अमृत महोत्सव : महादेव भाई देसाई, सैफुद्दीन किचलू, विष्णु दामोदर …स्वतंत्रता आंदोलन के इन नायकों को सलाम

अमृत महोत्सव : महादेव भाई देसाई, सैफुद्दीन किचलू, विष्णु दामोदर …स्वतंत्रता आंदोलन के इन नायकों को सलाम
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नई दिल्ली
आजादी के 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में के जरिए देश के नायकों को सम्मानित किया जा रहा है। भारत के स्वाधीनता संघर्ष में हर वर्ग और समुदाय के लोगों ने हिस्सा लिया। विष्णु दामोदर, सैफुद्दीन किचलू, महादेव देसाई इन्होंने न केवल अंग्रेजों से लोहा लिया बल्कि आदर्श भी छोड़ गए है जो देश के लिए अनुकरणीय है।

महात्मा गांधी की परछाई बन महादेव भाई ने निभाई अहम भूमिका
महादेव भाई देसाई, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के निजी सचिव थे। दोनों के उम्र के बीच अच्छा खासा अंतर था। बावजूद इसके दोनों के संबंध मधुर और सहज थे। लोग इन्हें महात्मा गांधी का दाहिना हाथ मानते थे। देसाई से स्नेह के कारण ही महात्मा गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी उन्हें पुत्र जैसा मानते थे। महात्मा गांधी ने 1917 में देसाई से पहली ही मुलाकात में उनकी विशेषताओं को पहचान लिया था। देसाई से महात्मा गांधी के जो संबंध पहले दिन से बने वह देसाई के अंतिम सांस 15 अगस्त 1942 तक जारी रहा। महात्मा गांधी ने 8 अगस्त 1942 को मुंबई में अपने ऐतिहासिक भाषण में करो या मरो का नारा दिया था। इसके अगले ही दिन सुबह सुबह ही अंग्रेजों ने महात्मा गांधी महादेव देसाई को गिरफ्तार कर पुणे में बंद कर दिया। इसी जेल में 15 अगस्त को महादेव देसाई का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वो जब तक जिंदा रहे तब तक महात्मा गांधी की परछाई बन स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे।


जलियांवाला बाग में जो भीड़ जमा थी वो डॉ. किचलू के लिए थी

अमृतसर के जलियांवाला बाग का नाम किसने नहीं सुना। जनरल डायर के आदेश के बाद सैकड़ों लोगों को गोलियों से भून दिया गया। इसमें न जाने कितने लोगों की जान चली गई। जलियांवाला बाग में उस दिन जो भीड़ जमा हुई थी वह किसी और के लिए नहीं बल्कि लोकप्रिय नेता डॉ. सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी के विरोध में जमा हुई थी। जब अंग्रेजी हुकूमत ने 1919 में रॉलेट एक्ट पारित किया तो पेशे से वकील और हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर डॉ. किचलू ने अंग्रेजों के खिलाफ जबर्दस्त आवाज उठाई थी। इस कानून के जरिए सरकार बिना वारंट के किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती थी।15 जनवरी 1888 को अमृतसर में जन्में डॉ. किचलू की अपील का ही असर था कि 30 मार्च 1919 को उनकी सार्वजनिक सभा में 30 हजार लोग शामिल हुए। इसके बाद डॉ. किचलू ने 9 अप्रैल को सरकार विरोधी एक जुलूस का नेतृत्व किया। जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्होंने 1947 में देश के बंटवारे के खिलाफ भी खुलकर अपने विचार रखे और पाकिस्तान की मांग का डटकर विरोध किया। वह दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया के संस्थापकों में से एक थे।


विष्णु दामोदर, गोलियों की परवाह किए बगैर पहुंचे गोवा की सीमा पर

विष्णु दामोदर चितले का जन्म 4 जनवरी 1906 को महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हुआ था। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था। आजादी की लड़ाई के साथ-साथ वह किसान और मजदूरों के हित के लिए काम करते रहे। भाई चितले के नाम से जाने जाने वाले विष्णु दामोदर चितले ने 1929 में पुणे से बीए की परीक्षा पास की। भारत को आजाद कराने के लिए चल रहे आंदोलन में रूचि होने के कारण वह एमए और कानून की परीक्षा पास नहीं कर सके। मार्क्सवादी साहित्य से प्रभावित होने के बावजूद कभी भी पार्टी की नीति का अंधा अनुकरण नहीं किया। स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लेने के साथ ही साथ वे गोवा मुक्ति आंदोलन में भी सक्रिय रहे। वह पुर्तगालियों की गोलियों की परवाह न करते हुए एक हजार लोगों को लेकर गोवा की सीमा पर पहुंच गए थे।

फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स

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