View: दूसरी पार्टियों से आए नेता क्या BJP में नहीं चढ़ पाते सफलता की सीढ़ियां, मुकुल रॉय का नाम लेकर क्यों होने लगी चर्चा?

View: दूसरी पार्टियों से आए नेता क्या BJP में नहीं चढ़ पाते सफलता की सीढ़ियां, मुकुल रॉय का नाम लेकर क्यों होने लगी चर्चा?
Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

नई दिल्‍ली क्‍या दूसरी पार्टियों से आए नेता बीजेपी में सफलता की सीढ़‍ियां नहीं चढ़ पाते हैं? शुक्रवार को मुकुल रॉय के टीएमसी में दोबारा वापसी करने के बाद ये सवाल उठने लगे हैं। कृष्‍णानगर दक्षिण से विधायक रॉय 2017 में टीएमसी छोड़ बीजेपी में शामिल हुए थे। उन्‍होंने बड़ी संख्‍या में टीएमसी नेताओं को बीजेपी से जोड़ा था। टीएमसी की सरकार में उन्‍हें मुख्‍यमंत्री ममता बनर्जी के बाद दूसरा सबसे बड़ा नेता माना जाता था। यूपीए-2 सरकार में वह रेल मंत्री भी रह चुके हैं। पर क्‍या बीजेपी से जुड़ने के बाद उनकी ‘हैसियत’ घटती चली गई?

मुकुल की वापसी के पीछे लंबे समय से बीजेपी में उनकी उपेक्षा को वजह माना जा रहा है। बंगाल में विपक्ष के नेता के रूप में उनका नाम न आगे बढ़ाकर सुवेंदु अधिकारी को इसकी कमान सौंप दी गई। पश्चिम बंगाल विधानसभ चुनाव में कृष्‍णानगर दक्षिण से जीतने के बाद ही रॉय के टीएमसी में शामिल होने की अटकलें तेज हो गई थीं।

रॉय उन दिग्‍गज नेताओं में अकेले नहीं हैं जिन्‍होंने ‘अपनी’ पार्टी छोड़ बीजेपी का दामन थामा। इस तरह के नेताओं की लंबी फेहरिस्‍त है। बीते कुछ सालों में कांग्रेस के कई सीनियर नेता पार्टी छोड़ बीजेपी में शामिल हुए। यूपीए सरकार में विदेश मंत्री रहे एसएम कृष्‍णा, ऊर्जा मंत्री रहे और टेक्‍सटाइल मिनिस्‍टर रहे राव इंद्रजीत सिंह का नाम इनमें प्रमुख है।

सच पूछिए तो 2014 से ही भाजपा की ओर दूसरी पार्टी के नेताओं ने रुख करना शुरू कर दिया था। 2014 लोकसभा चुनाव से पहले ज्‍यादातर राजनीतिक पंडितों ने भांप लिया था कि यूपीए वापसी करने नहीं जा रही है। इससे एनडीए का आकर्षण बढ़ गया।

कुछ अपवाद…
यह अलग बात है कि पार्टी बदलकर गए नेताओं को भाजपा में कुछ खास ‘भाव’ नहीं मिला। अपवाद में हम हिमंता बिस्व सरमा को रख सकते हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के एक साल बाद असम कांग्रेस के दिग्गज नेता सरमा भाजपा में शामिल हुए थे। 2016 में असम में भाजपा की सरकार बनी तो उन्‍हें कैबिनेट मंत्री बनाया गया। हाल में हुए विधानसभा चुनावों के बाद प्रदेश में जब भाजपा की दोबारा सरकार बनी तो सरमा पर मोदी और शाह ने भरोसा जताते हुए उन्हें सीएम पद सौंपा। रीता बहुगुणा जोशी ऐसा दूसरा नाम हैं। कांग्रेस में रहते हुए रीता बहुगुणा जोशी ने अखिल भारतीय महिला कांग्रेस और उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमिटी की कमान संभाली। 20 अक्टूबर 2016 को वह भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गईं। उन्‍हें योगी सरकार की कैबिनेट में जगह मिली।

