महिलाओं को परमानेंट कमिशन देने के लिए तय क्राइटीरिया मनमाना और भेदभावपूर्ण: सुप्रीम कोर्ट

महिलाओं को परमानेंट कमिशन देने के लिए तय क्राइटीरिया मनमाना और भेदभावपूर्ण: सुप्रीम कोर्ट
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नई दिल्ली
ने कहा है कि महिलाओं को परमानेंट कमिशन देने के लिए जो मूल्यांकन का क्राइटीरिया तय किया गया है वह मनमाना और भेदभावपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार (आर्मी अथॉरिटी)से कहा है कि वह की महिला अधिकारियों को परमानेंट कमिशन देने के आवेदन पर एक महीने के भीतर फिर से विचार करे और दो महीने के भीतर ऑर्डर करे। महिला अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई थी कि परमानेंट कमिशन के लिए जो क्राइटीरिया और प्रक्रिया तय किया गया है वह मनमाना, अनफेयर और अतार्किक है।

क्राइटीरिया में महिलाओं की अचीवमेंट को नजरअंदाज किया गया
सुप्रीम कोर्ट ने शॉर्ट सर्विस कमिशन की महिला ऑफिसर जो परमानेंट कमिशन चाहती हैं, उनकी उस गुहार को सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है कि महिला ऑफिसरों को परमानेंट कमिशन देने के लिए तय एसीआर (एनुअल कन्फिडेंशियल रिपोर्ट) की प्रक्रिया में खामी है और ये भेदभाव वाला है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला अधिकारियों के लिए तैयार किया गया एसीआर यानी बेंचमार्क मनमाना और अतार्किक है। कई महिला अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर पिछले साल शीर्ष अदालत द्वारा महिलाओं को परमानेंट कमिशन देने का जो आदेश दिया गया था, उसे लागू करने की गुहार लगाई थी।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला अधिकारियों को परमानेंट कमिशन देने के लिए एसीआर के आंकलन का क्राइटीरिया जो तय किया गया है उसमें महिलाओं की बहादुरी और उनके अचीवमेंट को नजरअंदाज किया गया है। इस भेदभाव से महिला ऑफिसरों के आर्थिक, मनोवैज्ञानिक और गरिमा पर असर होता है।

समाज का स्ट्रक्चर पुरुषों ने पुरुषों के लिए बनाया है
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें इस बात को समझना होगा कि समाज का स्ट्रक्चर पुरुषों द्वारा पुरुषों के लिए ही बनाया गया है। इस संरचना में चाहे कहीं खामी नजर न भी आती हो लेकिन ये पितृसत्तात्मक दृष्टिकोरण को दिखाता है। स्वतंत्रता के बाद हमारे संविधान में कोशिश है कि समाज के सभी वर्ग के लोगों को समानता का अधिकार मिले। समान अवसर मिले समान नौकरी के अवसर मिले। लिंग आदि के आधार पर समानता हो।

तब से लेकर अब तक लगातार कोशिश चल रही है कि जो समानता की गारंटी संविधान देता है उसे पूरा किया जाए। लेकिन ये गर्व से कहना ये काफी नहीं है कि महिलाओं को देश सेवा का मौका दिया गया है और फौज में भी उनको मौका दिया गया है। अगर सर्विस कंडिशन की तस्वीर को देखें तो वह अलग कहानी कहती है। ये सिर्फ सांकेतिक समानता है ऊपरी तौर पर समानती की बात है लेकिन संविधान की जो सही भावना है वह ये नहीं है। संविधान समानता की गारंटी देता है।

एसीआर का क्राइटीरिया सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के अनुरूप नहीं
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि पिछले साल के जजमेंट में महिला अधिकारियों के प्रति होने वाले भेदभाव पर चिंता जताई गई थी, लेकिन एसीआर के क्राइटीरिया में उस बात को मद्देनजर नहीं रखा गया। गुरुवार को दिए अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसएससी महिल अधिकारियों के एसीआर आंकलन का जो क्राइटीरिया है वह एक तरह से सुनियोजित भेदभाव है।

एसीआर क्राइटीरिया अपने आप में गलत है और इस तरह हम उसे मनमाना और अनफेयर करार देते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिन महिलाओं को परमानेंट कमिशन नहीं दिया गया है वह हमारे सामने अर्जी लेकर चेरिटी के लिए नहीं आई हैं ये उनका अधिकार है। महिला अधिकारियों की अर्जी में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को सही भावना से लागू नहीं किया गया है। परमानेंट कमिशन के लिए जो क्राइटीरिया और प्रक्रिया तय किया गया है वह मनमाना, अनफेयर और अतार्किक है।

महिला अधिकारियों को परमानेंट कमिशन दिया जाए
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि परमानेंट कमिशन देने के लिए जो आंकलन का क्राइटीरिया तय किया गया है वह सिस्टमेटिक भेदभाव वाला है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फिटनेस स्टैंडर्ड को शेप 1 क्राइटीरिया के रूप में जाना जाता है लेकिन ये क्राइटीरिया उस समय पुरुष अधिकारियों पर लागू थे, जब उन्हें सर्विस के आरंभ में परमानेंट कमिशन दिया जाता था।

बबीता पुनिया केस में सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल जो फैसला दिया था उसे अमल करने के लिए जो एवेल्यूशन पैटर्न बनाया गया है, वह महिलाओं को प्रभावित करता है और विपरीत असर डालता है। इस विसंगति वाले क्राइटीरिया के कारण महिलाओं के साथ भेदभाव हो रहा है। एसीआर आंकलन के लिए जो क्राइटीरिया तय किया गया है और शेप-1 का जो क्राइटीरिया है वह बाद की उम्र में परमानेंट कमिशन में लेने के मामले में विसंगति वाला है और महिला अधिकारियिों के परमानेंट कमिशन में जाने पर विपरीत असर डालता है। ये सिस्टमेटिक भेदभाव है और इस तरह महिलाओं की अर्जी स्वीकार की जाती है और इस तरह आर्मी अथॉरिटी ने शॉर्ट सर्विस कमिशन की महिला अधिकारियों को परमानेंट कमिशन देने के लिए जो क्राइटीरिया तय किया है वह मनमाना है और वह लागू नहीं किया जा सकता है।

अदालत ने कहा कि सितंबर 2020 को सेलेक्शन बोर्ड द्वारा जो 60 फीसदी का कटअफ ग्रेड तय किया गया था और जो महिला अधिकारी उसको पूरा करती हैं वह परमानेंट कमिशन की हकदार हैं बशर्ते कि मेडिकल और विजिलेंस क्लियरेंस मिला हो। करीब 650 महिला अधिकारी जिन्हें मेडिकल ग्राउंड पर पहले रिजेक्ट किया गया है उनके मामले को दोबारा परमानेंट कमिशन के तौर पर दोबारा विचार किया जाए और दो महीने में फैसला लिया जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने 17 फरवरी 2020 को महिला अधिकारियों को परमानेंट कमिशन देने को कहा था
पिछले साल 17 फरवरी को आर्म्ड फोर्स में महिलाओं के साथ भेदभाव को खत्म करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि सभी महिला ऑफिसरों को परमानेंट कमिशन मिलेगा और उनके लिए कमांड पोजिशन का रास्ता भी साफ कर दिया था।

साभार : नवभारत टाइम्स

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