सुप्रीम कोर्ट पहुंचा यूनिफर्म सिविल कोड का मामला….हाई कोर्ट में पेंडिंग केस सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर करने की गुहार

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नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर यूनिफर्म सिविल कोड मामले में हाई कोर्ट में पेंडिंग केस को सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर करने की गुहार लगाई गई है। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में याचिकाकर्ता ने कहा है कि अन्य हाई कोर्ट में भी इससे संबंधित मामले आ सकते हैं । ऐसे में हाई कोर्ट में पेंडिंग केस सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किया जाए। सुप्रीम कोर्ट में बीजेपी नेता और एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की ओर से अर्जी दाखिल कर केंद्र सरकार को प्रतिवादी बनाया गया है और कहा गया है कि दिल्ली हाई कोर्ट में पेंडिंग केस सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर किया जाए।

दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया था निर्देशदअरसल, दिल्ली हाई कोर्ट ने 31 मई 2019 को यूनिफार्म (कॉमन) सिविल कोड के लिए ड्राफ्ट तैयार करने का निर्देश देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार और लॉ कमिशन से जवाब दाखिल करने को कहा था। दिल्ली हाई कोर्ट ने उस याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था जिसमें याचिकाकर्ता ने कहा है कि केंद्र सरकार को कहा जाए कि वह संविधान के अनुच्छेद-44 (समान नागरिक आचार संहिता) के भावना के अनुरुप ड्राफ्त तैयार करे। याचिका में गुहार लगाई गई है कि समान नागरिक आचार संहिता को क्रियान्वित किया जाए।

सुप्रीम कोर्ट के पास ट्रांसफर करने की मांगअदालत ने केंद्र सरकार के अलावा लॉ कमिशन को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा हुआ है। अभी हाई कोर्ट में केंद्र सरकार को अपना स्टैंड साफ करना है और मामला वहां पेंडिंग है इसी बीच अब सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता ने अर्जी दाखिल कर कहा है कि मामला सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर किया जाए। याचिका में कहा गया है कि जेंडर समानता व जस्टिस तब तक पाया नहीं जा सकता जब तक कि अनुच्छेद-44 को लागू न किया जाए।

यूनिफर्म सिविल कोड लागू न होने से कई समस्याएंयाची ने कहा है कि यूनिफर्म सिविल कोड लागू न होने से कई समस्याएं हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ में बहुविवाह अर्थात चार निकाह करने की छूट है लेकिन अन्य धर्मो में ‘एक पति-एक पत्नी’ का नियम बहुत कड़ाई से लागू है। बाझपन या नपुंसकता जैसा उचित कारण होने पर भी हिंदू ईसाई पारसी के लिए दूसरा विवाह अपराध है और भारतीय दंड संहिता की धारा 494 में 7 वर्ष की सजा का प्रावधान है। विवाह की न्यूनतम उम्र भी सबके लिए एक समान नहीं है।

सबके लिए हों समान नियममुस्लिम लड़कियों की वयस्कता की उम्र निर्धारित नहीं है और माहवारी शुरू होने पर लड़की को निकाह योग्य मान लिया जाता है। 11-12 वर्ष की उम्र में भी लड़कियों का निकाह किया जाता है जबकि अन्य धर्मो मे लड़कियों की विवाह की न्यूनतम उम्र 18 वर्ष और लड़कों की विवाह की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष है। विवाह की न्यूनतम उम्र किसी भी तरह से धार्मिक या मजहबी विषय नहीं है बल्कि सिविल राइट और ह्यूमन राइट का मामला है इसलिए यह पूर्णतः जेंडर न्यूट्रल और रिलिजन न्यूट्रल होना चाहिए।

मुस्लिम कानून मे मौखिक वसीयत एवं दान मान्य है- याचीतीन तलाक अवैध घोषित होने के बावजूद तलाक-ए-हसन एवं तलाक-ए-अहसन आज भी मान्य है और इनमें भी तलाक का आधार बताने की बाध्यता नहीं है और केवल 3 महीने प्रतीक्षा करना है लेकिन अन्य धर्मो मे केवल न्यायालय के माध्यम से ही विवाह-विच्छेद किया जा सकता है। मुस्लिम कानून मे मौखिक वसीयत एवं दान मान्य है लेकिन अन्य धर्मो मे केवल पंजीकृत वसीयत एवं दान ही मान्य है।

