ट्रेनिंग के दौरान दिव्यांग होने वाले कैडेट्स को आर्थिक मदद की कवायद शुरू

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नई दिल्ली
देश की रक्षा के लिए जान देने का जज्बा लेकर युवा फौज में ऑफिसर बनने पहुंचते हैं। चार साल की कड़ी मेहनत के बाद वह अकेडमी से निकलकर भारतीय सेना, नेवी या एयरफोर्स का हिस्सा बनते हैं। लेकिन ट्रेनिंग के दौरान अगर उन्हें गंभीर चोट लगी और डिसएबल हो गए तो सेना उन्हें बाहर कर देती है। ऐसे युवाओं का न सिर्फ सपना टूटता है बल्कि हौसला भी क्योंकि फिर सेना की तरफ से उनसे पूरी तरह मुंह मोड़ लिया जाता है। न कोई आर्थिक मदद और न ही इलाज में कोई सहायता। अब भारतीय सशस्त्र सेनाओं (आर्मी, नेवी और एयरफोर्स) ने दिव्यांग (डिसएबल) कैडेट्स को आर्थिक मदद और इलाज में मदद देने का प्रस्ताव रक्षा मंत्रालय को भेजा है।

सूत्रों के मुताबिक जो प्रस्ताव दिया है वह अभी रक्षा मंत्रालय के एक्ससर्विसमैन वेलफेयर डिपार्टमेंट और फाइनेंस डिपार्टमेंट के पास है। उम्मीद जताई जा रही है कि इस पर जल्दी ही फैसला होगा। क्योंकि 2015 में रक्षा मंत्री ने इस मामले पर एक्सपर्ट कमिटी बनाई थी तब भी कमिटी ने दिव्यांग कैडेट्स को डिसएबिलिटी पेंशन और आर्थिक मदद की सिफारिश की थी। लेकिन तब इसे स्वीकार नहीं किया गया।

अब फिर सेनाएं इसकी कोशिश कर रही हैं। सूत्रों के मुताबिक जो प्रस्ताव दिया गया है उसमें कहा गया है कि आर्मी के पेंशन रेगुलेशन में कैडेट्स को भी शामिल किया जाए। साथ ही डिसएबिलिटी पेंशन और फैमिली पेंशन रेगुलेशन में भी बदलाव किया जाए। इसमें कहा गया है कि अगर कैडेट डिसएबल हो जाता है या मौत हो जाती है तो आर्थिक मदद (एक्स ग्रेशिया) का प्रावधान किया जाए। इसके लिए उन्हें लेफ्टिनेंट की सैलरी के हिसाब से पेंशन दी जा सकती है। अभी भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट की सैलरी 56510 रुपए है। पेंशन इसकी आधी होती है। कैंडेड्स सेना में लेफ्टिनेंट के तौर पर ही कमिशन होते हैं।

प्रस्ताव में कहा गया है कि दिव्यांग कैडेट्स को पूर्व सैनिकों की तरह हेल्थ स्कीम ईसीएचएस में शामिल किया जाए। यह हेल्थ स्कीम कॉन्ट्रिब्यूटरी स्कीम है यानी सैनिक की सैलरी से इसके लिए एक तय अमाउंट कटता है। प्रस्ताव में कहा गया है कि दिव्यांग कैडेट्स के लिए इस स्कीम में सरकार की तरफ से आर्थिक योगदान दिया जाए।
साथ ही प्रस्ताव में कहा गया है कि कैडेट्स के लिए भी एजीआईएफ (आर्मी ग्रुप इश्योरेंस फंड) को लागू किया जाए।

देश सेवा के लिए आगे आने वाले कैडेट्स का यह मसला लंबे वक्त से चल रहा है। भारतीय आर्म्ड फोर्सेस (सेना, नेवी, एयरफोर्स) का हिस्सा बनने से पहले युवा जब तक एनडीए, आईएमए, ओटीए या नेवी और एयरफोर्स की अकेडमी में ट्रेनिंग कर रहे होते हैं तब तक उन्हें कैडेट्स कहा जाता है। वह जब ट्रेनिंग पूरी कर फौज में कमिशन होते हैं तब से उन्हें फौज का हिस्सा माना जाता है। लेकिन अगर ट्रेनिंग के दौरान कोई कैडेट डिसएबल हुआ या उसकी मौत हो गई तो सरकार या फौज की तरफ से उन्हें या परिवार वालों को कोई राहत नहीं दी जाती।

सेना के एक अधिकारी ने कहा कि दिव्यांग कैडेट्स को मदद देने का मसला संवेदनाओं से भी जुड़ा है। जब कोई युवा सेना का हिस्सा बनने आता है तो वह खुद को पूरी तरह देश को समर्पित करता है और अगर उसे कुछ हो गया तो उससे मुंह मोड़ लेना बिल्कुल सही नहीं है। ट्रेनिंग के दौरान डिसएबल होने के बाद कइयों को जिंदगी भर इलाज का भारी खर्चा उठाना पड़ता है। ऐसे में अगर उन्हें ईसीएचएस में शामिल किया जाए तो उन्हें कुछ राहत मिल सकती है। रक्षा मंत्रालय के मुताबिक 1985 के बाद अब तक करीब 450 डिसएबल कैडेट्स हैं। हर साल अलग अलग सैन्य अकेडमी में करीब 8-10 कैडेट्स मेडिकली अनफिट होने की वजह से बाहर हो जाते हैं।

फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स

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