दूध के दाम तय करने का अधिकार फिर सरकार को मिला
जबलपुर. सुप्रीम कोर्ट से डेयरी संचालकों की दस सालों से विचाराधीन याचिका खारिज होने के साथ ही एक बार फिर मध्यप्रदेश शासन को राज्य में दूध किस दाम पर बिकेगा, यह तय करने का अधिकार मिल गया है. ऐसा इसलिए क्योंकि 2007 में नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच की जनहित याचिका पर मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने सरकार को दूध के रेट तय करने का आदेश दिया था.
इसके बाद सरकार के नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण विभाग ने दूध का दाम 18 रुपए प्रति लीटर तय कर दिया था. जिससे घबराए डेयरी संचालक सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए थे और अपने हक में स्टे ऑर्डर हासिल कर लिया था. लेकिन अब याचिका खारिज होने के साथ ही पूर्व में मिला स्टे भी समाप्त हो गया है.
नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के प्रांताध्यक्ष डॉ.पीजी नाजपांडे ने बताया कि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से डेयरी संचालकों की याचिका खारिज होने के बाद प्रमुख सचिव नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण विभाग के अलावा कलेक्टर जबलपुर को पत्र भेजकर प्रदेश में दूध के रेट नए सिरे से तय करने की मांग की है. यदि ऐसा शीघ्र नहीं किया गया तो हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर कर दी जाएगी. यह जिम्मेदारी सरकार के नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण विभाग की है.
क्या था हाईकोर्ट का आदेश
राज्य शासन द्वारा आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत दूध के रेट तय करने की मांग को लेकर नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के अध्यक्ष डॉ.पीजी नाजपांडे ने वर्ष-2006 में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी. जिस पर सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने 17 जनवरी 2007 को अहम आदेश पारित किया. जिसमें साफ किया गया कि आवश्यक वस्तु अधिनियम की धारा-3(2)(सी) के तहत दूध के रेट शासन निर्धारित करे. ऐसा इसलिए भी ताकि गरीब तबके को दूध न्यूनतम कीमत पर मुहैया हो सके.
सरकार ने 10 वर्ष पूर्व 18 रुपए लीटर तय किया था रेट
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के आदेश के साथ ही प्रमुख सचिव नागरिक आपूर्ति और उपभोक्ता संरक्षण विभाग ने अपने 13 अप्रैल 2007 को जारी आदेश के जरिए दूध के रेट 18 रुपए प्रति लीटर निर्धारित कर दिए थे. इसी आदेश के बाद बौखलाए जबलपुर के डेयरी संचालक हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने पहुंच गए. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की प्रारंभिक सुनवाई के बाद अंतरिम स्थगनादेश जारी कर दिया था. जिसका फायदा उठकार डेयरी संचालकों ने मनमाने तरीके से दूध के रेट अपने स्तर पर बढ़ाने का रवैया अपना लिया. लेकिन अब जबकि सुप्रीम कोर्ट से डेयरी संचालकों की याचिका खारिज हो चुकी है, अत: हाईकोर्ट का पूर्व आदेश यथावत लागू हो गया है.
डेयरी वालों ने स्टे का दस साल तक मनमाना फायदा उठाया
सुप्रीम कोर्ट में डेयरी संचालकों की याचिका पर स्थगन आदेश था, जिसके कारण शासन दूध के दामों में मनमानी वृद्वि के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहा था. विगत दिवस जब इस याचिका की सुनवाई हुई तो राज्य शासन की ओर से एओआर बीएस बंथिया और नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच की ओर से अधिवक्ता अमलपुष्प श्रोती ने पक्ष रखा. उन्होंने दलील दी कि डेयरी संचालकों को मिला स्टे हटाया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा ही किया.
अतिरिक्त महाधिवक्ता पुरुषेन्द्र कौरव के अनुसार सुप्रीम कोर्ट से याचिका खारिज होने के साथ ही मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का पूर्व आदेश प्रभावशील हो गया है. लिहाजा, सरकार अविलंब जनहित व न्यायहित में ठोस निर्णय लेगी. महाधिवक्ता कार्यालय सुप्रीम कोर्ट के ताजा व हाईकोर्ट के पूर्व आदेश का विस्तार से अध्ययन कर सरकार को अवगत कराने की जिम्मेदारी पूरी करेगा.