भारत से तनाव के पीछे ड्रैगन की बड़ी चाल
पिछले साल नवंबर में चीन कोरोना वायरस (Coronavirus in China) का सबसे पहला शिकार बना। उसके बाद धीरे-धीरे वायरस पूरी दुनिया में फैल गया और चीन में हालात सुधरने लगे। अब जब दुनिया करीब 4 महीने बाद भी वायरस से जूझ रही है, चीन ने अपने दूसरे मंसूबों को अंजाम देना शुरू कर दिया है। एक ओर भारत के साथ पूर्वी लद्दाख (India China Ladakh Tension) पर सैन्य हिंसा को हवा दे रहा है, तो दूसरी ओर उसकी पनडुब्बियां जापान (China-Japan conflict) से छेड़छाड़ कर रही हैं। वहीं, ताइवान के एयरस्पेस में लगभग हर रोज ही चीन के फाइटर जेट (China Taiwan conflict) खदेड़े जाते हैं। ऐसे में सिर्फ एशिया नहीं, बल्कि यूरोप और अमेरिका (China US conflict) में भी हलचल तेज हो गई है।
दुनिया का सामना करने को तैयार चीन
चीन की मिलिट्री जिस दुस्साहस से अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही है, उससे उसके आत्मविश्वास और क्षमता का अंदाजा तो मिल ही रहा है, साथ ही यह इशारा भी मिल रहा है कि कोरोना की महामारी को लेकर अमेरिका और हॉन्ग-कॉन्ग जैसे मुद्दों पर उसके प्रभुत्व और राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों पर दुनिया के आमने-सामने आने को तैयार है। चीन ने दावा किया है कि उसके हालिया ऑपरेशन बचाव की नीति हैं लेकिन हर ऑपरेशन के साथ सैन्य टकराव की आशंका भी बढ़ जाती है। 15 जून की रात भारतीय और चीनी सेना के बीच हुई हिंसक झड़प को इसका ही नमूना माना जा रहा है। 1967 से बाद से इसे सबसे भयानक घटना माना जा रहा है।
‘ऐक्सिडेंटल शॉट’ की आशंका बढ़ी
वहीं, चीन के विश्लेषकों, भारतीय न्यूज रिपोर्ट्स और अमरिका की इंटेलिजेंस रिपोर्ट्स के मुताबिक चीनी पक्ष में भी कई जानें गई हैं जो 1979 में वियतनाम युद्ध के बाद पहला कॉम्बैट ऑपरेशन था। नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ साउथ चाइना सी स्टडीज के अध्यक्ष वू शिचुन ने पेइचिंग में एक कॉन्फ्रेंस के दौरान अमेरिका की मिलिट्री ऐक्टिविटी पर रिपोर्ट जारी करते हुए कहा कि इससे ‘ऐक्सिडेंटल शॉट’ फायर होने की आशंका बढ़ जाती है।
चीन के पास पहले से ज्यादा सैन्य ताकत
चीन ने देश के क्षेत्र और हितों की सुरक्षा के लिए बलपूर्व लंबे समय से कार्यवाही की है लेकिन अब वह पहले के मुकाबले बेहद ज्यादा सैन्य ताकत के साथ ऑपरेट कर रहा है। ऑस्ट्रेलिया में कैनबरा के एक रिसर्च ऑर्गनाइजेशन चाइना पॉलिसी सेंटर के डायरेक्टर ऐडम नी ने कहा, ‘उसकी ताकत बाकी क्षेत्रीय ताकतों की तुलना में बहुत ज्यादा गति से बढ़ रही है।’ उनका कहना है कि इससे पेइचिंग को उसके आक्रामक अजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए और ज्यादा तरीके मिलते जा रहे हैं।
शी जिनपिंग ने तैयार की है यह नई सेना
चीन के महत्वाकांक्षी और सत्तावादी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व में 1990 से मिलिट्री मॉडर्नाइजेशन प्रोग्राम चलाया जा रहा है जिससे उसके हालिया ऑपरेशन्स की नींव रखी गई थी। जिनपिंग ने मिलिट्री के भ्रष्ट टॉप रैंक लीडर्स या निष्ठाहीन अधिकारियों को बाहर का रास्ता दिखाया और पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) का फोकस जमीनी जंगों से हटाकर हवाई, नौसैनिक और साइबर हथियारों के जॉइंट ऑपरेशन्स पर लगाया। शी ने मिलिट्री को महामारी के दौर में भी प्राथमिकता पर रखा है।
कोरोना के बावजूद सैन्य बजट भी बढ़ाया
