ट्रंप के इस फैसले से बिगड़ सकता है पर्यावरण का संतुलन
वाशिंगटन: नौकरी बढ़ाने और ऊर्जा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता बढ़ाने का हवाला देकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ऐसा फैसला किया है जिससे पर्यावरण का संतुलन और बिगड़ेगा। उन्होंने अपने पूर्ववर्ती बराक ओबामा की जलवायु परिवर्तन नीति को रद कर दिया है।
मंगलवार को उन्होंने कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर स्वच्छ ऊर्जा की जगह कोयले के इस्तेमाल का रास्ता साफ कर दिया। उनका कहना है कि इससे लोगों को नौकरी मिलेगी और देश के ईधन आयात में कमी आएगी। यह फैसला ट्रंप के प्रमुख चुनावी वादों में शामिल था। उद्योग जगत ने इसकी सराहना की है। लेकिन, पर्यावरण समूहों और विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी ने इस पर सख्त एतराज जताया है।
पर्यावरण समूहों ने इस फैसले को अदालत में चुनौती देने के संकेत दिए हैं। कैलिफोर्निया और न्यूयॉर्क प्रांत के गवर्नर ने कहा है कि राष्ट्रपति के आदेश के बावजूद वे जलवायु परिवर्तन से निपटने की पुरानी नीति पर आगे बढ़ेंगे। इससे पहले पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी की इमारत में ताजा आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए ट्रंप ने कहा, सरकार कोयले को लेकर जारी लड़ाई का अंत कर रही है।
आज के कार्यकारी आदेश के साथ मैं अमेरिकी ऊर्जा पर लगे प्रतिबंधों, सरकारी रोक-टोक और नौकरियां खत्म करने वाली नीतियों को खत्म करने के लिए एक ऐतिहासिक कदम उठा रहा हूं। गौरतलब है कि अमेरिका ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाला चीन के बाद दूसरा शीर्ष देश है। इसके बावजूद ग्लोबल वार्मिग से निपटने का बजट भी ट्रंप घटा चुके हैं।
आदेश के मायने
ओबामा के कार्यकाल में लागू जलवायु परिवर्तन की ज्यादातर नीतियां समाप्त हो जाएंगी। एजेंसियों को घरेलू ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने के रास्ते में रोड़े बने नियमों, नीतियों की समीक्षा कर उन्हें निलंबित करने का अधिकार होगा। पेरिस संधि के तहत ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कटौती का वादा पूरा करना मुश्किल हो जाएगा।
ओबामा का मानना था कि जलवायु में तेजी से नकारात्मक परिवर्तन हो रहा है और इस समस्या से मुंह मोड़ा नहीं जा सकता। ट्रंप ग्लोबल वार्मिग की बात को ही नहीं मानते। उनका मानना है कि पर्यावरण सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के विकास का आपस में पारस्परिक संबंध नहीं है।
पेरिस संधि पर संकट
इस आदेश का पेरिस संधि से कोई सीधा रिश्ता नहीं है। लेकिन, ट्रंप अब इस संधि से अलग होने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। चुनाव के दौरान उन्होंने इसका वादा किया था। 2015 में 197 देशों ने इस संधि को स्वीकार किया था। यह समझौता जलवायु परिवर्तन के खतरे से निपटने और वैश्विक तापमान में वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस नीचे लाने के लिए किया गया था।
कुछ मुस्लिम बहुल देशों के नागरिकों के आगमन पर प्रतिबंध के ट्रंप प्रशासन के फैसले पर अदालत दो बार रोक लगा चुकी है। ओबामाकेयर की जगह नया स्वास्थ्य बिल संसद से पास कराने में वे नाकामयाब रहे हैं। इस मामले में भी अदालत और संसद के कारण वे पीछे हटने को मजबूर हो सकते हैं।