आप तक कैसे पहुंचेगी कोरोना वैक्सीन? फुलप्रूफ प्लान के लिए सीरम इंस्टीट्यूट जा रहे PM मोदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शनिवार को पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) का दौरा करेंगे। कोरोना काल में वैक्सीन निर्माण के काम पर जारी प्रगति की समीक्षा के लिए पीएम संस्थान के दौरे पर जाएंगे। कोविड-19 के टीके के लिये एसआईआई ने वैश्विक दवा निर्माता एस्ट्राजेनका और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के साथ साझेदारी की है।
डीजीसीआई ने पूर्व नैदानिक जांच, परीक्षण और विश्लेषण के लिये सात कंपनियों को कोविड-19 टीके के निर्माण की इजाजत दी है। इनमें से दो एसआईआई और जेन्नोवा बायोफार्मास्यूटिकल्स हैं। पुणे के मंडलायुक्त सौरभ राव ने कहा, ‘हमें शनिवार को प्रधानमंत्री मोदी के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया आने की पुष्ट जानकारी प्राप्त हुई है, लेकिन उनके कार्यक्रम का विस्तृत विवरण (मिनट दर मिनट कार्यक्रम) अभी नहीं मिला है।’
100 से अधिक देशों के प्रतिनिधि करेंगे दौरा
राव ने मंगलवार को कहा था कि प्रधानमंत्री के पुणे आने की संभावना है, और अगर ऐसा होगा तो इसका उद्देश्य कोरोना वायरस संक्रमण के टीके के निर्माण की स्थिति, उत्पादन और वितरण के तंत्र की समीक्षा होगा। राव ने यह जानकारी भी दी थी कि चार दिसंबर को 100 से भी ज्यादा देशों के राजदूत और दूत यहां एसआईआई और जेन्नोवा बायोफार्मास्यूटिकल्स का दौरा करेंगे।
ट्रायल के दौरान चूक का आरोप
बता दें कि एक कप कॉफी की कीमत से भी सस्ती बताई जा रही ऑक्सफर्ड कोरोना वैक्सीन (Oxford Covid Vaccine) पर सवाल उठने लगे हैं। एस्ट्राजेनेका ने इसी हफ्ते दावा किया था कि वैक्सीन 90% तक असरदार है। हालांकि कंपनी ने अब मान लिया है कि कुछ लोगों पर दी गई वैक्सीन की डोज में गलती हुई थी। इससे वैक्सीन के एफेकसी (प्रभावोत्पादकता) डेटा पर सवाल खड़े हो गए हैं। अब एक्सपर्टस पूछ रहे हैं क्या ऐडिशनल टेस्टिंग में यह डेटा बरकरार रहेगा या यह और कम होगा।
भारत में हो सकती है देरी
वैज्ञानिकों ने कहा कि एस्ट्राजेनेका से जो चूक हुई है, उससे नतीजों पर उनका भरोसा कम हुआ है। भारत के लिहाज से भी यह बड़ी खबर है क्योंकि सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया इसी वैक्सीन को ‘कोविशील्ड’ नाम से लाने की तैयारी में है। अगर यूके में ट्रायल डेटा पर पेंच फंसा तो भारत में वैक्सीन उपलब्ध होने में देरी हो सकती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने रखे ये मापदंड
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने कोरोना वैक्सीन के लिए 50% एफेक्सी का पैमाना रखा है, उसपर तो ऑक्सफर्ड की वैक्सीन खरी उतरती है। लेकिन ताजा घटनाक्रम ने वैक्सीन को लेकर शक का माहौल पैदा कर दिया है। फाइजर, मॉडर्ना या रूस की Sputnik V वैक्सीन के मुकाबले में ऑक्सफर्ड की वैक्सीन कई मामले में बेहतर बताई जा रही थी। एक तो इसकी कीमत बेहद कम है, दूसरा इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन आसानी से हो सकता है। तीसरा इसे बड़ी आसानी से स्टोर और डिस्ट्रीब्यूट किया जा सकता है।
साभार : नवभारत टाइम्स