कार्यपालिका के मुद्दों में न्यायपालिका किस हद तक दे सकती है दखल? SC खींचेगा साफ लकीर

कार्यपालिका के मुद्दों में न्यायपालिका किस हद तक दे सकती है दखल? SC खींचेगा साफ लकीर
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नई दिल्ली
कार्यपालिका के दायरे में आने वाले कोविड मैनेजमेंट के मसले में संवैधानिक कोर्ट किस हद तक हस्तक्षेप कर सकता है इस बात का सुप्रीम कोर्ट परीक्षण करेगा।सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह इस बात का परीक्षण करेगा कि कोविड मैनेजमेंट से संबंधित कार्यपालिका के तय मामले में संवैधानिक कोर्ट कितना दखल दे सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अदालतों को शक्ति के बंटवारे की जो सीमाएं हैं, उनका सम्मान करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भले ही सबकी मंशा सही हो लेकिन कामों के बंटवारे का सम्मान करना जरूरी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इलाहाबाद हाई कोर्ट की उस टिप्पणी का भी परीक्षण करेगा जिसमें हाई कोर्ट ने कहा था कि राज्य का हेल्थ केयर सिस्टम राम भरोसे चल रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह इस बात को देखेगा कि क्या हाई कोर्ट को इस मामले में जाने की जरूरत थी या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राम भरोसे वाली टिप्पणी जस्टिफाई है या नहीं, इस बात का वह परीक्षण करेगा। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कोविड मैनेजमेंट के मद्देनजर मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि राज्य में गांव से लेकर छोटे शहरों में हेल्थ केयर सिस्टम राम भरोसे चल रहा है। यूपी सरकार ने हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह तय करना चाहते हैं कि संवैधानिक कोर्ट इस तरह के मुद्दे में कितना दखल दें। हाई कोर्ट ने सवाल उठाया था कि राज्य में कितने एंबुलेंस हैं। कितने ऑक्सिजन बेड हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इन मुद्दों पर कॉमेंट नहीं करना चाहते हैं। ऐसा नहीं है कि आप सुझाव नहीं दे सकते हैं लेकिन आप ये बात कैसे कह सकते हैं कि स्थानीय कंपनी फॉर्म्युला लेकर वैक्सीन बनाए? कैसे इस तरह का आदेश पारित हो सकता है। हमारे सामने 110 सुझाव आते हैं लेकिन क्या हम ऑर्डर का वह पार्ट बना सकते हैं? हमें याद रखना होगा कि हम संवैधानिक कोर्ट हैं। मुसीबत के समय मिल कर काम करने की जरूरत है। अच्छी मंशा हो सकती है लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हर कोई दूसरे के कार्यक्षेत्र में दखल दे।

बेंच ने कहा कि किसी भी समस्या का एक सीधा-सादा समाधान का फॉर्म्युला नहीं होता है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि शीर्ष अदालत को हाई कोर्ट के आदेश को खारिज करना चाहिए। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पहले के आदेश में हमने कहा था कि हाई कोर्ट के निर्देश को सुझाव की तरह लिया जाए और ऐसे में आदेश निरस्त करने की जरूरत नहीं है।

इससे पहले यूपी सरकार की ओर से पेश रिपोर्ट में कहा गया कि राज्य में 250 उच्च तकनीक वाले एंबुलेंस हैं साथ ही 2200 बेसिक एंबुलेंस हैं। 273 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 1771 ऑक्सीजन कंसेनट्रेटर के ऑर्डर दिए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 21 मई को हुई सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी थी जिसमें हाई कोर्ट ने यूपी में युद्ध स्तर पर मेडिकल सुविधाएं बढ़ाने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाई कोर्ट को वैसे आदेश देेने से बचना चाहिए जिसका पूरी तरह अमल करना मुश्किल हो। इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उन आदेशों को क्रियान्वित करना असंभव है।

दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि यूपी में हेल्थ सिस्टम राम भरोसे है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि यूपी के हर गांव में एक महीने में आईसीयू सुविधाओं के साथ कम से कम दो एंबुलेंस की व्यवस्था की जाए। साथ ही प्रत्येक नर्सिंग होम में कोविड 19 के इलाज के लिए रिजर्व बेड पर ऑक्सिजन की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाए। हाई कोर्ट ने ग्रेड बी और सी वाले शहर में कम से कम 20 एबुंलेंस की सुविधा से लैस करने को कहा था।

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए कहा था कि हाई कोर्ट को अपने आदेशों के लागू की संभावना पर भी विचार करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि अदालत को ऐसे आदेश नहीं देने चाहिए जिसका अमल संभव नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही राज्य से कहा है कि वह हाई कोर्ट के आदेश को किसी फैसले की तरह न देखे बल्कि एक सलाह की तरह देखना चाहिए और उस पर अमल की कोशिश करनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने ये मामला उठाया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट कोरोना मामले में संज्ञान लेते हुए सुनवाई कर रहा है और इसी दौरान 17 मई को दिए आदेश में कहा था कि गांव में आईसीयू और एंबुलेंस सुविधाएं दी जाएं। साथ ही नर्सिंग होम में ऑक्सिजन बेड का इंतजाम हो। राज्य में मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल को अपग्रे़ड किया जाए और इंतजाम बेहतर हो। सॉलिसिटर जनरल ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि हाई कोर्ट ने जो फैसला दिया है उसे सही मायने में लागू करने में कठिनाई है।

फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स

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