भारत के खिलाफ गुटबंदी करने में जुटा चीन?
भारत के साथ पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर पिछले महीने बनी तनावपूर्ण स्थिति के बाद भले ही चीन अब शांति का हवाला दे रहा हो, उसका रवैया देखकर संकेत मिल रहे हैं कि वह एशिया में भारत को छोड़कर बाकी पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को ज्यादा मजबूत करना चाह रहा है। इसका इशारा सोमवार को हुई एक वर्चुअल मीटिंग से मिला जिसमें चीन के साथ-साथ अफगानिस्तान, नेपाल और पाकिस्तान तो शामिल थे लेकिन भारत नदारद था। यहां तक कि चीन ने अफगानिस्तान और नेपाल को ‘आयरन ब्रदर’ पाकिस्तान के जैसा बनने के लिए कहा है।
मसीहा बनकर भारत को अलग कर रहा चीन?
इस मीटिंग में देश के विदेश मंत्री वॉन्ग यी ने तीनों देशओं से से कोरोना वायरस संकट से निपटने, ट्रांस हिमालय 3-डी इंटरकनेक्टिविटी नेटवर्क के प्रचार और बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव पर काम जारी रखने के लिए ‘4 पार्टी सहयोग’ स्थापित करने के लिए कहा। इस दौरान वॉन्ग ने कहा है कि चारों देशों को अपनी भौगोलिक स्थिति का फायदा उठाना चाहिए और एक-दूसरे के साथ संबंध और मजबूत करने चाहिए। इससे संकेत मिल रहे हैं कि वह भारत के इन पड़ोसी देशों का मसीहा बनकर भारत के खिलाफ एकजुट करने की फिराक में है।
भारत-पाक तनाव का फायदा
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव नया नहीं है लेकिन पिछले साल जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने और उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से पाकिस्तान तिलमिलाया हुआ है। दूसरी ओर, चीन के साथ उसके संबंध गहराते जा रहे हैं। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के महत्वाकांक्षी बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव के तहत CPEC एक अहम हिस्सा है जिसे लेकर पाकिस्तान उत्साहित है। सैन्य संबंधों से लेकर कोरोना वायरस की महामारी के दौरान भी चीन ने पाकिस्तान की मदद की है।
नेपाल संग भी इन्फ्रास्ट्रक्चर डील
अभी तक भारत के साथ ‘रोटी-बेटी’ का साथ निभाने वाले नेपाल के तेवर भी पिछले कुछ वक्त में बदल गए हैं। भारत के साथ सीमा विवाद में पड़े नेपाल ने देश में कोरोना वायरस के फैलने का ठीकरा भी भारत पर मढ़ डाला था। वहीं, चीन के नेपाल की जमीन पर कब्जा करने के आरोपों पर पीएम केपी ओली ने यह कहकर पर्दा डालने की कोशिश की कि उन्होंने जमीन चीन को दान में दी थी। नेपाल और चीन के बीच रेलवे प्रॉजेक्ट डील भी है जो बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव के तहत तिब्बत से काठमांडू होकर लुंबिनी तक जाएगी। यही नहीं, चीन के नेपाल में इतना दखल है कि देश की सत्ताधारी NCP (नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी) में जारी संकट में सलुह कराने में खुद चीन की राजदूत हाओ यान्की जुटी हैं।
अफगानिस्तान में ‘शांतिदूत’ बना
इस बैठक के दौरान वॉन्ग ने चारों देशों से CPEC (चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा) अफगानिस्तान तक ले जाने की ओर काम करने की जरूरत बताई। माना जा रहा है कि चीन यह संदेश देना चाहता है कि जंग की त्रासदी से जूझ रहे अफगानिस्तान में वह शांति स्थापित करने में भूमिका निभाना चाहता है। दरअसल, अभी भारत अफगानिस्तान सरकार को समर्थन देकर तालिबान के खिलाफ खड़ा है। आने वाले समय में अफगानिस्तान में अगर तालिबान का पलड़ा भारी होता है तो इससे भारत और चीन के साथ उसके संबंधों पर भी पड़ सकता है।
शेख हसीना की चीन में दिलचस्पी
सिर्फ यही तीन नहीं, भारत का एक और पड़ोसी देश बांग्लादेश भी चीन की तरफ कदम बढ़ाता दिख रहा है। पिछले दिनों एक रिपोर्ट में दावा किया गया था कि चार महीने से भारतीय उच्चायुक्त प्रधानमंत्री शेख हसीना से मिलने की कोशिश कर रही हैं लेकिन हसीना उन्हें टाल रही हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में शेख हसीना के दोबारा पीएम बनने के बाद सभी भारतीय प्रॉजेक्ट धीमे हो गए हैं जबकि ढाका चीन के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट्स को ज्यादा तवज्जो दे रहा है।
फिलिपींस US से दूर, चीन के करीब?
इनके अलावा फिलिपींस भी चीन के खेमे की ओर झुकता दिख रहा है। फिलिपींस के राष्ट्रपति रॉड्रीगो दुतर्ते ने बताया है कि उन्होंने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से कोरोना वायरस की वैक्सीन देने में फिलिपींस को प्राथमिकता देने में मदद करने के लिए कहा है। यही नहीं, उन्होंने साफ किया है कि फिलिपींस साउथ चाइना सी में चीन से टक्कर नही लेगा। उन्होंने जंग में जाने से बेहतर कूटनीति है और फिलिपींस जंग में जाने की कीमत नहीं चुका सकता। उन्होंने अपना दावा तो नहीं छोड़ा है लेकिन साफ कहा है कि चीन के पास हथियार हैं, तो हक भी उसका है। खास बात यह है कि रॉड्रीगो ने अमेरिका को अपने यहां सैन्य बेस लगाने की इजाजत देने से फिलहाल पैर पीछे खींच लिए हैं क्योंकि उनका मानना है कि जंग की स्थिति में नुकसान फिलीपींस का होगा।