रायता न समेटा तो ट्विटर पर टर्राती रह जाएगी कांग्रेस, अपने ही बजा देंगे 'ईंट से ईंट'
कांग्रेस की बढ़ती मुश्किलें
भाजपा की आक्रामकता और कांग्रेस के ढुलमुल रवैये से पहले ही देश की सबसे पुरानी पार्टी को काफी नुकसान हो चुका है। साल-दर-साल वह अपनी जमीन खोती जा रही है। लेकिन, सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। पश्चिम बंगाल चुनाव ने दिखाया है कि भाजपा को भी चित किया जा सकता है। वह ‘अजेय’ नहीं है। लेकिन, उसके लिए भाजपा की ही तरह आक्रामक और नहले-पे-दहला वाली रणनीति पर काम करना होगा। कांग्रेस में फिलहाल तो ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है। अलबत्ता, उसे अपनों ने ही ‘बहुत दुखी’ कर रखा है। पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ की खटपट इसका उदाहरण हैं। कांग्रेस आलाकमान इस खींचतान को मैनेज करने में बिल्कुल विफल रहा है।
किस-किस को संभाले?
पंजाब में सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह और पीसीसी चीफ नवजोत सिंह सिद्धू के बीच खींचतान कम होने का नाम नहीं ले रही है। हाल में थोड़े समय के लिए लगा था कि दोनों अब साथ काम करने के लिए तैयार हैं, जिसका अमरिंदर-सिद्धू ने दावा भी किया था। लेकिन, दोनों दोबारा एक-दूसरे की टांग खींचने में लग गए हैं। यानी अमरिंदर और सिद्धू में कुछ भी ठीक नहीं हुआ है। एक-दूसरे के साथ आने की तस्वीरें सिर्फ ‘सजावटी’ थीं। पार्टी नेतृत्व ने कुछ हफ्तों पहले अमरिंदर सिंह के विरोध को नजरअंदाज करते हुए क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू को पंजाब कांग्रेस प्रमुख बनाया था। लेकिन, अभी तक प्रदेश कांग्रेस में गुटबाजी खत्म नहीं हुई है। दोनों जिस तरह खुलकर लड़ रहे हैं, उससे साफ लगता है कि वे एक-दूसरे को सख्त नापसंद करते हैं।
अमरिंदर के दबाव के कारण जिस तरह सिद्धू के एक सलाहकार मलविंदर सिंह माली को इस्तीफा देना पड़ा, उसके बाद दोनों ने एक-दूसरे पर तलवारें तान ली हैं। सिद्धू ने एक सभा में यहां तक कह डाला कि उन्हें निर्णय लेने की आजादी नहीं मिली तो वह ‘ईंट से ईंट’ बजा देंगे। इसके बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री और जी-23 नेताओं में शुमार मनीष तिवारी ने अपने ट्वीट में सिद्धू के भाषण का वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा, ‘हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम, वो कत्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती’।
छत्तीसगढ़- राजस्थान भी बने हुए हैं सिरदर्द
छत्तीसगढ़ में दिसंबर, 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच रिश्ते सहज नहीं रहे हैं। सिंहदेव के समर्थकों का कहना है कि ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री को लेकर सहमति बनी थी। ऐसे में अब सिंहदेव को मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए। राजधानी में बघेल और सिंहदेव की राहुल गांधी के साथ कई दौर की बैठक हो चुकी है। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल की सरकार के ढाई वर्ष पूरे करने के बाद मुख्यमंत्री के पद के लिए ढाई-ढाई वर्ष के फॉर्मूले की चर्चा है। इस चर्चा के बीच बीते मंगलवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी के बुलावे पर भूपेश बघेल दिल्ली पहुंचे थे। इस दौरान राहुल गांधी ने बघेल और सिंहदेव समेत अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठक की थी।
उधर, राजस्थान में भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच तगड़ी खींचतान है। दोनों के खेमे पिछले कई महीनों से एक-दूसरे पर खुलकर हलमावर रहे हैं। पायलट खेमा चाहता है कि गहलोत कैबिनेट का विस्तार हो। वहीं, मुख्यमंत्री गहलोत इससे बचते रहे हैं। पायलट खेमा इसलिए भी ज्यादा असंतुष्ट है क्योंकि उसे लगता है कि पंजाब में सुलह के जिस तरह के प्रयास हुए वैसे राजस्थान में नहीं हुए हैं।
जी-23 ने भी पकड़ रखी है अलग राह
पिछले साल अगस्त के पहले हफ्ते में कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने पार्टी की कार्यशैली, तौर-तरीकों और हाईकमान को लेकर सवाल उठाते हुए एक चिठ्ठी लिखी थी। इन नेताओं में गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, मनीष तिवारी, भूपेंद्र हुड्डा, पृथ्वीराज चव्हाण जैसे दिग्गज नेता शामिल थे। सियासी गलियारे में इन्हें जी-23 के नाम से जाना जाता है। बीते दिनों इन्हीं में से एक पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने डिनर पार्टी दी थी। इस डिनर पार्टी में 17 विपक्षी दलों के करीब 45 नेता शामिल हुए थे। इनमें सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने शिरकत नहीं की थी। शामिल होने वाले दलों में कांग्रेस के अलावा, टीएमसी, एनसीपी, टीडीपी, आरजेडी, टीआरएस, बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, अकाली दल, डीएमके, शिवसेना, सपा, सीपीएम, सीपीआई, आप, नेशनल कॉन्फ्रेंस, आरएलडी जैसे दल शामिल थे। कहा तो यही गया कि यह विपक्ष की एकजुटता दिखाने का तरीका था। लेकिन, मीडिया में इसके दूसरे मायने निकाले गए। कहा गया कि इसके जरिये जी-23 ने राहुल गांधी और हाईकमान को अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की है।
विपक्ष का नेतृत्व कैसे करेगी कांग्रेस?
इतनी अंदरूनी कलह के बाद सवाल उठता है कि आखिर कांग्रेस विपक्ष का नेतृत्व कैसे करेगी। जबकि बार-बार वह अगले लोकसभा चुनाव और अगले साल राज्यों में होने वाले चुनाव को लेकर विपक्ष को लामबंद करने की कोशिश करती दिख रही है। हाल ही में सोनिया गांधी ने अपनी पार्टी समेत 19 विपक्षी पार्टियों के नेताओं के साथ डिजिटल बैठक की थी। इसमें आह्वान किया था कि वे 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए एकजुट हों और देश के संवैधानिक प्रावधानों और स्वतंत्रता आंदोलन के मूल्यों में विश्वास रखने वाली सरकार के गठन के लिए अपनी विवशताओं से ऊपर उठें। इस समय विपक्षी दलों की एकजुटता राष्ट्रहित की मांग है और कांग्रेस अपनी ओर से कोई कमी नहीं रखेगी। भाजपा ने सोनिया गांधी की इस बैठक की खिल्ली उड़ाई थी। पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा था कि कांग्रेस सिकुड़कर ‘वर्चुअल पार्टी’ रह गई है। वह न केवल सिर्फ वर्चुअल मीटिंग आयोजित करती है, बल्कि उसका अस्तित्व भी सिर्फ वर्चुअल प्लेटफॉर्मों तक रह गया है। जैसे हालात हैं, उनमें कांग्रेस को पात्रा की इस टिप्पणी को गंभीरता से लेना चाहिए।
फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स