कोविड नहीं, कमजोर इम्यून सिस्टम वालों को शिकार बना रहा म्यूकोरमाइकोसिस
म्यूकोरमाइकोसिस के केस दिल्ली और देश में दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हैं। सिर्फ एम्स में 23 मामले सामने आ चुके हैं। अपोलो में भी 10 मरीजों का इलाज किया जा चुका है। गंगाराम अस्पताल में भी म्यूकोरमाइकोसिस के कई मरीज आए हैं। यह बीमारी इतनी गंभीर है कि समय पर इलाज न होने पर यह नाक और जबड़े की हड्डी तक को गला देती है। आंखों की रोशनी चली जाती है। हालांकि समय पर इलाज मिलने पर बहुत हद तक इससे बाहर निकला जा सकता है। जो मरीज कोविड के साथ डायबिटिक भी हैं, जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है, ऐसे लोगों में संक्रमण का खतरा ज्यादा है।
ब्लैक फंगस एक अलग तरह की बीमारी है। उसका संक्रमण बहुत कम देखा जाता है। वह इतना खतरनाक भी नहीं होता है। दरअसल फंगस भी कई तरह के होते हैं। जो अभी फैला हुआ है, इसे कोविड असोसिएटेड म्यूकोरमाइकोसिस (CAM) कहा जाता है।
म्यूकोरमाइकोसिस के केस दिल्ली और देश में दिनोंदिन बढ़ते जा रहे हैं। सिर्फ एम्स में 23 मामले सामने आ चुके हैं। अपोलो में भी 10 मरीजों का इलाज किया जा चुका है। गंगाराम अस्पताल में भी म्यूकोरमाइकोसिस के कई मरीज आए हैं। यह बीमारी इतनी गंभीर है कि समय पर इलाज न होने पर यह नाक और जबड़े की हड्डी तक को गला देती है। आंखों की रोशनी चली जाती है। हालांकि समय पर इलाज मिलने पर बहुत हद तक इससे बाहर निकला जा सकता है। जो मरीज कोविड के साथ डायबिटिक भी हैं, जिनका इम्यून सिस्टम कमजोर है, ऐसे लोगों में संक्रमण का खतरा ज्यादा है।
10 मरीजों में से 5 की हुई सर्जरी
अपोलो अस्पताल के ईएनटी सर्जन डॉक्टर अमित किशोर ने बताया कि पिछले एक हफ्ते में उन्होंने 10 मरीजों का इलाज किया है। इसमें से 5 की सर्जरी की गई। उन्होंने कहा कि 5 में से 4 की साइनस की सर्जरी की गई और एक मरीज की साइनस और आंख की सर्जरी की गई। एक तक आंख निकालनी पड़ी। उन्होंने कहा कि इस संक्रमण से टिशू डैमेज हो जाता है, काला पड़ जाता है। ऐसी स्थिति में इलाज का असर नहीं होता है। उस टिशू को निकालना पड़ता है। टिशू के सड़ जाने से हड्डी और मांस गलने लगता है। यह खून की नलियों में पहुंचने के बाद ब्लड सप्लाई को रोक देता है, वहां मौजूद टिशू खराब होने लगता है, ऐसी स्थिति में सर्जरी की नौबत आती है। (फोटोः डॉ. अमित किशोर)
यह एक तरह का फंगल इंफेक्शन है
म्यूकोरमाइकोसिस एक तरह का फंगल इंफेक्शन है। यह पुरानी बीमारी है। इसके मामले पहले भी देखे जाते रहे हैं। एम्स के न्यूरो सर्जन डॉक्टर दीपक गुप्ता ने कहा कि यह बीमारी नाक, आंख और ब्रेन को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है। यह नाक के जरिए शरीर में पहुंचती है। सबसे पहले इसका असर नाक के साइनस पर पड़ता है। इसके बाद मरीज को साइनोसाइटिस हो जाता है, फिर यह संक्रमण आंख तक पहुंच जाता है। आंख में रेटिना को डैमेज करता है, जिससे आंखों की रोशनी चली जाती है। फिर यह ब्रेन तक पहुंच जाता है। ब्रेन में पहुंचने के बाद मरीज को दौरे आने लगते हैं। ऐसे मरीजों में मौत का खतरा काफी बढ़ जाता है।