लेकिन ज्‍यादातर को निराशा…
बेशक, चुनावी मौसम में सियासी दलों में नेताओं का इधर से उधर होना नई बात नहीं है। लेकिन, 2014 लोकसभा चुनावों में यूपीए की हार के बाद से बड़ी संख्‍या में दूसरे दलों खासकर कांग्रेस से दिग्‍गज नेताओं की खेप भाजपा में शामिल हुई है। हालांकि, इन्‍हें अपने ‘कद’ के अनुसार चीजें नहीं मिलीं। विदेश मंत्री रह चुके एसएम कृष्णा को ही लें। कांग्रेस से बीजेपी में जाने के बाद उन्हें कोई प्रमुख जिम्‍मेदारी नहीं मिली है। वह लगभग गुमनामी में जी रहे हैं।

महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे और विधानसभा में तत्कालीन विपक्ष के नेता राधाकृष्ण विखे पाटिल ने भी 2019 में भाजपा में शामिल होने के लिए इस्तीफा दे दिया था। यह अलग बात है कि दोनों को कोई बड़ी भूमिका नहीं मिली।

ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया की गिनती तो कांग्रेस के भविष्‍य के नेताओं में होती आई है। वह पूर्व में केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं। यूपीए के कार्यकाल में वह ऊर्जा मंत्री और सूचना प्रौद्योगिकी राज्‍य मंत्री के तौर पर सेवाएं दे चुके हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया पिछले साल मार्च में भाजपा में शामिल हुए थे। इसी कड़ी में बुधवार को उनके अजीज दोस्‍त ने भी भाजपा का दामन थाम लिया है। दोनों को पूर्व कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी का बेहद करीबी माना जाता था। ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया को अब तक कोई ‘उल्‍लेखनीय’ जिम्‍मेदारी नहीं दी गई है।

गुजरात में कांग्रेस का चेहरा और प्रदेश के मुख्‍यमंत्री रहे भी 2019 में भाजपा से जुड़े थे। लेकिन, वह किसी बड़ी भूमिका में नहीं रहे। खबरें हैं कि वाघेला की कांग्रेस में दोबारा वापसी हो सकती है। पिछले विधानसभा चुनाव में सीएम पद को लेकर पार्टी से हुई अनबन के बाद उन्‍होंने कांग्रेस छोड़ दी थी।

फेहरिस्‍त यहीं खत्‍म नहीं होती…
वीरेंद्र सिंह, अशोक तंवर, रणजीत सिंह, विजय बहुगुणा, सतपाल महाराज, अल्पेश ठाकोर और न जाने ऐसे कितने नाम हैं जो कांग्रेस को छोड़ बीजेपी में आ चुके हैं। 2016 से 2020 तक पार्टियों को बदलने और दोबारा चुनाव लड़ने वाले विधायकों के विश्लेषण में पाया गया है कि बीजेपी को सबसे ज्यादा फायदा हुआ। जबकि कांग्रेस ने सबसे ज्यादा विधायकों को छोड़ दिया, जो दूसरी पार्टी में शामिल हो गए।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने 443 विधायकों और सांसदों के चुनावी हलफनामों का विश्लेषण किया। ये ऐसे नेता थे जिन्होंने पिछले पांच वर्षों में पार्टियां बदल लीं और दोबारा चुनाव लड़ा। रिपोर्ट में पाया गया कि राज्यों के 405 विधायकों में से, जिन्होंने पार्टी छोड़ दी और पार्टी बदल ली, 42 फीसदी कांग्रेस से थे। जबकि बीजेपी 4.4 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर रही।

साभार : नवभारत टाइम्स

Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

WatchNews 24x7

Leave a Reply

Your email address will not be published.