चुनाव में मुफ्त उपहार बांटने या वादा करना रिश्वत घोषित हो, सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका

चुनाव में मुफ्त उपहार बांटने या वादा करना रिश्वत घोषित हो, सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई याचिका
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नई दिल्ली : चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार बांटने या मुफ्त उपहार देने का वादा करने वाले राजनीतिक पार्टियों की मान्यता रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा सरकारी फंड से चुनाव से पहले वोटरों को उपहार देने का वादा करने या उपहार देने का मामला स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करता है।

केंद्र सरकार और भारतीय चुनाव आयोग को बनाया प्रतिवादी
सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने अर्जी दाखिल कर केंद्र सरकार और भारतीय चुनाव आयोग को प्रतिवादी बनाया गया है और अर्जी दाखिल कर कहा गया है कि पब्लिक फंड से चुनाव से पहले वोटरों को लुभाने के लिए मुफ्त उपहार देने का वादा करने या मुफ्त उपहार बांटना स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव के खिलाफ है और यह वोटरों को प्रभावित करने और लुभाने का प्रयास है। इससे चुनाव प्रक्रिया प्रदूषित होती है। याचिकाकर्ता ने कहा कि इससे चुनाव मैदान में एक समान अवसर के सिद्धांत प्रभावित होते हैं। याची ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों द्वारा मुफ्त उपहार देने और वादा करना वोटरों को लुभाने का प्रयास है और यह एक तरह की रिश्वत है।

राजनीतिक दल करते हैं फ्री-फ्री-फ्री का वादा
याचिकाकर्ता ने कहा कि हाल में शिरोमणि अकाली दल ने इसी कड़ी में वादा किया है कि वह 18 साल से ऊपर की महिलाओं को 2 हजार रुपये प्रति महीने देगा वहीं आम आदमी पार्टी ने एक हजार रुपये प्रति महीने देने का वादा किया है। कांग्रेस ने महिलाओं को 2 हजार रुपये प्रति महीना देने के साथ-साथ साल में 8 सिलिंडर भी हाउस वाइफ को देने का वादा किया है। साथ ही कहा है कि 12 वीं पास लड़की को 20 हजार 10 पांस लड़की को 10 हजार रुपये दिए जाएंगे और कॉलेज जाने वाली लड़की को स्कूटी दिया जाएगा। वहीं यूपी में कांग्रेस ने वादा किया है कि वह 12 में पढ़ने वाली लड़कियों को स्मार्ट फोन और कॉलेज जाने वाली लड़कियिों को स्कूटी दी जाएगी। सपा ने वादा किया है कि महिलों को 15 00 रुपये पेंशन और हर परिवार को 300 यूनिट प्रति महीने बिजली फ्री दी जाएगी।

मुफ्त उपहार के वादे को रिश्वत की श्रेणी में मानने की गुहार
याचिकाकर्ता ने कहा कि इस तरह से किए गए मुफ्त उपहार के वादे को रिश्वत की श्रेणी में माना जाए क्योंकि इससे वोटर प्रभावित होते हैं। चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाना चाहिए कि वह सुनिश्चित करें कि राजनीतिक पार्टियां इस तरह के मुफ्त उपहार के वादे न करें या वितरण न करें। सुप्रीम कोर्ट ने याची ने गुहार लगाई है कि इस बात को घोषित किया जाए कि पब्लिक फंड से चुनाव के पहले मुफ्त देने का वादा और वितरण स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करता है और यह फ्री और फेयर इलेक्शन के बुनियाद को झकझोरता है। साथ ही चुनावी प्रक्रिया को प्रदूषित करता है।

धारा-171 बी और सी के तहत अपराध मानने का आग्रह
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई कि मुफ्त उपहार और वितरण को अनुच्छेद-14 का उल्लंघन माना जाए। इसे रिश्वत घोषित किया जाए और आईपीसी की धारा-171 बी और सी के तहत अपराध माना जाए। चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि वह राजनीतिक पार्टियों के लिए शर्त तय करें कि वह ऐसा न क रें। साथ ही चुनाव आयोग को निर्देश दिया जाए कि ऐसा करने वाले राजनीतिक पार्टियों का सिंबल सीज किया जाए और उनकी मान्यता रद्द की जाए। केंद्र सरकार को यह निर्देश दिया जाए कि वह राजनीतिक पार्टियों को रेग्युलेट करने के लिए कानून बनाएं।

फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स

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