आम आदमी की उम्मीदों को जगाता आर्थिक सर्वे

आम आदमी की उम्मीदों को जगाता आर्थिक सर्वे
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कन्हैया सिंह, अर्थशास्त्री

संसद में पेश आर्थिक सर्वे में कुछ बातें सकारात्मक हैं, तो कुछ नकारात्मक। यह सर्वे उत्पाद और सेवा कर (जीएसटी), नोटबंदी के प्रभाव और सुधरते वैश्विक परिदृश्य के संदर्भ में तैयार किया गया है। इसमें 2016-17 के लिए जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 6.5 से 6.75 फीसदी लगाया गया है। यह केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा लगाए गए अनुमान से कम है, क्योंकि मौजूदा वित्त वर्ष के लिए सीएसओ ने 7.1 फीसदी विकास दर का अनुमान लगाया था।

दरअसल, वर्तमान मूल्यों पर जीडीपी यानी नॉमिनल जीडीपी में थोक महंगाई दर (कुछ तत्वों की उपभोक्ता महंगाई दर भी) घटाकर वास्तविक जीडीपी की विकास दर तय की जाती है। अगर इन तत्वों की कीमतें घटने की प्रवृत्ति मार्च तक बनी रही, जैसी नोटबंदी से हमें दिख रही है, तो मेरा मानना है कि विकास दर का जो अनुमान सरकार ने लगाया है, हम उससे ज्यादा भी पा सकते हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि पिछले साल थोक महंगाई दर निगेटिव थी और नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ सात फीसदी से कुछ ज्यादा। फिर भी हम सात फीसदी के आसपास विकास दर पाने में सफल होते दिख रहे हैं, जबकि इस साल नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ पिछले वर्ष की तुलना में काफी ज्यादा है और थोक महंगाई दर दो से चार फीसदी के बीच रहने का अनुमान है। साफ है, इस बार परिस्थिति कहीं बेहतर है। उल्लेखनीय यह भी है कि खाद्य उत्पादों की दरें नीचे आई हैं और प्राइमरी उत्पादों की कीमतें गिरी हैं। अच्छी खबर तीसरी तिमाही में कंपनियों से आए नतीजे भी दे रहे हैं, जो बताते हैं कि नोटबंदी का उन पर वैसा नकारात्मक असर नहीं पड़ा है, जैसे कयास लगाए जा रहे थे। इसलिए मेरा यह मानना है कि आर्थिक सर्वे में जो चंद नकारात्मक बातें कही गई हैं, वे सतर्कता बरतने के लिए हैं। आने वाले दिनों में इनमें सुधार हो सकता है।

इस लिहाज से सर्वे में आम आदमी के लिए काफी उम्मीदें बंधती हैं। सरकार ने यह माना है कि पूंजी वापस खींचने (नोटबंदी) के बाद उत्पादन पर थोड़ा असर पड़ा है, और यह फर्क अस्वाभाविक भी नहीं है। विकास दर बेशक थोड़ी कम होगी, मगर उतनी नहीं, जितनी आशंका जताई गई थी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तो कहा था कि नोटबंदी से जीडीपी विकास दर में दो फीसदी तक कमी आएगी। इस हिसाब से देखें, तो इस बार विकास दर 5.5 फीसद से नीचे आ जानी चाहिए थी। मगर सरकार का गणित ऐसा नहीं कहता। विकास दर के पूर्वानुमान में महज एक फीसदी तक की कमी की बात सर्वे में कही गई है, जो सामान्य ही है। इसका सीधा अर्थ यह है कि आम जनता यह विश्वास रखे कि विकास दर पर नोटबंदी की मार आशंका से कहीं कम पड़ी है। इसका अर्थव्यवस्था की सेहत पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ने वाला, और जिस उद्देश्य के साथ नोटबंदी का फैसला लिया गया, वह काम कर रहा है। यानी फर्जी करेंसी को रोकने, आतंकी फंडिंग को थामने या नकदी काला धन खत्म करने जैसे कदम मजबूत हुए हैं। अच्छी बात यह भी है कि नोटबंदी से सभी पैसे के मालिकों का पता चल गया है, इसलिए स्वाभाविक तौर पर टैक्स देने वाले लोगों की संख्या बढ़ेगी, जिससे जाहिर तौर पर आम लोगों को ही फायदा होगा। सरकार के खाते में टैक्स के रूप में अधिक पैसे आने का अर्थ है, जन-हितकारी कामों का गति पकड़ना। ऐसे में, उम्मीद यही है कि सबको घर देने या कृषि क्षेत्र को मजबूत बनाने जैसे मोदी सरकार के वायदे अब तेजी से आगे बढ़ेंगे।

इन सब बातों पर भरोसा राष्ट्रपति के अभिभाषण से भी जगता है। वह एक तरह से मोदी सरकार की ‘प्रोग्रेस रिपोर्ट’ है। उसमें जिन सरकारी कामों की उपलब्धियां गिनाई गई हैं, वे न सिर्फ गुणवत्ता के लिहाज से, बल्कि संख्या से लिहाज से काफी प्रभावी हैं। इसलिए नोटबंदी ने वाकई काम किया है। अब देखना यह है कि आम लोगों ने नोटबंदी से जो तकलीफें झेलीं, उन्हें इसका कितना फायदा मिलता है? वैसे मेरा यह भी मानना है कि आज पेश हो रहे आम बजट में, जिसमें पहली बार रेल बजट भी शामिल होगा, विकास दर में संभावित कमी को पाटने पर जोर होगा और निजी निवेश बढ़ाने के भी प्रयास होंगे। यानी एक उम्मीदों का बजट हमारा इंतजार कर रहा है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

साभार : Live हिंदुस्तान

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