कोई धनी कहे तो होती थी परेशानी…थे सबसे अमीर MP, 895 करोड़ की दौलत …अब ये चाहत
पैसे से पावर यानी ताकत आती है…ताकत से और पैसा। पुरानी कहावत के उलट देश के सबसे अमीर राजनेताओं में से एक कोंडा विश्वेश्वर रेड्डी के पास अब पावर यानी सत्ता नहीं है। इससे भी ज्यादा बड़ी बात यह है कि वह किसी राजनीतिक पार्टी से नहीं जुड़े हुए हैं। 2013 में उन्होंने टीआरएस जॉइन की थी। वहीं 2018 में पार्टी छोड़कर कांग्रेस का हाथ थामा। पिछले महीने ही उन्होंने कांग्रेस को भी बाय-बाय कह दिया। अब वह तेलंगाना में नई पार्टी बनाने की कोशिश में हैं।
हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया के रॉबिन डेविड ने विश्वेश्वर रेड्डी से खास बात की…
2014 से 2019 के बीच रेड्डी देश के सबसे अमीर सांसद थे। उनकी दौलत 528 करोड़ थी और वह तेलंगाना की चेवेल्ला सीट से चुनाव जीते थे। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में 895 करोड़ की संपत्ति के साथ वह दूसरे सबसे धनी कैंडिडेट थे। इस चुनाव में बतौर कांग्रेस उम्मीदवार उन्हें शिकस्त मिली थी। सबसे धनी सांसद या सबसे धनी उम्मीदवार कहलाने में उन्हें परहेज नहीं है लेकिन धनी कारोबारी कहे जाने पर वह हाथ जोड़ लेते हैं। टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, ‘मैं एक अकैडमिक, उद्यमी या रिसर्चर कहलाना पसंद करूंगा।’
एक अमीर राजनेता के रूप में पहचान को वह फायदेमंद बताते हैं। विश्वेश्वर रेड्डी ने बताया, ‘पहले मुझे जब कोई धनी कहता था तो परेशानी होती थी। लोग सोचते होंगे अरे इतने पैसे वाला है, ये आम आदमी की समस्या जानते नहीं। लेकिन मुझे तब हैरानी हुई जब 2014 के चुनाव में इससे फायदा मिला। लोग कहने लगे कि वह एक पैसेवाला है। इसलिए उसे रिश्वत के पैसों की जरूरत नहीं होगी। आपको एक बात बता दूं कि मैं केवल कागज पर सबसे अमीर हूं। तेलंगाना का हर एमपी मुझसे ज्यादा धनी है। ये लोग मुझे 20 से 30 बार खरीद सकते हैं। मैं टैक्स अदा करता हूं वे नहीं करते हैं।’
राज्य की सियासत के बारे में वह कहते हैं कि यह कीचड़ में सुअर से कुश्ती लड़ने जैसा है। विश्वेश्वर कहते हैं, ‘विधानसभा की सियासत से लोकसभा की सियासत ज्यादा साफ-सुथरी है। संसद में लोग एक-दूसरे पर चप्पल नहीं फेंकते हैं। विधानसभाओं में राजनीति का स्तर इसके मुकाबले निम्न है। जिस तरह संसद बजट और दूसरी चीजों के लिए कार्यवाही संपन्न करती है, वह काफी अलग है।’
हालांकि अपनी इच्छा के विपरीत विश्वेश्वर रेड्डी तेलंगाना की सभी छोटी क्षेत्रीय पार्टियों को एक मंच पर लाने के काम में जुटे हैं। इनमें तेलंगाना जन समिति, तेलंगाना इंती पार्टी समेत कुछ निर्दलीय भी शामिल हैं। उनका मानना है कि एकजुट क्षेत्रीय संगठन टीआरए से प्रभावी रूप से लड़ सकता है। भविष्य में बीजेपी या कांग्रेस से हाथ मिलाने की संभावनाओं को भी उन्होंने खारिज नहीं किया। जब उनसे पूछा गया कि वह क्षेत्रीय पार्टी क्यों बनाना चाहते हैं तो रेड्डी ने कहा, ‘किसी राष्ट्रीय पार्टी में मामला पहले केंद्रीय नेतृत्व के पास जाता है फिर फैसला लेते-लेते हालात बदल जाते हैं। कांग्रेस का उदाहरण लें। जब तक वह समस्या को समझकर रिपोर्ट करते हैं और इसका हल लोकतांत्रिक तरीके से ढूंढते हैं तब तक केसीआर (के चंद्रशेखर राव) जैसा कोई शख्स चीजों को बदल देता है।’
टीआरएस एमपी के रूप में अपने दिन उन्हें अब भी याद हैं। संसद में तमाम पार्टियों में उनके दोस्त बन गए थे। लेकिन वह कहते हैं, ‘सीएम केसीआर और उनके मंत्री बेटे केटी रामाराव से उनके मतभेद हो गए, क्योंकि जैसा वादा किया गया था वैसा राज्य का विकास नहीं हुआ। राज्य के पास अब भी 4 लाख करोड़ का कर्ज है।’
उन्होंने बीजेपी के बारे में एक बात जरूर मानी। रेड्डी ने कहा, ‘बीजेपी एक ऐसा विकल्प है, जिसके बारे में मैं सक्रियता से संभावनाएं देख रहा हूं। लेकिन इस पार्टी को जॉइन करना न्यायोचित नहीं होगा। एकीकृत राजनीतिक पार्टी मेरा लक्ष्य है। लंबी रेस में हम कांग्रेस या बीजेपी के साथ हाथ मिला सकते हैं।’
साभार : नवभारत टाइम्स