अलग-अलग धर्मों में अलग-अलग नियममुस्लिम कानून मे ‘उत्तराधिकार’ की व्यवस्था अत्यधिक जटिल है, पैत्रिक सम्पत्ति में पुत्र एवं पुत्रियों के मध्य अत्यधिक भेदभाव है, अन्य धर्मो में भी विवाहोपरान्त अर्जित सम्पत्ति में पत्नी के अधिकार अपरिभाषित हैं और उत्तराधिकार के कानून बहुत जटिल हैं।(तलाक) का आधार भी सबके लिए एक समान नहीं है। व्याभिचार के आधार पर मुस्लिम अपनी बीबी को तलाक दे सकता है लेकिन बीबी अपने शौहर को तलाक नहीं दे सकती है। हिंदू पारसी और ईसाई धर्म में तो व्याभिचार तलाक का ग्राउंड ही नहीं है। कोढ़ जैसी लाइलाज बीमारी के आधार पर हिंदू और ईसाई धर्म में तलाक हो सकता है लेकिन पारसी और मुस्लिम धर्म में नहीं। गोद लेने का नियम भी हिंदू मुस्लिम पारसी ईसाई के लिए अलग अलग है। मुस्लिम गोद नहीं ले सकता और अन्य धर्मो मे भी पुरुष प्रधानता के साथ गोद व्यवस्था लागू है।

सभी को एक समान अधिकार होना चाहिएयाचिकाकर्ता ने कहा कि यूनिफर्म सिविल कोड लागू होने से कई लाभ हैं। देश और समाज को सैकड़ों जटिल कानूनों से मुक्ति मिलेगी। वर्तमान समय में अलग अलग धर्म के लिए लागू अलग अलग ब्रिटिश कानूनों से सबके मन में हीन भावना पैदा होती है इसलिए सभी नागरिकों के लिए एक ‘भारतीय नागरिक संहिता’ लागू होने से सबको हीन भावना से मुक्ति मिलेगी। न्यायालय के माध्यम से विवाह-विच्छेद करने का एक सामान्य नियम सबके लिए लागू होगा। पैतृक संपति में पुत्र-पुत्री तथा बेटा-बहू को एक समान अधिकार प्राप्त होगा और संपति को लेकर धर्म जाति क्षेत्र और लिंग आधारित विसंगति समाप्त होगी।विवाह-विच्छेद की स्थिति में विवाहोपरांत अर्जित संपति में पति-पत्नी को समान अधिकार होगा। राष्ट्रीय स्तर पर एक समग्र एवं एकीकृत कानून मिल सकेगा। अलग-अलग धर्मों के लिए अलग-अलग कानून होने के कारण अनावश्यक मुकदमेबाजी में उलझना पड़ता है।

हाई लेवल की एक्सपर्ट कमिटी का गठन करें- याचीसुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा गया है कि दिल्ली हाई कोर्ट में पेंडिंग केस सुप्रीम कोर्ट ट्रांसफर किया जाए।अनुच्छेद-14,15,21 के आलोक में अनुच्छेद-44 के भावना के अनुसार यूनिफर्म सिविल कोड ड्राफ्ट किया जाए। केंद्र सरकार को कहा जाए कि वह एक जूडिशियल कमिशन या फिर हाई लेवल की एक्सपर्ट कमिटी का गठन करे जो यूनिफर्म सिविल कोड को लेकर ड्राफ्ट तैयार करे। इसके लिए तीन महीने का वक्त दिया जाए। ये ड्राफ्ट आर्टिकल-44 (समान नागरिक आचार संहिता) के भावनाओं के अनुरुप हो। संविधान अनुच्छेद-14 में समानता की बात करता है जबकि अनुच्छेद-15 में कहा गया है कि जाति, धर्म व लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा। अनुच्छेद-21 जीवन और स्वच्छंदता की बात करता है।

साभार : नवभारत टाइम्स

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