सुप्रीम कोर्ट ने बीएस-3 वाहनों की बिक्री पर लगाई रोक
नई दिल्ली. बीएस-3 मानक वाले वाहनों की बिक्री पर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से रोक लगाने के कदम से पूरे ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए भारी मुसीबत पैदा कर दी है. कंपनियों के पास बीएस-3 मानक के 8.24 लाख वाहन स्टॉक में रखे हुए हैं जिन्हें खपाना इनके लिए भारी सिरदर्दी साबित हो सकती है.
इनमें से लाखों वाहन देश भर के डीलरों के पास हैं और सुप्रीम कोर्ट का फैसला आते ही इन डीलर कंपनियों से इन्हें वापस लेने कहने लगे हैं. माना जा रहा है कि दोपहिया, तीन पहिया और वाणिज्यिक वाहन बनाने वाली कंपनियों पर 12 हजार करोड़ रुपये का बोझ पड़ सकता है.
यही वजह है कि कोर्ट का फैसला आने के कुछ ही देर के भीतर हीरो मोटोकार्प, अशोल लीलैंड समेत कई कंपनियों के शेयर तीन फीसद तक गिर गये.
ऑटोमोबाइल कंपनियों के संगठन सियाम के अध्यक्ष विनोद के देसारी ने कहा, “सुप्रीम कोर्ट के फैसले का वह स्वागत करता है लेकिन जिस तरह से इन वाहनों की बिक्री को अभी तक के कानून में मंजूरी मिली थी, उसकी अवहेलना से उन्हें काफी नुकसान हुआ है.
कई कंपनियां इसलिए ये वाहन बना रही थीं कि बाजार में बीएस-4 वाले ईंधन भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं था.” इस बारे में केंद्र सरकार की तरफ से जारी अधिसूचना में साफ तौर पर कहा गया था कि अप्रैल, 2017 के बाद भी बीएस 3 वाहनों की बिक्री जारी रहेगी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ऐसा नहीं होगा.
कौन से वाहन स्टॉक में
दोपहिया —- 600,000
तीन पहिया —- 40,000
वाणिज्यिक —- 95,000
ऑटोमोबाइल उद्योग के पास बीएस-3 मानक वाले कुल 8.24 लाख वाहन हैं. इनमें से 95 हजार वाणिज्यिक वाहन हैं जबकि छह लाख के करीब दोपहिया वाहन हैं. 40 हजार के करीब तीन पहिया वाहन हैं. माना जाता है कि सबसे ज्यादा वाहन हीरो मोटोकोर्प के हैं. मारुति सुजुकी और हुंडई जैसी कंपनियों पर इसका कोई असर नहीं होगा क्योंकि इन्होंने पहले ही बीएस-3 वाहनों का उत्पादन बंद कर रखा है. लेकिन कई दोपहिया कंपनियां इस मानक वाले वाहनों का निर्माण कर रही थीं. कुछ कंपनियों ने कहा है कि वे अब दूसरे देशों को इन वाहनों का निर्यात करने की कोशिश करेंगी.
वाहन उद्योग के सामने अब चुनौती है कि सिर्फ तीन वर्ष देश में बीएस-6 मानक लागू होने हैं. सरकार ने पिछले वर्ष फैसला किया था कि बीएस-4 से सीधे बीएस-6 लागू किया जाएगा. इसके लिए एक तरफ देश की तेल कंपनियों को नए मानक वाले ईंधन बनाने के लिए भारी भरकम निवेश करना होगा तो दूसरी तरफ ऑटो कंपनियों को भी नया निवेश करना होगा.