पाकिस्तान की 'जिहाद यूनिवर्सिटी' जहां के 'ग्रैजुएट' अफगानिस्तान में छेड़ रहे हैं जंग
पाकिस्तान का अकोरा खट्टक- जहां है दारुल उलूम हक्कानिया सेमिनरी ”। मौलाना यूसुफ शाह ने गर्व के साथ वहां से निकले तालिबानी लड़ाकों की लिस्ट का ऐलान किया है, खासकर उन्होंने अफगानिस्तान में रूस और अमेरिका के खिलाफ तालिबानी ऐक्शन का जिक्र किया है। यहां से निकले तालिबानी नेताओं में वे भी शामिल हैं, जो आज काबुल सरकार के साथ समझौता कर रही टीम में शामिल हैं।
यहीं रहते, मुफ्त में पढ़ते हैं छात्र
शाह ने यह भी कहा, ‘रूस को स्टूडेंट्स और ग्रैजुएट्स ने तोड़ दिया और अमेरिका का सामान भी बांध दिया गया है। हमें गर्व है।’ अकोरा का परिसर पेशावर से 60 किमी पूर्व में है। यहां 4000 स्टूडेंट खाते हैं और मुफ्त में पढ़ते हैं। यह सालों से क्षेत्रीय उग्रवादी हिंसा का गढ़ रहा है और यहां पाकिस्तानी और अफगान शरणार्थियों को रूस और अमेरिका के खिलाफ जिहाद की जंग छेड़ने की शिक्षा दी जाती है।
पाकिस्तान में समर्थन
इस सेमिनरी (मदरसे) को पाकिस्तान में भारी समर्थन भी मिला है। यहां राजनीतिक दलों का धार्मिक संगठनों से गहरा नाता रहा है। इस महीने दारूल उलूम के नेताओं ने अफगानिस्तान में घुसपैठ का समर्थन किया और काबुल की सरकार को ललकारा। अफगानिस्तान की सरकार पहले ही हिंसा में बढ़त झेल रही है क्योंकि अमेरिका ने भी सेना वापस लेने की तैयारी शुरू कर दी है।
‘विदेश सैनिको को निशाना बनाने का अधिकार’
अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के प्रवक्ता सेदिक सिद्दिकी का कहना है कि हक्कानिया जैसे सेमिनरी उग्र जिहाद को जन्म देते हैं, तालिबान को बनाते हैं और देश को खतरा पैदा करते हैं। अफगानिस्तान के नेताओं का कहना है कि पाकिस्तान ने मदरसों को इजाजत दे रखी है जिससे तालिबान को उसके समर्थन का सबूत मिलता है। शाह ने मदरसों में हिंसा को बढ़ावा देने की बात तो स्वीकार नहीं की लेकिन विदेशी सैनिकों को निशाना बनाने के अधिकार का बचाव किया।
तालिबान के बेहद हिंसक धड़े हक्कानी नेटवर्क को सेमिनरी का ही नाम दिया गया है। सेमिनरी से जुड़े पाकिस्तानी कट्टरवादियों ने अपने ही देश में हमले करना शुरू कर दिया। इनमें पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो की हत्या भी शामिल थी।
जिहाद पर होती थी चर्चा
खास बात यह है कि मदरसे में पढ़ाई के दौरान अफगानिस्तान जाने के लिए मजबूर नहीं किया जाता था लेकिन जिहाद पर खूब चर्चा होती थी। इसके लिए अलग से लेक्चर भी होते थे। छुट्टियों में जो लोग जिहाद के लिए जाना चाहें, उन्हें भेजा जाता था। 1980 में मदरसों को काफी आर्थिक फंडिंग मिलती थी। सोवियत संघ के खिलाफ अमेरिका और सऊदी अरब के समर्थन वाले जिहादी गुटों को इस्तेमाल किया जाता था और ये आजतक पाकिस्तान के साथ संबंध रखते हैं।