नागरिकों के फ्री स्पीच को क्रिमिनल केस से नहीं दबाया जा सकता: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि देश के नागरिकों के विचार अभिव्यक्ति की आजादी को क्रिमिनल केस दर्ज कर दबाया नहीं जा सकता है। पत्रकार पैट्रिशिया मुखिम के खिलाफ दर्ज केस को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणी की है। फेसबुक पोस्ट के जरिये कथित तौर पर साम्प्रदायिक वैमन्स्य फैलाने के आरोप में पत्रकार के खिलाफ मेघालय में केस दर्ज किया गया था। इस मामले में मेघालय हाई कोर्ट ने पत्रकार के खिलाफ दर्ज केस रद्द करने से इनकार कर दिया था जिसके बाद ये मामला सुप्रीम कोर्ट आया था।
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल नागेश्वर राव की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि हम अपील को मंजूर करते हैं। इससे पहले पत्रकार के वकील ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी कि 3 जुलाई 2020 को एक जानलेवा हमले से जुड़ी घटना के संबंध में उनके पोस्ट में वैमन्स्य पैदा करने का कोई इरादा नहीं था। वहीं मेघालय सरकरा के वकील ने सुप्रीम करो्ट में कहा था कि नाबालिग लड़कों की लड़ाई को संप्रदायिक रंग दिया गया। पोस्ट बताता है कि ये लड़ाई आदिवासी और गैर आदिवासी के बीच थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पत्रकार के फेसबुक पोस्ट के आकलन से साफ है कि जो फेसबुक पोस्ट किया गया है उसमें नफरत वाले स्पीच के कंटेंट नहीं हैं। सरकार की नाकामी वाले एक्शन को पसंद न करने को दो समुदाय के बीच नफरत वाले बयान के तौर पर ब्रैंडिंग नहीं की जा सकती है। देश के लोगों के फ्री स्पीच को तब तक क्रिमिनल केस के जरिये दवाया नहीं जा सकता है, जब तक कि वह स्पीच पब्लिक ऑर्डर को खराब न करता हो।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत बहुलता वाला देश है यहां अलग-अलग सभ्यता संस्कृति वाले समाज हैं और संविधान देश के लोगों के लिए तमाम अधिकार की बात करता है इसमें फ्री स्पीच का भी अधिकार है। साथ ही कहीं भी आने जाने का अधिकार है। भारत में कहीं भी रहने का अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा केस में फेसबुक पोस्ट की गहन स्क्रूटनी की गई और ये दिखा है कि पत्रकार ने अपने पोस्ट के जरिये इस बात को लेकर नाराजगी जताई है कि मेघालय के सीएम और डीजीपी ने बदमाशों के खिलाफ एक्शन में उदासीनता दिखाई। इसके मद्देनजर हम अपील स्वीकार करते हैं और मेघालय हाई कोर्ट के आदेश को खारिज करते हैं। साथ ही 6 जुलाई 2020 को इस मामले में एफआईआर खारिज करते हैं।
साभार : नवभारत टाइम्स