दो-दो QUAD, मतलब भारत के दोनों हाथों में लड्डू? समझिए कैसे
भारतीय सभ्यता और संस्कृति बेहद पुरानी है। इसके निशान एशियाभर में मिलते हैं। कभी यह भूमध्य सागर, प्रशांत महासागर से होते हुए हिंद महासागर से लेकर सेंट्रल एशिया तक फैली थी। 300 साल पहले यूरोपीय शक्तियां इस क्षेत्र में पहुंचीं। उनका भारत-प्रशांत समुद्री मार्ग पर दबदबा था। इसने ईस्ट-वेस्ट लिंक्स को तहस-नहस किया। वहीं, विभाजन, शीत युद्ध (कोल्ड वॉर) की जियोपॉलिटिक्स (भू-राजनीति) और चीन-पाकिस्तान के गठजोड़ ने यूरेशिया में भारत के लिंक बिगाड़े।
अब दो-दो क्वाड बन गए हैं। दोनों में भारत शामिल है। एक ‘ईस्ट एशियन’ क्वाड है और दूसरा ‘वेस्ट एशियन’ क्वाड। भारत के साथ ईस्ट एशियन क्वाड में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया है। वहीं, वेस्ट में अमेरिका, इजरायल और संयुक्त अरब अमीरात। यह एशिया के साथ भारत को अपने संबंधों को नए सिरे से बनाने का मौका देगा। अब तक ये देश चीन-पाकिस्तान की तरफ झुके रहने को मजबूर थे। यह बहुत अच्छा है कि दो क्वाड्स के पांच देश इकनॉमिक और डिफेंस पार्टनर हैं। ईस्ट और वेस्ट एशिया के ग्रुप भारत को जमीन और समुद्री मार्ग के जरिये कारोबारी संभावना बढ़ाने का मौका देंगे।
भारत के लिए कहां हैं मौके?
अंतरराष्ट्रीय संबंधों के कुछ जानकार इन क्वाड में जियोपॉलिटिक्स और सैन्य समीकरण देख रहे हैं। हालांकि, भारत के लिहाज से यह उतना ही महत्वपूर्ण है। ईस्ट एशियन क्वाड का अभी फोकस कोविड-19 महामारी, क्लाइमेट चेंज और संवेदनशील व उभरती टेक्नोलॉजी के विकास पर है। वहीं, ने ट्रेड, टेक्नोलॉजी, बिग डेटा, डिजिटल और फिजिकल इंफास्ट्रक्चर और समुद्री सुरक्षा को प्राथमिकता दी है।
इन दो क्वाड के संदर्भ में कुछ बातें समझ लेनी जरूरी है। भूराजनीतिक संदर्भ को जानना भी जरूरी है। चीन अब ज्यादा आक्रामक हो चला है। अफगानिस्तान में तालिबान का शासन आने के बाद पश्चिम एशिया में अस्थिरता है। यूरेशिया की जियोपॉलिटिक्स बदल रही है। ये सभी महत्वपूर्ण पहलू हैं। दोनों क्वाड के सुरक्षा पहलुओं को बनाने में इनकी भूमिका है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दावा किया है कि वेस्ट एशियन क्वाड चार देशों को साथ काम करने के लिए और करीब लाएगा। यह इकनॉमिक ग्रोथ और दूसरे अंतरराष्ट्रीय मसलों को लेकर एक-दूसरे की मदद करने में समर्थ करेगा।
क्या है इन दो क्वाड का मकसद?
