहे हैं।
भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष हैं राकेश टिकैत
राकेश टिकैत किसानों के बड़े नेता रहे महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे हैं। वह भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता हैं जिसकी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खासी पकड़ है। टिकैत उत्तर प्रदेश के किसानों की तरफ से दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं।
कानून वापसी पर अड़े हैं बूटा सिंह
किसान एकता मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष बूटा सिंह भी केंद्र से बातचीत करने वाले किसान नेताओं में से एक हैं। उन्होंने सरकार से शुरुआती मुलाकातों के बाद कहा था कि ‘हमने साफ कर दिया है कि कानून वापस होने चाहिए और धरना यहीं खत्म हो जाएगा।’ सिंह उन नेताओं में से हैं जो बिल्कुल भी नरम पड़ने के मूड में नहीं दिखते।
सतनाम सिंह पन्नू ने किया है पूरे आंदोलन का समर्थन
सतनाम सिंह पन्नू पंजाब में किसान मजदूर संघर्ष समिति का चेहरा हैं। 65 साल के पन्नू कई सालों से भूमिहीन किसानों के लिए आवाज उठाते रहे हैं। गांव और ब्लॉक लेवल से शुरू कर उनकी यूनियन ने युवाओं और महिलाओं के बीच पैठ बनाई है। उनका संगठन उन 31 संगठनों में शामिल नहीं है जो शुरू से इस आंदोलन को लीड कर रहे थे, मगर उसे समर्थन दे रहा है।
साभार : नवभारत टाइम्स