Pfizer की कोरोना वैक्सीन डिलिवरी में बड़ा पेच, कहीं गरीब देश न रह जाएं महरूम

Pfizer की कोरोना वैक्सीन डिलिवरी में बड़ा पेच, कहीं गरीब देश न रह जाएं महरूम
Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

जब Pfizer और BioNTech की कोविड-19 वैक्सीन का उत्पादन शुरू होगा, Shanghai Pharmaceutical Group Co. उसके डिस्ट्रिब्यूशन के लिए तैयार होगा। कंपनी इसे एक जटिल और महंगे सिस्टम के तहत डीप-फ्रीज एयरपोर्ट वेयरहाउस, रेफ्रिजरेटेड वीइकल्स और इनॉक्युलेशन पॉइंट के जरिए डिस्ट्रिब्यूट करेगी। वैक्सिनेशन सेंटर्स पर पहुंचने के बाद वैक्सीन का खुराकों को -70 डिग्री सेल्सियस पर पिघलाया जाएगा और इसके बाद उन्हें पांच दिन के अंदर इंजेक्ट करना होगा वरना वे खराब हो जाएंगे। ध्यान रखने वाली बात यह है कि यही प्रक्रिया दो बार करनी होगी क्योंकि एक महीने बाद दूसरा बूस्टर भी देना होगा।

Coronavirus Vaccine: Pfizer और BioNTech की कोविड वैक्सीन को लेकर भले ही काफी उम्मीदें जगी हों, इसकी डिलिवरी अपने आप में चुनौतीपूर्ण काम है।

Pfizer की Corona Vaccine डिलिवरी में बड़ा पेच, कहीं गरीब देश न रह जाएं महरूम

जब Pfizer और BioNTech की कोविड-19 वैक्सीन का उत्पादन शुरू होगा, Shanghai Pharmaceutical Group Co. उसके डिस्ट्रिब्यूशन के लिए तैयार होगा। कंपनी इसे एक जटिल और महंगे सिस्टम के तहत डीप-फ्रीज एयरपोर्ट वेयरहाउस, रेफ्रिजरेटेड वीइकल्स और इनॉक्युलेशन पॉइंट के जरिए डिस्ट्रिब्यूट करेगी। वैक्सिनेशन सेंटर्स पर पहुंचने के बाद वैक्सीन का खुराकों को -70 डिग्री सेल्सियस पर पिघलाया जाएगा और इसके बाद उन्हें पांच दिन के अंदर इंजेक्ट करना होगा वरना वे खराब हो जाएंगे। ध्यान रखने वाली बात यह है कि यही प्रक्रिया दो बार करनी होगी क्योंकि एक महीने बाद दूसरा बूस्टर भी देना होगा।

क्यों मुश्किल है mRNA वैक्सीन डिलिवरी?
क्यों मुश्किल है mRNA वैक्सीन डिलिवरी?

कंपनी ने ग्रेटर चीन के लिए वैक्सीन को लाइसेंस दिया है। इसने जो रोडमैप तैयार किया है, उससे पता चलता है कि यह कितनी बड़ी चुनौती है। दरअसल, अभी तक इस्तेमाल की जा रही किसी भी वैक्सीन को mRNA से नहीं बनाया गया है। यह वैक्सीन इंसानी शरीर को प्रोटीन पैदा करने के लिए तैयार करती है जिससे प्रोटेक्टिव ऐंटीबॉडी तैयार होती हैं। इसकी वजह से डीप-फ्रीज उत्पादन, स्टोरेज और ट्रांसपोर्टेशन नेटवर्क की जरूरत होती है ताकि वैक्सीन लंबे वक्त तक चल सके। इस बात का सबसे बड़ा असर इस पर पड़ेगा कि इस पूरी प्रक्रिया को वे देश पूरी कर सकेंगे जो आर्थिक रूप से मजबूत होंगे। इसके लिए जरूरी निवेश और समन्वय के कारण हो सकता है कि यह सिर्फ शहरी आबादी तक ही पहुंच सके।

अमीरों को पहले मौका?
अमीरों को पहले मौका?

पेइचिंग के ग्लोबल हेल्थ ड्रग डिस्कवरी इंस्टिट्यूट के डायरेक्टर डिंग शेंग ने कहा है कि इस वैक्सीन का उत्पादन महंगा है, इसे बनाने के लिए जरूरी हिस्से अस्थिर हैं, इसके लिए कोल्ड चेन ट्रांसपोर्टेशन की जरूरत होगी और यह कुछ ही वक्त तक सही रहती है। इसके साथ ही एक बार फिर इस बात को लेकर चिंताएं बढ़ने लगी हैं कि अमीर देशों को सबसे अच्छी वैक्सीन सबसे पहले मिल जाएगी। वहीं, गरीब देशों को विकल्प चुनना होगा कि वे महंगी सप्लाई-चेन तैयार करना चाहते हैं या सस्ती वैक्सीन के लिए अभी और इंतजार करना चाहते हैं।

अमीर देशों के सामने भी चुनौती
अमीर देशों के सामने भी चुनौती

डिंग का कहना है कि अगर ऐसी कोई प्रोटीन वैक्सीन हुई जिसे मौजूदा इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ ही डिलिवर किया जा सकता है, तो उसे ही चुना जाएगा। डिंग का यह भी कहना है कि ऐसे अमीर देश, जो पहले ही इसके लिए डील कर चुके हैं, उनके सामने भी अभी कई चुनौतियां हैं। mRNA वैक्सीन को डिलिवर करने में अगर ट्रक खराब हुए या बिजली चली गई या हेल्थ केयर वर्कर बीमार हो गए या बर्फ पिघल गई, तो वैक्सीन खराब हो जाएगी। अमीर देशों को भी अरबों डॉलर इस सप्लाई चेन को बनाने के लिए खर्च करने होंगे। Pfizer के पास जापान, अमेरिका और ब्रिटेन के साथ-साथ पेरू, ईक्वाडोर और कोस्टा रिका जैसे देशों के भी ऑर्डर हैं।

भारत को मिलेगी?
भारत को मिलेगी?

पीपल्स हेल्थ मूवमेंट के लिए नई दिल्ली के ग्लोबल कोऑर्डिनेटर टी सुंदररमन का कहना है कि भारत में -70 डिग्री से नीचे वैक्सीन को बनाकर रखना नामुमिकन है। उनका कहना है कि मौजूदा कोल्ड-चेन में खसरे की वैक्सीन तक के लिए सुविधा नहीं है जिसे 3 साल की उम्र से कम के बच्चों को देना होता। इसकी तुलना में कोविड-19 की वैक्सीन की मांग तो कहीं ज्यादा है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण ने भी कहा है कि भारत फिलहाल मौजूदा कोल्ड-चेन क्षमता बढ़ने की स्थिति में नहीं है। यही नहीं, तापमान के अलावा कम समय में वैक्सीन डिलिवर करना भी एक चुनौती होगा। इसे देने के लिए पैरामेडिकल स्टाफ को ट्रेनिंग भी देनी होगी। ऐसी जगहों पर वैक्सीन डिलिवर करना मुश्किल होगा जहां वैक्सिनेशन सेंटर दूर हों या जहां लोग ही वैक्सिनेशन के लिए तैयार न हों। ज्यादा कीमत के साथ इन रुकावटों के होने से मुमकिन है कि विकासशील देश Pfizer की वैक्सीन का इस्तेमाल ही न करें।

Facebooktwitterredditpinterestlinkedinmail

WatchNews 24x7

Leave a Reply

Your email address will not be published.