म्यूकोरमाइकोसिस को ब्लैक फंगस कहना गलत
एम्स के न्यूरोसर्जन डॉक्टर दीपक गुप्ता ने बताया कि यह फंगल इंफेक्शन है। फंगस कई तरह के होते हैं। अभी जो फैला हुआ है, वह ‘म्यूकर’ यानी नाक के जरिए शरीर में जाता है। मेडिकल की भाषा में इसे म्यूकोरमाइकोसिस कहा जाता है। इसे ब्लैक फंगस कहना गलत है। ब्लैक फंगस एक अलग तरह की बीमारी है। उसका संक्रमण बहुत कम देखा जाता है। वह इतना खतरनाक भी नहीं होता है। दरअसल फंगस भी कई तरह के होते हैं। जो अभी फैला हुआ है, इसे कोविड असोसिएटेड म्यूकोरमाइकोसिस (CAM) कहा जाता है। यह रोहिनो यानी नाक, ऑरबिटल यानी आंख सेरेब्रल यानी ब्रेन को नुकसान पहुंचाता है, इसलिए इसे रोहिनीऑरबिटलसेरेब्रल म्यूकोरमाइकोसिस (RhinoOrbitalCerebral Mucormycosis) भी कहा जाता है।
हवा और मिट्टी में भी होता है फंगस
डॉक्टर अमित ने कहा कि हवा, धूल, मिट्टी में यह फंगस होता है। आमतौर पर यह फंगस दिक्कत नहीं करता, क्योंकि मानव शरीर के अंदर बचाव के लिए जो डिफेंस सिस्टम बना हुआ है, वह इसे रोककर रखता है। लेकिन जब किसी व्यक्ति की इम्यूनिटी बीमारी या फिर लगातार दवा के सेवन या फिर डायबिटीज कंट्रोल न होने, एचआईवी, ट्रांसप्लांट के मामले में इम्यूनोस्प्रेशन दवा लेने की वजह से कमजोर हो जाती है, तो ऐसे मरीजों में इसका ज्यादा खतरा रहता है। उन्होंने कहा कि अमूमन साल में ऐसे 8 से 10 मरीज देखते हैं, लेकिन अभी एक हफ्ते में 10 मरीज आ चुके हैं।
कोविड में स्टेरॉयड के सेवन से बढ़े मरीज
एम्स के कोविड एक्सपर्ट डॉक्टर नीरज निश्चल ने कहा कि सिर्फ कोविड मरीजों में यह बीमारी होती है, ऐसा नहीं है। यह बीमारी उन मरीजों को होती है, जिनकी इम्यूनिटी कमजोर होती है। अभी कोविड के मरीज हर तरफ हैं, जिससे उनकी इम्यूनिटी पहले से कमजोर हो चुकी है। इसमें से जो मरीज अनकंट्रोल डायबिटीज के शिकार होते हैं, उनकी इम्यूनिटी और कम होती है। यही नहीं अभी पूरे देश में कोविड के मरीजों पर स्टेरॉयड का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे ऐसे मरीजों का डायबिटीज भी बढ़ जाता है और उनकी इम्यूनिटी पहले से और कमजोर हो जाती है। ऐसे मरीजों में जैसे ही यह फंगस पहुंचता है, उन्हें संक्रमण हो जाता है। इम्यूनिटी कमजोर होने की वजह से मरीज का शरीर संक्रमण को फैलने से रोक नहीं पाता है और वो म्यूकोरमाइकोसिस का शिकार हो जाते हैं। डॉक्टर अमित ने कहा कि जब स्टेरॉयड दिया जाता है, तो इम्यूनिटी कम होती है। इसके साथ में ब्लड में सेरेटन लेवल बढ़ जाता है, फंगस की ग्रोथ के लिए यह अच्छा होता है। डॉक्टर का कहना है कि यह बीमारी हर कोविड मरीज को नहीं होती। (फोटोः डॉ. नीरज निश्चल)
