जितिन प्रसाद के बीजेपी में आने की टाइमिंग पर पार्टी में क्यों फैल रहा असंतोष, समझिए
कांग्रेस का हाथ छोड़कर बीजेपी का साथ पकड़ने वाले जितिन प्रसाद ऐसे समय में आए हैं जब जल्द ही यूपी विधान परिषद की चार सीटों के लिए चुनाव होने वाला है। ये चुनाव 5 जुलाई को प्रस्तावित हैं। लेकिन जितिन प्रसाद की बीजेपी में आमद की टाइमिंग से पार्टी में असंतोष के स्वर उभरने लगे हैं।
ये चार सीटें समाजवादी पार्टी के खाते में थीं। यूपी असेंबली में बीजेपी के संख्याबल को देखते हुए कहा जा सकता है कि इन्हें जीतने में बीजेपी को खास दिक्कत नहीं होगी। वहीं, दूसरी तरफ यह भी ध्यान देने वाली बात है कि बीजेपी जितिन प्रसाद को पार्टी में ब्राह्मण चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहती है। अगले साल यूपी में विधानसभा चुनाव हैं और 12 पर्सेंट वोटर ब्राह्मण हैं। पार्टी में कुछ लोग योगी आदित्यनाथ सरकार में ठाकुरों का दबदबा होने का आरोप लगा रहे हैं।
यूपी विधान परिषद में जाना तय अभी यह तय नहीं है कि बीजेपी के केंद्रीय संगठन में जितिन प्रसाद को जगह मिलेगी या नहीं। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्हें राज्य स्तर पर कोई भूमिका निभाने का मौका मिलेगा और इसका रास्ता यूपी विधान परिषद से होकर जाता है। अगर ऐसा हुआ तो यूपी बीजेपी के एक सीनियर लीडर के विधान परिषद में पहुंचने के अरमानों पर पानी फिर सकता है।
जनवरी में भी आए थे एक ‘बाहरी’ जनवरी में पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाने वाले पूर्व आईएएस अफसर अरविंद कुमार शर्मा ने बीजेपी जॉइन की थी। बीजेपी में आते ही उन्हें विधान परिषद का टिकट मिला और वह आसानी से जीत भी गए। शर्मा पूर्वी यूपी में भूमिहार समुदाय से हैं।
हालांकि तब पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने कोई टिप्पणी नहीं की थी लेकिन सूत्रों के मुताबिक, यूपी इकाई किसी बाहरी को इस तरह सीधे विधान परिषद की सीट देने से खुश नहीं थे। एक सीनियर बीजेपी नेता का कहना था कि इससे बीजेपी में भीतर बनाम बाहरी की बहस तेज हो जाएगी।
राजनीतिक संकट से गुजर रहे जितिन जितिन प्रसाद कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री थे। लेकिन साल 2014 से वह गंभीर राजनीतिक संकट से गुजर रहे हैं। जितिन न केवल अपनी पारंपरिक धौरहरा सीट से 2014 और 2019 में लोकसभा चुनाव हार गए।
साल 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में वह तिलहर विधानसभा सीट से बीजेपी के रोशन लाल वर्मा के हाथों हार गए। यह तब जबकि कांग्रेस ने चुनाव से पहले अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के साथ समझौता किया था। वर्मा ने 2012 में भी यह सीट बीएसपी के टिकट पर जीती थी।
साभार : नवभारत टाइम्स