कोविशील्ड, कोवैक्सीन और सस्ती आने वाली Corbevax में क्या है अंतर, जानिए

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नई दिल्ली
भारत में जल्द ही एक और देसी कोरोना वैक्सीन उपलब्ध होने वाली है। हैदराबाद बेस्ड बायोलॉजिलक ई की वैक्सीन Corbevax के थर्ड फेज का क्लीनिकल ट्रायल आखिरी दौर में है और जुलाई तक इसके खत्म होने की उम्मीद है। यह देश की सबसे सस्ती कोरोना वैक्सीन हो सकती है यानी कोविशील्ड से भी सस्ती। केंद्र ने Corbevax की 30 करोड़ डोज के लिए 15000 करोड़ रुपये का अडवांस पेमेंट भी कर दिया है। आइए समझते हैं कि सीरम की कोविशील्ड, भारत बायोटेक की कोवैक्सीन और बायोलॉजिकल ई की कोर्बिवैक्स में क्या अंतर है, ये कैसे काम करती है।

तीनों के बनाने की तकनीक और काम करने का तरीका अलग
कोर्बिवैक्स, कोविशील्ड और कोवैक्सीन तीनों ही कोरोना से बचाव की वैक्सीन हैं। तीनों को बनाने की तकनीक और इनके काम करने का तरीका अलग-अलग है।

कोरोना वायरस के एक खास हिस्से से बना है Corbevax
बायोलॉजिकल ई की कोरोना वैक्सीन Corbevax कोरोना वायरस यानी SARS-CoV2 के एक खास हिस्से स्पाइक प्रोटीन से बना है। दरअसल, वायरस की बाहरी सतह पर मौजूद स्पाइक प्रोटीन उसे शरीर की कोशिका में घुसने में मदद करता है। कोशिका में घुसने के बाद वायरस व्यक्ति को संक्रमित कर बीमार कर देता है। लेकिन अगर सिर्फ स्पाइक प्रोटीन शरीर में घुसे तो यह कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता है। होता यह है कि जब स्पाइक प्रोटीन को शरीर में इंजेक्ट किया जाता है तो हमारे शरीर के इम्यून सिस्टम को ऐसा लगता है कि किसी वास्तविक वायरस ने हमला किया है। फिर वह एंटीबॉडी का उत्पादन शुरू कर देते हैं। यही एंटीबॉडी संक्रमण से बचाव करता है। बाद में अगर कभी असल वायरस से सामना होता है तो इम्यून सिस्टम का टी-लिम्फोसाइंट्स सेल उसे पहचान लेती है और तुरंत ही बी-लिफोसाइट्स ऐक्टिवेट हो एंटीबॉडी का उत्पादन शुरू कर देता है।

वायरल वेक्टर और mRNA तकनीक पर आधारित वैक्सीन एक ऐसे कोड का इस्तेमाल करती हैं जो हमारी कोशिकाओं को स्पाइक प्रोटीन बनाने के लिए प्रेरित करता है जिसके खिलाफ इम्युनिटी पैदा करनी होती है। लेकिन Corbevax इनसे इस मामले में भी अलग है कि इसके जरिए दरअसल स्पाइक प्रोटीन को ही सीधे इंजेक्ट किया जाता है। यह भी डबल डोज वाली वैक्सीन है।

वायरल वेक्टर तकनीक पर आधारित है कोविशील्ड
भारत में इस्तेमाल की जा रही कोरोना वायरस की वैक्सीन कोविशील्ड वायरल वेक्टर तकनीक पर आधारित है। जॉनसन ऐंड जॉनसन और स्पूतनिक V भी वायरल वेक्टर आधारित वैक्सीन हैं। इसमें एडेनोवायरस का इस्तेमाल किया जाता है जो दरअसल वायरस ही होता है लेकिन उसमें नुकसान पहुंचाने की क्षमता नहीं होती। एडेनोवायरस की आनुवांशिक सामग्री SARS-CoV2 से ही मिलती जुलती है। कोविशील्ड में चिंपांजी के एडेनोवायरस का इस्तेमाल किया गया है। कोविशील्ड को बनाने के लिए सबसे पहले कोरोना वयरस के स्ट्रेन को संक्रमणमुक्त किया जाता है। बाद में उसमें स्पाइक प्रोटीन विकसित की जाती है। इसी स्पाइक प्रोटीन के जरिए शरीर में कोरोना के प्रति इम्युनिटी डिवेलप होती है। इसकी भी दो डोज हैं।

कोवैक्सीन में मरे हुए वायरस का हुआ है इस्तेमाल
भारत बायोटेक की कोवैक्सीन को कोरोना वायरस को निष्क्रिय करके बनाई गई है। इसमें मृत SARS-CoV2 के हिस्से होते हैं। जब वायरस के इनेक्टिवेटेड हिस्से शरीर में जाते हैं तो ये नुकसान नहीं पहुंचा पाते लेकिन प्रतिरक्षा तंत्र इसे बाहरी हमला मानकर इसके खिलाफ एंटीबॉडी बनाने लगता है। इस तरह SARS-CoV2 के प्रति शरीर में इम्युनिटी डिवेलप हो जाती है। कोवैक्सीन की भी दो डोज है।

साभार : नवभारत टाइम्स

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