लक्षण आने में लग रहे 3 से 5 हफ्ते
डॉक्टर अमित ने कहा कि कोविड के शिकार मरीजों में 3 से 5 हफ्तों के बाद इसके लक्षण आ रहे हैं। लक्षण दिखने पर तुरंत ईएनटी डॉक्टर के पास जाएं। डॉक्टर पहले दूरबीन के जरिए देखता है कि फंगस है या नहीं। वहां से स्वैब लेकर फंगस के प्रकार की जांच की जाती है। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर इंडोस्कोपी, सीटी स्कैन, एमआरआई का भी सहारा लिया जाता है।
कोविड ठीक होने के बाद ऐसा हो तो तुरंत डॉक्टर से मिलें
नाक से यह संक्रमण शुरू होता है
नाक से गाढ़ा और ब्लड वाला तरल पदार्थ निकले
चेहरे या सिर में दर्द या सुन्नपन्न होने लगे
आंखों के पीछे दर्द होने लगे
नाक के आसपास सूजन आ जाए
आंखों में दर्द होने लगे
सिर में दर्द रहने लगे
आंखों की रोशनी कम होने लगे
एंटीफंगस दवा और सर्जरी है इलाज
डॉक्टर अमित ने कहा कि इसका इलाज एंटीफंगस इंजेक्शन है, लेकिन कोई भी दवा या इलाज डॉक्टर की निगरानी में होना चाहिए। इसके इलाज में ईएनटी के अलावा, आई, न्यूरो और डेंटल के डॉक्टर की भी जरूरत पड़ती है। समय पर पहचान और इलाज शुरू होने पर रिकवरी बेहतर है।
ब्लैक फंगस की दवाओं की कमी
आकाश के रिश्तेदार बीएलके सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में म्यूकोरमाइकोसिस की वजह से एडमिट हैं, लेकिन अस्पताल में इस बीमारी के इलाज का इंजेक्शन नहीं है। इंजेक्शन उन्हें बाहर से खरीदकर लाने को कहा गया है। आकाश ने कहा कि वह अब तक 4 इंजेक्शन 32 हजार में खरीद चुके हैं। अभी और इंजेक्शन की जरूरत है। वहीं सूत्रों का कहना है कि अचानक इंजेक्शन की कमी होने लगी है। बाजार में भी यह आसानी से नहीं मिल रहे हैं। रिटेल डिस्ट्रीब्यूशन केमिस्ट अलायंस के प्रेसिडेंट संदीप नांगिया ने कहा कि पहले यह इंजेक्शन बिकता नहीं था। दो दिन से इसकी डिमांड बढ़ गई है। डॉक्टर लिख रहे हैं, लेकिन आम दुकानदार के पास यह इंजेक्शन पहले भी नहीं होता था। यह आमतौर पर अस्पताल में ही सप्लाई किया जाता है, क्योंकि ज्यादातर एडमिट मरीजों को दिया जाता है। यह दवा बनती कम थी, क्योंकि जरूरत कम थी। अभी ज्यादा मांग हो गई है, अगले कुछ दिनों में यह सामान्य हो जाएगी। दवा दुकानदार कैलाश गुप्ता ने कहा कि अब तक इस इंजेक्शन की कोई डिमांड नहीं थी। अभी डिमांड है, तो सरकार को इस पर तुरंत एक्शन लेना चाहिए, ताकि रेमडेसिवियर जैसी स्थिति न होने पाए। अभी भी शहर में गिनती के मरीज हैं, सरकार को इसके लिए एक सिस्टम बनाना चाहिए, ताकि जरूरतमंद को आसानी से इंजेक्शन मिल सके। इस बारे में अपोलो के डॉक्टर अमित ने कहा कि उनके यहां इंजेक्शन की कोई कमी नहीं है।
साभार : नवभारत टाइम्स