सुप्रीम कोर्ट का RBI को आदेश, बैंकों में लॉकर सुविधा को लेकर 6 महीने में नियम तय करें
ने से कहा है कि वह छह महीने के भीतर बैंकों के लॉकर फसिलिटी मैनेजमेंट के मामले में रेग्युलेशन तय करे। सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि के परिचालन के मामले में कस्टमर के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा ग्लोबलाइजेशन के दौर में बैंकिंग संस्थानों का बेहद अहम रोल है। आम लोगों के जीवन में उसका अहम रोल है। घरेलू से लेकर इंटरनैशनल ट्रांजैक्शन में बैंकों का अहम रोल है। लोग घरों में अपनी चल संपत्ति रखने में संकोच करते हैं। यहां तक कि हम कैशलेस इकोनॉमी की ओर बढ़ रहे हैं। ऐसे में ये बात अहम है कि बैंकिंग संस्थानों के लिए लॉकर आदि की सर्विस अनिवार्य सी हो गई है।
तकनीकी विकास के कारण अब हम 2 चाभी वाले लॉकर से इलेक्ट्रॉनिक ऑपरेट होने वाले लॉकर की ओर बढ़ रहे हैं जिनमें लॉकर इलेक्ट्रॉनिक तरीके से ऑपरेट होता है और उसके लिए पासवर्ड होता है। इस बात का भी अंदेशा रहता है कि बदमाश तकनीकी हेरफेर कर लॉकर तक पहुंच जाते हैं और कस्टमर को पता भी नहीं चलता है।
कोर्ट ने कहा कि कस्टमर पूरी तरह से की दया पर निर्भर रहता है। जबकि बैंकों के पास ज्यादा संसाधन है कि वह संपत्ति को प्रोटेक्ट करे। ऐसी स्थिति में बैंक अपनी जिम्मेदारी से हाथ नहीं धो सकता कि बैंक के लॉकर के ऑपरेशन में उनकी जिम्मेदारी नहीं है। अदालत ने कहा कि बैंक लॉकर लेने के पीछे कस्टमर का उद्देश्य यही होता है कि वह इस बात को लेकर निश्चिंत रहे कि उनकी संपत्ति सुरक्षित है। ऐसे में यह जरूरी है कि आरबीआई समग्र निर्देश जारी कर कहे कि बैंक लॉकर सुविधा और सेफ डिपॉजिट फसिलिटी मैनेजमेंट के लिए कदम उठाए।
बैंक को ये लिबर्टी नहीं होनी चाहिए कि वह एकतरफा शर्त लगाए और कस्टमर पर अनफेयर शर्त थोपे। अदालत ने कहा कि इसके मद्देनजर हम आरबीआई को निर्देश देते हैं कि वह छह महीने के भीतर लॉकर फसिलिटी को लेकर उचित रेग्युलेशन और नियम तय करे। कोलकाता बेस्ड एक शख्स ने नैशनल कंज्यूमर फोरम के आदेश को चुनौती दी थी। उन्होंने एक सरकारी बैंक से लॉकर में रखे 7 आभूषण मांगे थे या फिर उसके बदले 3 लाख रुपये भुगतान करने को कहा था। उन्होंने हर्जाने की मांग की थी।
साभार : नवभारत टाइम्स