संविधान का सार- धर्म और राजनीति अलग रहें: सुप्रीम कोर्ट

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कोर्ट ने पूछा कि अगर उम्मीदवार और वोटर एक ही धर्म के हों और उस आधार पर वोट मांगा जाए तो क्या वो गलत है ? कोर्ट ने ये भी पूछा कि अगर उम्मीदवार और वोटर अलग-अलग धर्म के हों और उम्मीदवार इस आधार पर वोट मांगे कि वोटर्स के कौम की रहनुमाई ठीक से नहीं हो रही तो क्या वो सही है ?

सुंदरलाल पटवा की तरफ से वकील श्याम दीवान ने जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 (3) के तहत भ्रष्ट तरीकों पर अपना पक्ष रखा। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 (3) में एक शब्द है हिज रेलिजन यानि उसका धर्म । उसका धर्म की व्याख्या किस तरह हो । इसके तहत उम्मीदवार के धर्म के आधार पर वोट नहीं मांग सकते कि वोटर के धर्म के आधार पर वोट नहीं मांग सकते । इस पर चर्चा करते हुए वकील श्याम दीवान ने कहा कि इस शब्द का दायरा सीमित है ।

उनका तर्क था कि उम्मीदवार के धर्म के आधार पर वोट नहीं मांग सकते लेकिन वोटर के धर्म के आधार पर वोट मांगना इस धारा के तहत स्वीकार्य है । इस पर कोर्ट ने कहा कि उसका धर्म शब्द संविधान के धर्मनिरपेक्ष दायरे में आता है । ऐसे में अगर कोई भी व्याख्या संविधान के विरुद्ध होती है तो हम उसे स्वीकार नहीं कर सकते । अगर उम्मीदवार और वोटर एक ही धर्म के हों और उस आधार पर वोट मांगा जाए तो क्या वो गलत है ? कोर्ट ने ये भी पूछा कि अगर उम्मीदवार और वोटर अलग-अलग धर्म के हों और उम्मीदवार इस आधार पर वोट मांगे कि उसके कौम की रहनुमाई ठीक से नहीं हो रही तो क्या वो सही है ?

आपको बता दें कि इस बेंच में चीफ जस्टिस टीएस  ठाकुर, जस्टिस मदन बी लोकुर, जस्टिस एबी बोब्डे, जस्टिस आदर्श कुमार गोयल, जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एल नागेश्वर राव शामिल हैं। इस मसले पर सुनवाई अब मंगलवार को होगी ।

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