उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के ‘लव जिहाद’ अध्यादेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका
याचिका में कहा गया है, ‘सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा यह है कि क्या संसद के पास संविधान के तीसरे भाग के तहत निहित मौलिक अधिकारों में संशोधन करने की शक्ति है?’ याचिकाकर्ताओं ने दलील दी है कि संसद के पास मौलिक अधिकारों में संशोधन करने की कोई शक्ति नहीं है और अगर यह अध्यादेश लागू किया जाता है तो यह बड़े पैमाने पर जनता को नुकसान पहुंचाएगा और समाज में अराजक स्थिति पैदा करेगा।
‘समाज में भय पैदा करेगा राज्यों का ये कानून’
दलील में कहा गया है, ‘यहां यह बताना भी उचित है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य सरकार की ओर से पारित अध्यादेश विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों के खिलाफ है और यह समाज में भय पैदा करेगा।’ यह भी दलील दी गई है कि जो कोई लव जिहाद का हिस्सा नहीं भी होगा, उसे भी झूठे मामले में फंसाया जा सकता है।
याचिकाकर्ताओं ने दिया केशवानंद भारती मामले का हवाला
दलील में केशवानंद भारती मामले का हवाला देते हुए कहा गया है, ‘अदालत ने कहा है कि संसद संविधान में संशोधन तो कर सकती है, लेकिन संसद संविधान के मूल ढांचे को नहीं बदल सकती है।’ याचिकाकर्ताओं ने कहा कि वे राज्य सरकारों के अध्यादेशों से दुखी हैं और उन्होंने शीर्ष अदालत से विनती की है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों की ओर से पारित कानून को अवैधानिक घोषित किया जाना चाहिए, क्योंकि वे संविधान के मूल ढांचे पर चोट करते हैं और साथ ही बड़े पैमाने पर सार्वजनिक नीति और समाज के खिलाफ भी हैं।
‘जो लव जिहाद में शामिल नहीं, उन्हें भी फंसाया जाएगा’याचिकाकर्ताओं ने कहा कि यह अध्यादेश समाज के बुरे लोगों के हाथों में एक शक्तिशाली हथियार बन सकता है और इस अध्यादेश का उपयोग किसी को गलत तरीके से फंसाने के लिए किया जा सकता है। याचिका में कहा गया है, ‘ऐसे किसी भी काम (लव जिहाद) में शामिल नहीं होने वाले लोगों को भी झूठे तरीके से फंसाए जाने की आशंका है, अगर यह अध्यादेश पारित हो गया तो घोर अन्याय होगा।’
साभार : नवभारत टाइम्स