'मैं लंगर में खाता था, उनके साथ ही सोता था, अब मुझे फिर से फुटपाथ पर सोना पड़ेगा'
आखिरी बार नाश्ता शनिवार की सुबह झुग्गीवासियों सहित बड़ी संख्या में बच्चों और स्थानीय गरीबों ने किसानों के लंगर पर आखिरी बार नाश्ता किया। कुंडली की झुग्गियों में रहने वाला 13 वर्षीय आर्यन ने कहा कि हम अपना नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना यहीं लंगर में करते थे। आज लंगर में यह हमारा आखिरी नाश्ता है। अब, हमें या तो खुद खाना बनाना होगा या अन्य विकल्पों की तलाश करनी होगी। किसानों ने कहा कि उनके मन में भी ऐसे स्थानीय बच्चों के लिए भावनाएं पैदा हो गई थीं, जो विरोध स्थल पर आते थे और उन्हें अपने ही बेटों और पोते की याद दिलाते थे।
बेघर लोगों को सताया रहने का डरमोहाली के सतवंत सिंह ने कहा कि ये बच्चे हमारे विरोध-प्रदर्शन का हिस्सा बन गए थे, क्योंकि वे यहां भोजन के लिए आया करते थे। उन्होंने मुझे मेरे पोतों की याद दिला दी थी। उन्हें यहां रखना अच्छा लगता था। अब ईश्वर उनकी रक्षा करेंगे। मलिन बस्तियों के निवासी आमतौर पर इस क्षेत्र में कारखानों या गोदामों में काम करते हैं। किसानों द्वारा बनाए गए अस्थायी टेंटों में रहने वाले बेघर लोगों को अपने रहने की व्यवस्था को लेकर चिंता सता रही थी।
फुटपाथ पर सोना पड़ेगाबिहार के सुपौल के 38 वर्षीय मोनू कुशवाहा ने कहा कि किसानों के विरोध-प्रदर्शन के लिए सिंघू सीमा पर आने से पहले, वह फुटपाथ पर सोता थे, लेकिन पिछले साल आंदोलन शुरू होने के बाद हालात बदल गये थे। कुशवाहा ने अफसोस जताते हुए कहा कि किसानों के आंदोलन के दौरान, मैं उनके एक तंबू में सोता था और लंगर में खाना खाता था। अब यह सब बंद हो जाएगा और मैं फिर से फुटपाथ पर आ जाऊंगा।
लंगर में अच्छा खानाकुंडली में केएफसी टॉवर के पास स्थित झुग्गियों में रहने वाले आठ वर्षीय मौसम ने कहा कि वह पिछले एक साल से लंगर में अच्छा खाना खा रहा था। उसने कहा, मेरे पिता एक कारखाने में काम करते हैं लेकिन चूंकि परिवार बड़ा है, इसलिए हमें अक्सर एक समय का भोजन छोड़ना पड़ता है। लेकिन पिछले एक साल से, हम लंगर में बहुत सारा खाना खाते थे। हम घर के लिए भी पैक करवाकर ले जाते थे। यह सब अब बंद हो जाएगा।’
फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स