बंगाल चुनाव में चीन की भाषा में प्रचार क्यों कर रही दीदी की पार्टी ? समझिए पूरा माजरा
दरअसल, तांगड़ा इलाके को कोलकाता का ‘चाइना टाउन’ (China Town In Kolkata) कहा जाता है। इस इलाके में कभी 20,000 चीनी मूल के भारतीय नागरिकों का घर था, लेकिन अब इनकी आबादी लगभग 2,000 ही रह गई है। कोलकाता का यह चीनी भारतीय समुदाय पारंपरिक व्यवसाय टैनिंग के साथ-साथ चीनी रेस्तरां में भी लंबे समय से काम कर रहा है। यह इलाका अभी भी चीनी रेस्तरां के लिए मशहूर है, जहां लोग पारंपरिक चीनी और भारतीय चीनी व्यंजनों का स्वाद लेने के लिए आते हैं। यहां रहने वाले लोगों को बंगाली और हिंदी कामचलाऊ ही आती है। ऐसे में टीएमसी नेताओं की कोशिश उनकी मातृभाषा में चुनाव प्रचार करने की है ताकि वह चीजों को आसानी से समझ सकें। हालांकि इनकी आबादी इतनी नहीं है कि ये चुनाव नतीजों में कुछ विशेष प्रभाव डाल सकें पर टीएमसी जीत की हर मुमकिन कोशिश में जुटी हुई है।
18 सदी से है चीन और बंगाल का रिश्ता
देखा जाए तो चीन और पश्चिम बंगाल का रिश्ता सदियों पुराना है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वर्ष 1780 में योंग अटच्यू नाम के एक चीनी नागरिक बंगाल आए थे। यहां आकर उन्होंने गन्ने की खेती की और चीनी मिल लगाया। इसके बाद 18वीं शताब्दी के अंत में चीनी मजदूरों ने भारत आना शुरू कर दिया। शुरुआत में चीन से आए ये मजदूर केवल चमड़े का काम करते थे। बाद में उन्होंने रेस्तरां और कपड़ों समेत अनेक क्षेत्रों में काम करना शुरू कर दिया। वर्ष 1951 की पहली जनगणना में कोलकाता में इनकी संख्या लगभग 5710 बताई गई थी।
बंगाल की राजनीति में दिखता रहा है चीन
राजनीतिक नजरिए से भी देखें तो चीन और पश्चिम बंगाल के बीच गहरी समानता रही है। पश्चिम बंगाल में लंबे समय तक वामपंथियों की सरकार रही है। वाममोर्चा का संबंध अक्सर चीन से जोड़ा जाता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, वर्ष 1960 और 1970 के समय में कोलकाता की दीवारों पर ‘चीन का चेयरमैन ही हमारा चेयरमैन है’ के नारे दिखाए देते थे, जिन्हें माओवादियों ने लिखा होता था। हालांकि यह नारे बंगाली में लिखे होते थे।
साभार : नवभारत टाइम्स