जब किसानों ने 'जय जय श्रीराम, जय श्री सीताराम' को बना दिया था कोडवर्ड
देश में किसानों का आंदोलन इन दिनों सबसे बड़ा मुद्दा बना है। केंद्र सरकार के कृषि बिलों के खिलाफ किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। भारत में अंग्रेजों की ओर से वसूली जाने वाली लगान के विरोध में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले से बगावत का बिगुल फूंका गया था। के दौरान अपना सबकुछ न्यौछावर कर देने वाले वीर सपूतों की याद में स्मारक तो बनवा दिया गया, लेकिन उसके बाद इसे कभी न तो सजाया गया न ही इसकी ओर किसी ने ध्यान दिया। आज यह स्थान बदहाली में है। स्मारक आवारा पसुओं का ठिकाना बन गया है। यहां किसान आंदोलन की शुरुआत रामचरितमानस की चौपाइयों और जयश्रीराम के कोडवर्ड के साथ हुई थी।
अवध में किसान एक राजनीतिक ताकत भी है और सामाजिक ताकत भी, लेकिन आजादी से पहले, खासकर पहले विश्वयुद्ध के बाद आए मंदी व महंगाई के दौर में शोषण के शिकार थे। उन्हें गोरों की सत्ता के साथ देसी तालुकेदारों, जमींदारों व कारिंदों से नाना प्रकार के अत्याचार भी सहने पड़ते थे। उनके खेतों व घरों में हरी-बेगारी तो करनी ही पड़ती थी, मनमाने लगान व नजराने की अदायगी के बावजूद अपने खेतों से बेदखली झेलनी पड़ती थी। जो खेत वे जोतते-बोते थे, उनके स्वामित्व के हक से भी महरूम थे।
इन जिलों से शुरू हुआ संघर्ष
1919 में देश के स्वाधीनता आंदोलन से प्रेरणा लेकर किसानों ने प्रतापगढ़, रायबरेली, सुल्तानपुर और फैजाबाद आदि जिलों में इस सबके खिलाफ संघर्ष आरंभ किया तो उसे नई धार देने का दायित्व निभाया अद्भुत व्यक्तित्व के मालिक बाबा रामचंद्र ने। बाबा महाराष्ट्रीय ब्राह्मण थे।
घूम-घूमकर सुनाते ते रामचरित मानस की चौपाइयां
1909 में बाबा रामचंद्र फैजाबाद आए तो गांव-गांव घूमकर ‘रामचरितमानस’ के दोहे व चौपाइयां सुनाया करते थे। इस दौरान उनसे किसानों की दुर्दशा नहीं देखी गई तो वे उनके नेता बन गए और जून, 1920 में उनके सैकड़ों प्रतिनिधियों के साथ इलाहाबाद जाकर ‘किसान सभा’ के संस्थापक सदस्य गौरीशंकर मिश्र और कांग्रेस नेता जवाहरलाल नेहरू से मिले। किसान सभा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ी हुई थी और बाबा के आग्रह पर पं. नेहरू समेत उसके नेताओं ने अगले तीन महीनों तक अवध के दौरे कर अपनी आंखों से किसानों की बदहाली देखी। फिर वे सब के सब उसके खिलाफ सक्रिय हुए तो बाबा नींव की ईंट बन गए। उन्होंने सारे अत्याचारों को चुपचाप सहते जाने की किसानों की पीढ़ियों से चली आ रही प्रवृत्ति को खत्म कर उन्हें प्राणपण से संघर्ष के लिए तैयार करने में कुछ भी उठा नहीं रखा। इस दौरान उन्होंने किसानों की एकता के लिए कई नारे सृजित किए और उनको रामचरितमानस के दोहों से जोड़ा।
चोरी का आरोप में किया गिरफ्तार तो हजारों किसान हो गए थे एकत्र
प्रतापगढ़ जिले का एक गांव बाबा रामचंद्र गतिविधियों का केंद्र बन गया, जहां पुलिस ने 28 अगस्त, 1920 को 32 किसानों के साथ गिरफ्तार करके उनपर चोरी का आरोप मढ़ दिया। इसे लेकर किसानों में ऐसी उत्तेजना फैली कि वे मरने-मारने के लिए तैयार होकर हजारों की संख्या में वहां इकट्ठा हो गए। जब तक पुलिस उन्हें वापस जाने के लिए मना पाती, न जाने कहां से बात फैल गई कि बाबा को मुक्त कराने के लिए खुद गांधी जी प्रतापगढ़ आ रहे हैं। इस पर कोई बीस हजार किसान फिर जमा हो गए और वे तभी वापस गए, जब पुलिस ने उन्हें बाबा के ‘दर्शन’ कराकर आश्वस्त कर दिया कि वे सकुशल हैं।
साथ न देने वाले किसानों का हुआ सामाजिक बहिष्कार
इसके लिए बाबा को गन्ने के खेतों के बीच से ले जाकर एक पेड़ पर चढ़ाया गया ताकि सारे किसान सुभीते से उन्हें देख लें। इस मोर्चे पर जीत से किसानों के आंदोलन में नई ऊर्जा का संचार हुआ। लेकिन तभी कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सरकार से असहयोग को लेकर जो मतभेद मुखर हुए, किसान सभा भी उनसे नहीं बच सकी और असहयोग समर्थकों ने 17 अक्टूबर, 1920 को अलग ‘अवध किसान सभा’ गठित कर ली। बाबा की अगुआई में इस नई सभा ने किसानों का आह्वान किया कि वे जमींदारों की हरी-बेगारी करने से साफ मना कर दें और बेदखली को कतई स्वीकार न करें। जो किसान इसमें साथ न दें, उनका सामाजिक बहिष्कार करें और अपनी समस्याओं का समाधान अपनी पंचायतों के माध्यम से ही करें।
खुद को रस्सियों से बांधकर किसानों ने किया प्रदर्शन
इस आह्वान की सफलता से उत्साहित अवध किसान सभा ने 20-21 दिसंबर, 1920 को अयोध्या में किसानों की एक बड़ी रैली की, जिसमें एक लाख से ज्यादा किसान शामिल हुए। यातायात की उन दिनों की असुविधाओं के मद्देनजर यह बहुत बड़ी संख्या थी। इस रैली में बाबा शोषित किसानों के प्रतीक के रूप में खुद को रस्सियों से बंधवाकर आए और किसानों को अपने सारे बंधन झटककर तोड़ देने की प्रेरणा दी। इतिहास गवाह है, बाद के वर्षों में अवध के किसानों में उनकी यह प्रेरणा खूब फूली-फली।
साभार : नवभारत टाइम्स