अफगानिस्तान पर ज्वाइंट वर्किंग ग्रुप का होगा गठन, मध्य एशियाई देशों के साथ सम्मेलन में बड़ा फैसला
बेहद महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए नेताओं ने भारत-मध्य एशिया सम्मेलन का हर दूसरे साल आयोजन करने और विदेश, व्यापार और संस्कृति मंत्री के बीच लगातार बैठकें करने का फैसला लिया। इस नई प्रणाली को आगे बढ़ाने के लिए नई दिल्ली में भारत-मध्य एशिया सचिवालय बनाया जाएगा।
सम्मेलन में कजाकिस्तान के राष्ट्रपति कासिम जुमरात तोकायेव, उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शौकत मिर्जियोयेव, ताजिकिस्तान के राष्ट्रपति इमामअली रहमान शामिल हुए। साथ ही तुर्कमेनिस्तान के राष्ट्रपति गुरबांगुली बर्दीमुहम्मदेवो और किर्गिस्तान के राष्ट्रपति सद्र जापारोप ने भी हिस्सा लिया। सम्मेलन के बाद नेताओं ने ‘दिल्ली घोषणापत्र’ जारी किया और ‘आतंकवाद मुक्त विश्व’ बनाने के लिए आतंक के खिलाफ मिलजुल कर लड़ने पर राजी हुए।
प्रधानमंत्री मोदी ने क्षेत्रीय संपर्क और अगले 30 साल तक सहयोग बनाए रखने की बात कही ताकि सम्मेलन के तीन मुख्य लक्ष्य प्राप्त हो सकें। सम्मेलन से दो दिन पहले चीन ने मध्य एशियाई देशों के साथ अलग से बैठक की थी। यह पूछने पर कि क्या बैठक में चीन पर भी चर्चा हुई, विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) रीनत संधू ने कहा, ‘मध्य एशियाई देशों के साथ भारत की पुरानी मित्रता ऐतिहासिक संस्कृति और सभ्यता से जुड़ी मजबूत नींव पर आधारित है। वे अपने गुणों के कारण इस रूप में हैं। सम्मेलन का मुख्य लक्ष्य भारत-मध्य एशिया साझेदारी को और मजूबत बनाना है।’
यह पूछने पर कि क्या यूक्रेन के मुद्दे पर चर्चा हुई, संधू ने ‘ना’ में जवाब दिया। दोनों पक्षों ने संपर्क को लेकर सहयोग बढ़ाने की बात कही और मध्य एशियाई देशों ने चाबहार बंदरगाह पर संयुक्त कार्य समूह गठित करने के भारत के प्रस्ताव का स्वागत किया। यह प्रस्ताव भारत और मध्य एशिया देशों के बीच उत्पादों के मुक्त आवागमन से जुड़ा हुआ है।
संधू ने कहा कि सम्मेलन में नेताओं के बीच अफगानिस्तान पर करीबी सलाह-मशविरा जारी रखने पर सहमति बनी और उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर संयुक्त कार्य समूह गठित करने का फैसला लिया। संयुक्त बयान के अनुसार, सम्मेलन के दौरान नेताओं ने अफगानिस्तान में मौजूदा हालात और क्षेत्र की स्थिरता और सुरक्षा के प्रभाव पर चर्चा की।
बयान के अनुसार नेताओं ने आतंकवाद के सभी स्वरूपों और संबंधित सभी पहलुओं की आलोचना की। उन्होंने दोहराया कि आतंकवादियों का साथ देना, सीमापार आतंकवाद के लिए आतंकवादी ‘प्रॉक्सी’ का इस्तेमाल करना, आतंक वित्त पोषण ठीक नहीं। हथियार और मादक पदार्थों की तस्करी, कट्टरपंथी विचारधारा को बढ़ावा देना और गलत सूचना फैलाने और हिंसा भड़काने के लिए साइबर स्पेस का उपयोग करना मानवता और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स