तलाक के लिए एक ग्राउंड करने की मांग, विरोध में मुस्लिम महिला पहुंची सुप्रीम कोर्ट
गुड़गांव की एक मुस्लिम महिला ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर तलाक के लिए एक समान ग्राउंड किए जाने की याचिका का विरोध किया है। महिला ने कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में उन्हें तमाम अधिकार दिए गए हैं लेकिन तलाक के लिए एक ग्राउंड किए जाने के लिए दाखिल याचिका से उनके संवैधानिक अधिकार में दखल की कोशिश की गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने 16 दिसंबर 2020 को उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दे दी थी जिसमें तलाक के मामले में एक तरह के ग्राउंड तय करने की गुहार लगाई गई है। याचिका में अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि देश के नागरिकों के लिए तलाक का एक जैसा कानून होना चाहिए। चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अगुवाई वाली बेंच ने कहा था कि हम उस गुहार पर विचार कर सकते हैं जिसमें कहा गया है कि लॉ कमिशन को कहा जाए कि वह अलग-अलग तलाक के आधार को देखे और सुझाव दे कि देश के प्रत्येक नागरिकों के लिए एक जैसा तलाक का आधार हो।
याचिकाकर्ता ने कहा है कि लॉ कमिशन संविधान के अनुच्छेद-14, 15 व 21 के तहत एक तरह के तलाक के आधार को लेकर तीन महीने के भीतर सुझाव दे। सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम महिला ने अर्जी दाखिल कर कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में तलाक के लिए एक ग्राउंड किए जाने के लिए पेंडिंग याचिका में उन्हें प्रतिवादी बनाया जाए। उन्हें उक्त याचिका में दखल की इजाजत दी जाए और दलील की इजाजत दी जाए।
महिला की ओर से कहा गया है कि अलग-अलग धर्म के लिए अलग-अलग तलाक का ग्राउंड है और संविधान के अनुच्छेद-25 व 26 के तहत उन्हें अपनी संस्कृति और रीति को मानने और रहने का अधिकार है। वह शादीशुदा मुस्लिम महिला है और अन्य मुस्लिम महिलाओं की तरह उन्हें भी तमाम अधिकार मिले हुए हैं। लेकिन तलाक के एक ग्राउंड किए जाने की रिट के तहत उनके अधिकार से उन्हें वंचित करने का प्रयास किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने उक्त याचिका पर 16 दिसंबर को नोटिस भी जारी किया है।
महिला की अर्जी में कहा गया है कि अनुच्छेद-25 व 26 के तहत उन्हें अधिकार है कि वह अपने कल्चर और रीति रिवाज के हिसाब से प्रैक्टिस करे और उसे इसका अधिकार है। ऐसे में उक्त रिट उसके संवैधानिक अधिकार में दखल देता है। मुस्लिम पर्सनल लॉ में महिलाएं भी पुरुष को तलाक दे सकती है। साथ ही डिजाल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट भी बनाया गया है।
मुस्लिम में शादी एक कॉन्ट्रैक्ट है और शादी के दौरान ही शर्तें होती हैं और उसके तहत मुस्लिम महिलाओं को सेफगार्ड दिया जाता है। साथ ही बच्चों की कस्टडी आदि भी तय हो जाती है। मेहर की रकम भी तय होती है। निकाहनामा में तमाम शर्तें आदि का जिक्र होता है। साथ ही उसमें गुजारा भत्ता का भी जिक्र होता है।
विवाद की स्थिति में मीडिएशन का प्रावधान है। ऐसे में उक्त अर्जी महिलाओं को मिले उनके अधिकार से वंचित करने का प्रयास है। अर्जी में महिला ने कहा है कि उसे पेंडिंग याचिका में दखल की इजाजत हो और उन्हें प्रतिवादी बनाया जाए।
इससे पहले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी अर्जी दाखिल कर तलाक के लिए एक समान कानून के लिए दायर याचिका का विरोध किया था और इस मामले में दखल की गुहार लगाई थी। पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद-13 के तहत प्रथा का जो मतलब है वह पर्सनल लॉ उससे बाहर है रूढ़ि और प्रथा और पर्सनल लॉ में फर्क है। प्रथा का जो मतलब पर्सनल लॉ उससे इतर है।
साभार : नवभारत टाइम्स