लोगों को न्याय देने में महाराष्ट्र टॉप पर, छोटे राज्यों में त्रिपुरा नंबर-1: रिपोर्ट
‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट’ का दूसरा संस्करण पुलिस, न्यायपालिका, जेल और कानूनी सहायता से संबंधित अलग-अलग सरकारी आंकड़ों पर आधारित है। टाटा ट्रस्ट ने सेंटर फॉर सोशल जस्टिस, कॉमन काउज, कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट इनिशिएटिव, दक्ष, टीआईएसएस-प्रयास, ‘विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी’ और ‘हाउ इंडिया लिव्स’ के साथ तालमेल से यह रैकिंग तैयार की है।
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रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में केवल 29 प्रतिशत महिला न्यायाधीश है। उच्च न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों की संख्या 11 प्रतिशत से बढ़कर 13 प्रतिशत हुई है जबकि अधीनस्थ अदालतों में उनकी संख्या 28 प्रतिशत से बढ़कर 30 प्रतिशत हो गई है। रिपोर्ट की प्रस्तावना लिखने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति एम बी लोकुर ने कहा है कि सबसे ज्यादा चिंता की बात अदालतों में लंबित मामलों की संख्या है। हालांकि महामारी के कारण कम ही याचिकाएं दाखिल हुईं।
न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा है, ‘यह प्रस्तावना लिखने के समय राष्ट्रीय न्यायिक डाटा ग्रिड के मुताबिक देश में जिला अदालतों में 3.53 करोड़ मामले लंबित हैं। इसके अलावा हाई कोर्ट में 47 लाख मामले हैं।’
पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि न्यायिक सुधार बहुत जरूरी हैं और इसे युद्ध स्तर पर इसे करना होगा। जेल के संबंध में रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रति कैदी औसतन खर्च भी करीब 45 प्रतिशत तक बढ़ा है। आंध्र प्रदेश में वार्षिक तौर पर सबसे ज्यादा 2,00,871 रुपये जबकि मेघालय में एक कैदी पर 11,046 रुपये खर्च होता है। रिपोर्ट में न्याय प्रदान करने वाली प्रणाली- न्यायपालिका, पुलिस जेल और कानूनी सहायता से संबंधित आंकड़ों पर गौर किया गया।
साभार : नवभारत टाइम्स