'इसके परिणाम बहुत भयावह', महाराष्ट्र में 12 बीजेपी विधायकों के निलंबन पर सुप्रीम कोर्ट ने उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि विधानसभा से एक साल के लिए निलंबन, निष्कासन से भी बुरा है क्योंकि इसके परिणाम बहुत भयावह हैं। इससे किसी निर्वाचन क्षेत्र का सदन में प्रतिनिधित्व बनाए रखने का अधिकार प्रभावित होता है। महाराष्ट्र विधानसभा के पीठासीन अधिकारी के कथित दुर्व्यव्यवहार को लेकर सदन से एक साल के लिए अपने निलंबन को चुनौती देने वाले भारतीय जनता पार्टी के 12 विधायकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा कि किसी सीट को छह महीने में भरने का सांविधिक दायित्व है।
न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा आप निर्वाचन क्षेत्र के लिए संवैधानिक शून्य, रिक्ति की स्थिति नहीं पैदा कर सकते। चाहे यह एक निर्वाचन क्षेत्र हो या 12 निर्वाचन क्षेत्र हो…। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र को सदन में प्रतिनिधित्व किये जाने का समान अधिकार है। पीठ ने कहा कि सदन को एक सदस्य को निलंबित करने की शक्ति है लेकिन 59 दिन से आगे नहीं। पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सी.टी. रविकुमार भी शामिल हैं।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि याचिकाओं में एक में याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ भटनागर ने यह दलील दी है कि यह निलंबन, निष्कासन से भी बुरा है। पीठ ने कहा कि यह सजा देने के समान है और इससे सदस्य को सजा नहीं मिल रही, बल्कि पूरे निर्वाचन क्षेत्र को दंडित किया जा रहा है।
पीठ ने कहा,हम श्रीमान भटनागर की यह दलील स्वीकार करेंगे कि यह फैसला निष्कासन से भी बुरा है। एक साल के लिए यह निलंबन, निष्कासन से भी बुरा है। परिणाम बहुत भयावह हैं। पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 190 (4) का जिक्र किया, जो यह कहता है कि 60 दिन की अवधि के लिए यदि सदन का कोई सदस्य उसकी अनुमति के बगैर सभी बैठक से अनुपस्थित रहता/रहती है तो सदन उसकी सीट को रिक्त घोषित कर सकता है।
न्यायालय ने कहा मौजूदा मामले में, हम दो पृष्ठों में कहेंगे कि अब बहुत हो गया। हमें इस मामले के बारे और विस्तार से नहीं कहना। शीर्ष न्यायालय ने विषय की अगली सुनवाई के लिए 18 जनवरी की तारीख तय की है।
फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स