चीन के प्रीमियर ली केकियांग ने पिछले महीने ऐलान किया था कि मिलिट्री बजट इस साल 6.6% बढ़ाकर करीब 180 बिलियन डॉलर किया जाएगा जो अमेरिका के डिफेंस बजट का करीब एक चौथाई है जबकि वैश्विक स्तर पर आर्थिक मंदी जैसे हालात के कारण सरकार के कुल खर्चे में कमी का अंदाजा लगाया जा रहा था।
नैशनल पीपल्स कांग्रेस में शी ने कहा कि मिलिट्री ने वुहान में बड़ी भूमिका निभाई, जहां वायरस सबसे पहले फैला था और चेतावनी दी कि वायरस की वजह से राष्ट्रीय सुरक्षा के सामने चुनौतियां हैं। उन्होंने कहा था, ‘देश को सैन्य संघर्षों की तैयारी तेज करनी होगी, मिलिट्री ट्रेनिंग करनी होगी और मिलिट्री मिशन्स के लिए अपनी क्षमता बढ़ानी होगी।’
अमेरिका के सामने खड़ी की है चुनौती
चीन की मिलिट्री को अमेरिकी सेना से काफी पीछे माना जाता है लेकिन नौसैनिक क्षमता और ऐंटी-शिप और ऐंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइलों के मामले में चीन काफी तेजी से आगे बढ़ रहा है। वॉशिंगटन में कांग्रेशनल रिसर्च सर्विस की रिपोर्ट में पिछले महीने अंदाजा लगाया गया था कि इस साल के अंत तक चीन के पास 335 वॉरशिप होंगे जो अमेरिका (285) से ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन ने अमेरिकी नेवी के सामने पश्चिमी पैसिफिक के ब्लू-वॉटर महासागर इलाके में युद्ध के समय में कंट्रोल हासिल करने की क्षमता बनाने और कायम रखने की चुनौती खड़ी कर दी है। अमेरिकी नेवी के सामने ऐसी चुनौती कोल्ड वॉर के बाद से पहली बार आई है।
ताइवान पर नजर, एयरस्पेस में फाइटर जेट
चीन ने ताइवान के पास भी सैन्य ऑपरेशन तेज कर दिए हैं। इस साल जनवरी में जब पेइचिंग के प्रति नरम रवैया रखने वाले उम्मीदवार को हराकर साई इंग-वेन राष्ट्रपति बनने, उसके बाद से चीन ने अपनी ऐक्टिविटी तेज की है। चीन का एयरक्राफ्ट कैरियर अप्रैल में ताइवान के पूर्वी तट पर अप्रैल में पहुंचा और उसके साथ 5 और युद्धपोत थे। चीनी एयरक्राफ्ट पिछले हफ्ते कई बार ताइवान के एयरस्पेस में दाखिल हुए। अनैलिस्ट्स का मानना है कि चीन ताइवान के डिफेंस सिस्टम की टोह लेना चाह रहा है। चीन अगस्त में सैन्य अभ्यास करना चाहता है जिसके जरिए वह दरअसल, ताइवान के प्रटेस टापू (Pratas Islans) पर नजर गड़ाना चाहता है।
जापान, वियतनाम, मलेशिया को भी छेड़ा
चीन ने साइथ चाइना सी में भी अपना दावा बढ़ाना शुरू कर दिया है। उसने पारसेल और स्प्रैटली में सत्ता चलाने के लिए यहां दो नए प्रशासनिक जिले बनाए हैं। इनके जरिए उसके पड़ोसियों पर भी नजर रखेगा। अप्रैल में चीन के कोस्ट गार्ड ने वियतनाम की एक फिशिंग बोट को टक्कर मारकर डुबा दिया था। इसी महीने चीनी सरकार के रिसर्च शिप ने मलेशिया में एक तेल के टैंकर को अपना बता दिया जिससे अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को हालात का जायजा लेने के लिए अपने चार वॉरशिप वहां भेजने पड़े।
जब जापान के वॉरशिप्स एक न्यूक्लियर अटैक सबमरीन को सतह पर लाए तो ईस्ट चाइना में पिछले हफ्ते 2018 के बाद पहली बार चीनी सबमरीन पट्रोल करती पाई गई। सेंकाकू टापू पर जापान के शासन को लेकर जारी तनाव के बाद यह घटना सामने आई। चीन सेंकाकू को दियाऊ टापू बताता है।
चुनौती मिली तो कड़ा जवाब देगा चीन
