दहेज हत्या के बढ़ रहे मामले, लेकिन पति के निर्दोष रिश्तेदारों को फंसाना भी चिंताजनकः सुप्रीम कोर्ट
ने दहेज हत्या मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि इसमें संदेह नहीं है कि दिन-प्रतिदिन दहेज हत्या जैसा खतरा बढ़ रहा है, लेकिन साथ ही कहा कि कई बार ऐसा भी देखा गया है कि ऐसे मामले में पति के उन रिश्तेदारों को फंसा दिया जाता है जिनका मामले में कोई भूमिका नहीं होती है। ऐसे मामले में अदालत को सजग रहने की जरूरत है। दहेज हत्या मामले में आरोपियों को दोषी करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या मामले में दिए फैसले में कहा है कि जब भी दहेज हत्या से संबंधित मामले को देखा जाए तो इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है कि इस कानून को इसलिए बनाया गया था कि दहेज के लिए लड़कियों को जलाए जाने से रोका जा सके। दहेज जैसी सामाजिक बुराई पर लगाम लगान के लिए ये कानून बनाया गया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि दहेज हत्या मामले में आरोपी के बयान के समय ट्रायल कोर्ट गंभीर नहीं रहते जो चिंता का विषय है और कहा कि कई बार दहेज हत्या मामले में भी पति के परिजनों को बिना कारण फंसा दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी पति और अन्य ससुरालियों को दहेज हत्या मामले में दोषी करार दिया लेकिन आत्महत्या के लिए उकसाने के केस से उन्हें बरी करते हुए उक्त टिप्पणी की।
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमणा की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि कई बार ऐसा भी ह ोता है कि आरोपी से पूछताछ के बिना ही उनके बयान दर्ज कर दिए जाते हैं। इस मामले में पंजाब हरियाया हाई कोर्ट ने पति समेत अन्य ससुरालियों को दहेज हत्या और आत्म हत्या के लिए उकसाने के मामले में दोषी करार दिया था जिस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। अभियोजन पक्ष के मुताबिक 31 जुलाई 1995 को लड़की के पिता को गांव वालों ने खबर दी थी कि उनकी बेटी अस्पताल में भर्ती है। जब तक महिला के पिता अस्पताल पहुंते तब तक उसकी जलने से मौत हो चुकी थी।
ट्रायल कोर्ट ने 11 दिसंबर 1997 को पति और अन्य को दोषी करार दिया था और पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने 6 नवंबर 2008 को अपील खारिज कर दी और सजा बरकरार रखा था। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजना पक्ष को चाहिए कि जब दहेज हत्या का केस हो तो उसके लिए जितने भी जरूरी कारक हैं वह मौजूद होना चाहिए। एक बार जब ये साबित हो जाए कि अप्राकृतिक मौत हुई है और कोई कैजुअल्टी है तो फिर भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-313 के तहत आरोपी के खिलाफ मामला चला जाता है।
अभियोजन पक्ष को यह बताना होता है कि मरने से पहले मृतका को दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था। लेकिन ये चिंता का विषय है कि जब ट्रायल कोर्ट अभियुक्त का बयान दर्ज करता है तो वह बहुत ही कैजुअल तरीके से करता है। जबकि आरोपी का धारा-313 के तहत दर्ज होने वाले बयान सिर्फ औपचारिक नहीं होना चाहिए। यह धारा-313 आरोपी को इस बात का अधिकार देता है कि उसके खिलाफ जो भी तथ्य हैं उसका वह स्पष्टीकरण दे पाए। ऐसे में ये अदालत का दायित्व बनता है कि वह देखे कि आरोपी को पूरा मौका मिले और उससे निष्पक्ष तरीके से सवाल किया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि आए दिन दहेज हत्याके मामले बढ़ रहे हैं और इन खतरों से अदालत वाकिफ है। लेकिन कभी भी पति के परिजनों और उन मेंबरों को भी फंसा दिया जाता है जिनकी भूमिका नहीं होती है। ऐसे में अदालत को सावधानी रखने की जरूरत है।
साभार : नवभारत टाइम्स