भारत की फॉरेन और स्ट्रैटेजिक पॉलिसी को दो दशकों से देख रहे किसी ऑब्जर्वर के लिए यह साफ होना चाहिए कि इन क्वाड को दो बातों ने परिभाषित किया है। आगे भी यही इन्हें परिभाषित करेंगी। पहला, ऐसे बाहरी बलों को खुद से बचाना जो सीमाएं बढ़ाने का लालच पाले हैं और भारत को अस्थिर करना चाहते हैं। दूसरा, आर्थिक विकास को बढ़ावा देना ताकि भारतीयों का जीवनस्तर सुधारा जा सके।
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अक्सर एक बात कहते थे। वह यह है कि हमारी फॉरेन पॉलिसी का मकसद क्षेत्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करना होनी चाहिए। साथ ही इसका उद्देश्य भारत के आर्थिक विकास के लिए अच्छा अंतरराष्ट्रीय माहौल तैयार करना होना चाहिए। ईस्ट क्वाड और वेस्ट क्वाड दोनों इन उद्देश्यों को पूरा करते हैं।
जमीनी और समुद्री मार्ग दोनों अहम
दुनिया को भारत के साथ जोड़ने में जमीनी और समुद्री दोनों मार्ग अहम रहे हैं। पिछले तीन दशकों में भारत ने अपने मैरिटाइम लिंक्स को हिंद महासागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ दोबारा स्थापित किया है। खासतौर से ऐसा 1991 में भारत के उदारीकरण और कोल्ड वॉर के दौरान हुआ था।
तकरीबन समूचा भारतीय व्यापार प्रायद्वीप के आसपास समुद्री मार्ग के जरिये होता है। इसने पुरातन समय के समुद्री लिंकों को दोबारा तैयार किया है। ये पूरब में वियतनाम से लेकर पश्चिम में एजिप्ट तक है। इसने समुद्री सुरक्षा को बढ़ाने पर ध्यान भी खींचा है। पिछले दो दशकों में आई अलग-अलग सरकारों ने इन लिंक्स पर ध्यान दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘सागर’ (सिक्योरिटी ऐंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द (इंडियन ओशन) रीजन) इनीशिएटिव भी इसी कड़ी में है।
दोनों क्वाड भारत और प्रशांत क्षेत्रों में इन मैरिटाइम इकनॉमिक और सिक्योरिटी इंटरेस्ट को बार-बार मजबूत करते रहे हैं। हालांकि, चीन-पाकिस्तान के गठजोड़ से भारत यूरेशिया के साथ अपने जमीनी लिंक्स को पुनर्जीवित नहीं कर सका।
पाकिस्तान बना रहा है अड़चन
सेंट्रल एशिया के साथ भारत के जुड़ने में पाकिस्तान हमेशा बाधा डालता रहा। यही कारण है कि इस क्षेत्र के साथ आर्थिक और सांस्कृतिक संबंध भी बहुत घनिष्ठ नहीं बन पाए। पिछले 25 सालों में इन जमीनी मार्गों की अहमियत बढ़ी है। इसका कारण सिर्फ चीन का बेल्ट ऐंड रोड इनीशिएटिव नहीं है, बल्कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा और व्यापार के लिए इनकी क्षमता है। सेंट्रल एशिया और इरान से तेल एवं गैस का एक्सेस भारत के लिए काफी फायदेमंद होगा।
भारतीय नीतिनिर्माताओं को बहुत पहले ही इस पर काम करना चाहिए था। यहां भारत को कुछ बातों पर ध्यान देने की जरूरत होगी। यह बात ईस्ट और वेस्ट दोनों क्वाड के संबंधों में कही जा सकती है। पहला, अमेरिका चाहेगा कि डिफेंस और मिलिट्री क्षमता पर ज्यादा फोकस किया जाए। वहीं, भारत को सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके आर्थिक हितों को प्राथमिकता दी जाए। यह काफी नहीं है कि अमेरिका बड़ा डिफेंस पार्टनर बने। उसे बड़ा ट्रेड और टेक्नोलॉजी पार्टनर भी बनाना चाहिए।
दूसरा, भारत को ईरान सहित दक्षिण एशिया और पश्चिम एशिया में नॉन-क्वाड (जो मुल्क क्वाड में शामिल नहीं हैं) देशों को दोबारा आश्वासन देना चाहिए कि वो उनके अहम पार्टनर्स हैं। बढ़ती हुई बहुध्रुवीय दुनिया में भारत को अपनी साझेदारी में ज्यादा से ज्यादा विस्तार रखना चाहिए।
(लेखक पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे हैं।)
फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स