मैसच्यूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी के डायरेक्टर ऑफ सिक्यॉरटी स्टडीज और चीन की मिलिट्री के जानकार एम टेलर फ्रैवल का कहना है, ‘जब चीन को लगेगा कि इन संप्रभुता विवादों में उसे चुनौती मिल रही है तो वह कड़े रुख में जवाब देगा।’ उन्होंने कहा कि चीन के पास 10-15 साल पहले तक कभी मैरीटाइम के क्षेत्र में अपनो को साबित करने की क्षमता नहीं रही। चीन की नौसेना और वायुसेना के मजबूत होने का इशारा करते हुए फ्रैवल कहते हैं कि इससे चीन ईस्ट और साउथ चाइना सी पर पहले के मुकाबले ज्यादा विश्वास से दावा ठोंक रहा है। उसने इन इलाकों में हवाई पट्रोलिंग भी तेज कर दी है।
शक्ति प्रदर्शन करता रहता है चीन
पैसिफिक एयर फोर्स के कमांडर जनरल चार्ल्स ब्राउन जूनियर का कहना है कि चीन कभी-कभी H-6 बॉम्बर्स को भेजता था लेकिन अब वह लगभग रोज ऐसा करता है। ये बॉम्बर पुराने जरूर हैं लेकिन इन्हें नया रंग दिया गया है और नई मिसाइलों से लैस किया गया है जो चीन ने अक्टूबर में पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ पर परेड के दौरान दिखाई थीं।
भारत के साथ टकराव जरूर, सैन्य परीक्षण नहीं
इस सब के बीच चीन की सेना का टेस्ट नहीं हुआ है। भारतीय सैनिकों के साथ हुई झड़प में गोलियां नहीं चलीं बल्कि डंडे और पत्थर चले। इसलिए उसकी सैन्य तैयारी का अंदाजा इससे नहीं लगाया जा सकता है। हालांकि, इससे उनकी ट्रेनिंग और अनुशासन पर सवाल जरूर खड़ा होता है। उस घटना की विस्तृत जानकारियों को लेकर संशय बरकरार है लेकिन भारतीय मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हालात काबू से इसलिए बाहर हो गए क्योंकि तनाव को कम करने के लिए जिस तरह से सेनाएं पीछे हटाने पर सहमति बनी थी, उसका पालन नहीं किया गया। चीन ने उसकी ओर गईं जानों के बारे में खुलासा नहीं किया लेकिन रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि भारतीयों ने चीन को 16 शव लौटाए थे।
अमेरिका के इंटेलिजेंस अधिकारी ने वॉशिंगटन में संकेत दिए हैं कि चीन जानबूझकर अपना नुकसान छिपा रहा है और उसके कम से कम 20-30 सैनिकों की जान गई है। वहीं, एक इंडिपेंडेंट मिलिट्री अनैलिस्ट सॉन्ग झॉन्गपिंग का कहना है कि चीन में सैनिकों की मौत भारतीय खेमे से कम हुई है लेकिन चीन इन आंकड़ों को इसलिए जारी नहीं कर रहा है क्योंकि वह भारत में इसे लेकर भावनाओं को हवा नहीं देना चाहता।
चीन का भारत से ज्यादा अमेरिका पर ध्यान
भारत के साथ तनाव चीनी सेना के लिए अहम तो है लेकिन प्राथमिकता नहीं। वह चीन के पड़ोसियों को लेकर अमेरिका की आक्रामकता पर ज्यादा ध्यान दे रही है। अमेरिका ने भी क्षेत्र में अपनी सैन्य गतिविधियां तेज कर दी हैं। उसने साउथ चाइना सी में अपने वॉरशिप भेजे हैं और ताइवान और उसकी सेना को समर्थन बढ़ा दिया है। इन मुद्दों पर विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने जब चीनी हाल ही में डिप्लोमैट यान्ग जेशी से हवाई में मुलाकात की थी, तो इन मुद्दों पर चर्चा की गई थी। माइक ने एक रेडियो इंटरव्यू में मंगलवार को कहा था कि प्रशासन अपने F-16 फाइटर जेट ताइवान को बेचने की तैयारी कर रहा है।
इसलिए अमेरिका को दोषी मानता है ड्रैगन
चीन क्षेत्र में बढ़ते तनाव के लिए अमेरिका को दोषी बताता है। उसका कहना है कि अमेरिकी मिलिट्री वहां हस्तक्षेप करती है जहां उसका अधिकार नहीं है। चाइना सेंटर फॉर कोलैबरेटिव स्टडीज ऑफ साउथ चाइना सी के एग्जिक्युटिव डायरेक्टर झू फेंग ने चेतावनी दी है कि अमेरिका के राष्ट्रपति पद चुनाव के लिए प्रचार अभियान के साथ टकराव की संभावनाएं भी बढ़ने लगी हैं। उन्होंने कहा है कि अमेरिका ने चीन को साउथ चाइना सी और ताइवान जैसे मुद्दों पर घेर रखा है।